राजपूत महापंचायत ने की भारत पर्व शुरुआत
14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया
भोपाल। गुलामी की मानसिकता से देश को उबारने की शुरुआत हो चुकी है। राजपूत महापंचायत के मंच पर प्रधानमंत्री द्वरा शुरू किये गए विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाया गया और 15 अगस्त को भारत पर्व मनाने का संकल्प लिया गया।
राजपूत महापंचायत द्वारा अरेरा कॉलोनी स्थित "भोजपुर क्लब" में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि एवं पूर्व राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा कि राजपूत महापंचायत की अगुवाई में अपने राष्ट्र की सही पहचान के लिए किए जा रहे कार्य सराहनीय हैं। उन्होंने राजपूत महापंचायत के अध्यक्ष राघवेन्द्र सिंह तोमर के के बारे में कहा कि वे जो चेतना जागृत कर रहे हैं, वह बहुत बड़ी बात है। उन्होंने वे बातें बताईं जो पाठ्यक्रम में नहीं पढ़ाई जातीं। उन्होंने रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, गंगा आदि के उदाहरण देकर भारत की शाश्वत-सनातन समृद्ध ज्ञान, दर्शन और परम्पराओं के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि नई शिक्षा नीति से बच्चों को भारत की विरासत के बारे में बताया जाएगा एवं कक्षा12 वी तक बच्चे नोकरी करने की स्किल्स प्राप्त कर लेंगे।
श्री सोलंकी ने कहा कि दुनिया में अनेक मत हैं, लेकिन धर्म एक है और वह है सनातन धर्म। सभी मत, सम्प्रदाय मानव ने बनाए हैं, लेकिन वेदों को ईश्वर ने मानव का मार्गदर्शन करने के लिए भेजा है। मत एक समय काल तक ही जीने का मार्ग दिखा सकते हैं, लेकिन वे लंबे समय के बाद निरर्थक हो जाते हैं। समय बदलने के साथ इनमें परिवर्तन होते हैं। अंग्रेजी ने भ्रम पैदा किए हैं। उसने धर्म को ही रिलीजन कह दिया, जो सही नहीं है। धर्म के बाद पंथ आया।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद कया है? राष्ट्र की दो अवधारणाएं हैं, कल्चरल और पॉलिटिकल। भारत में कल्चरल राष्ट्र गायब हो रहा है। कल्चरल राष्ट्र की बात करने वाले को साम्प्रदायिक कहा जाता है। अंगे्रज भारत को एक नेशन नहीं, स्टेट्स को नेशन मानते थे। नेशन शब्द कल्चरल है, जो उस राष्ट्र के जीवन मूल्यों को प्रमाणित करता है। यह देश तो देवताओं, साधु-संतों ने बनाया। भारत का एक हिस्सा परतंत्र रहा, लेकिर सांस्कृतिक राष्ट्र हमेशा स्वतंत्र रहा। सांस्कृतिक राष्ट्र का राज्य से कोई संबंध नहीं। भारत का प्राण यहां का धर्म है। सांस्कृतिक राष्ट्र कभी गुलाम नहीं रहा। मुक्ति के लिए हमेशा आंदोलन चलते रहे।
राजपूत महापंचायत के अध्यक्ष और इतिहास के पुरोधा राघवेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हो गया, तो क्या भारत गुलाम था? चिंतन-मनन करेंगे तो पाएंगे कि सिर्फ 8 लाख वर्ग किलोमीटर का हिस्सा, जो ब्रिटिश इंडिया के अधीन था, वही आजाद हुआ। शेष तीन चौथाई भारत वर्ष पहले से ही स्वतंत्र था। उस समय 562 रियासतें संप्रभु राष्ट्र थीं। गांधार से लेकर इंडोनेशिया तक सांस्कृतिक राष्ट्र था। उसे एक छत्र के नीचे लाए बिना एक ताकतवर राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं। हम सनातन धर्म को विश्व में प्रतिपादित कर सकते हैं।
राजपूत महापंचायत के अध्यक्ष राघवेन्द्र सिंह तोमर ने कहा आज सांस्कृतिक राष्ट्र पर खतरा है। इस खतरे से निपटने के लिए धर्म और पंथ को समझना होगा। सनातन के पंथ बच्चों को पढ़ाने होंगे। अफगानिस्तान में गुरु नानक देव जी का निशान साहिब, बलूचिस्तान में हिंगलाज माता मंदिर और बामियान में बुद्ध प्रतिमा को खंडित किया गया। सांस्कृतिक तौर पर हम पर अतिक्रमण हो रहा है। सनातन में अलग-अलग मत हैं। हम इन मतों में आ-जा सकते हैं। एक जगह तो सनातन नास्तिक होने की भी छूट देता है। हम सनातन के किसी भी मत में दोबारा जा सकते हैं। ईसाइयत और इस्लाम में सेरेमोनियल एंट्री होती है। हम तो हिंदू माता के गर्भ में आते ही सनातनी हो जाते हैं।
पूर्व डीजीपी एसके राउत ने जागृत हो उठे वसुधैव कुटुम्बकम के भाव को समूचे विश्व में फैलाने को कहा। उन्होंने इस तरह के आयोजनों के माध्यम से राष्ट्र के प्रति समर्पित भाव से कार्य करने का आह्वान किया।
कार्यक्रम का सफल संचालन राजपूत महापंचायत के महासचिव अभय सिंह परमार ने किया। आभार प्रदर्शन केपी सिंह ने किया। इस अवसर पर राजपूत महापंचायत के मुख्य संरक्षक देवेन्द्र सिंह भदौरिया, ख्यात शिक्षाविद विजय सिंह जी, सपाक्स लीडर डॉ. केएस तोमर, लोकेन्द्र सिंह चौहान, पवन सिंह भदौरिया, लोकेन्द्र सिंह खेजडिय़ा, शैलेन्द्र सिंह तोमर, समेत बड़ी संख्या में मातृशक्ति व हर वर्ग के लोग उपस्थित थे।