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शासन की मजदूरों को घर भेजने की योजना हो रही दिखावा साबित, प्रतिदिन निकल रहे दर्जनों मजदूर


                                अपनी दो साल की बच्ची के साथ कानपुर जाता परिवार

बेगमगंज। जहां एक ओर शासन श्रमिको को उनके घर भेजने व दूसरे प्रांतो में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए हेल्प लाइन नंबर जारी किए हुए है और बसों के जरिए लोगो को भेजा जा रहा है। बावजूद उसके प्रतिदिन दर्जनों श्रमिक पैदल यात्रा करते हुए लम्बा सफर तय करते हुए अपने घरों की ओर जाते हुए दिखलाई दे रहे है। शासन की योजना का लाभ इन्हंे नहीं मिल पा रहा है। नागपुर से कानपुर जा रहा एक परिवार जिसमंे दो साल की बच्ची भी शामिल थी जो करीब एक सप्ताह पहले से पदयात्रा करते हुए बेगमगंज पहुंचा वहीं मुम्बई से आए करीब 50 श्रमिक जो प्रदेश के सतना जिला व उत्तर प्रदेश जा रहे थे। गुजरे जिन्हें लोहामील पर समाज सेवी बाबूलाल पंथी की आरामशीन पर भोजन कराया गया उनके स्नान आदि की व्यवस्था भी की गई।

नागपुर से आ रहे कुलदीप अपनी दो वर्षीय बेटी लक्ष्मी बाई व पत्नी और देवर आदि के साथ एक सप्ताह पहले नागपुर से पैदल रवाना हुए चिलचिलाती धूप से बच्ची को बचाने के लिए छाते का सहारा लिए निकले जिन्हें देखकर सुरेन्द्र कुशवाहा आदि ने उन्हें नाश्ते के पैकिट प्रदान किए। कुलदीप ने बताया कि रास्ते में किसी भी वाहन ने उन्हें लिफ्ट नहीं दी वह पैदल ही अपने घर जा रहे है कोरोना से तो नहीं लेकिन भूख से मर जाते यह सोचकर कि मरना ही है तो घर परिवार में जाकर ही मरे इसलिए पैदल निकल लिए रास्ते मंे जरूर लोग नाश्ता भोजन आदि करवा रहे है।


    50 मजदूरों का दल सतना और यूपी जाने को निकला पंथी आरामशीन पर भोजन आदि के लिए रूका

इसी तरह मुम्बई से चले 50 मजदूर रज्जन प्रसाद, अमरजीत, सुनील कुमार, राजकमल, लवकुश प्रसाद आदि ने बताया कि रास्ते मंे कई जगह दस बीस किमी के लिए वाहन चालकांे ने लिफ्ट दी लेकिन कहीं भी शासकीय सहायता बस आदि की नहीं मिली ताकि वे अपने घर सतना या उत्तर प्रदेश पहुंच सके। वे सुबह के समय देपहर 11 बजे तक सफर कर 25 तीस किमी की दूरी तय करते है शाम से लेकर देर रात तक करीब 50 किमी की दूरी तय कर लेते है रात में कुद देर के लिए नींद लेते है अल सुबह फिर अपने गनतव्य के लिए निकल पड़ते है। परिवार का पालन पोषण करने के  लिए इतने दूर मजदूरी के लिए गए थे मुम्बई मंे पाइप फैक्ट्री में काम करते थे वह बंद हो गई तो वहां रहकर भी भूखों मरना पड़ता या कोरोना से इसलिए पैदल निकले है ताकि अपने परिवार के पास वापिस पहुंच सकें अब कभी अपना क्षेत्र छोड़कर दूसरे प्रांत मंे मजदूरी करने नहीं जाएगें जो रूखी सूखी मिलेगी वहीं रहकर मजदूरी करेगें।

उल्लेखनीय है कि यह दर्द हर उस मजदूर का है जो अपना प्रांत छोड़कर दूसरे प्रांत में जाकर मजदूरी के लिए गए हुए थे उन सभी का कहना है कि सरकार एलान तो करती है लेकिन हम गरीबों तक सहायता नहीं पहुंच पाती। यदि हमारे प्रांत की सरकार ने गरीबों के उत्थान के लिए कुछ किया होता तो हम दूसरे प्रांत मंे जाते ही क्यों।

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