मुंबई। ईरान के विदेश मंत्री जवाद जरीफ ने कहा है कि अगर भारत चाहे तो अमेरिका को हमारे साथ 2015 के परमाणु समझौते में वापस लाने में अहम भूमिका निभा सकता है। तीन दिनों के दौरे पर भारत आए ईरानी विदेश मंत्री ने कहा, “अमेरिका अप्रैल 2018 में हमारे साथ किए गए समझौते से बाहर हो गया। हम इससे पहले तक साथ काम कर रहे थे। लेकिन फिर उसने डील छोड़ने का फैसला कर लिया। भारत के हमारे (ईरान) और अमेरिका दोनों से बेहतरीन रिश्ते हैं। ऐसे में वह चाहे तो अपने समझौते के तहत अमेरिका को समझौते में वापस लाने में मदद कर सकता है। हम इस संभावना से इनकार नहीं करते।”
जवाद जरीफ ने शुक्रवार को महाराष्ट्र के उद्योग मंत्री सुभाष देसाई (दाएं) के साथ कार्यक्रम में हिस्सा लिया।
दरअसल, ओबामा ने 2015 में राष्ट्रपति रहते हुए अमेरिका-ईरान के संबंध सुधारने के लिए परमाणु समझौते की पेशकश की थी। इसमें ईरान ने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने की बात की। ईरान ने अमेरिका, चीन, रूस, जर्मनी, फ्रांस और ब्रिटेन के साथ जेसीओपीए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इसके बदले अमेरिका की तरफ से उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों में थोड़ी ढील दी गई। लेकिन ट्रम्प ने राष्ट्रपति बनने के बाद यह समझौता रद्द कर दिया और दोनों देशों दुश्मनी फिर शुरू हो गई।
‘चाबहार बंदरगाह जल्द पूरा करने के लिए भारत-ईरान को साथ काम करना होगा’
चाबहार बंदरगाह के निर्माण पर जरीफ ने कहा कि भारत और ईरान को प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए साथ काम करना होगा। उन्होंने कहा कि हमें चाबहार के निर्माण के लिए हमें जल्द से जल्द उपकरण जुटाने होंगे। साथ ही ईरान के पोर्ट सिटी जाहेदन को रेल नेटवर्क से जोड़ने के लिए काम तेज करना होगा।
अमेरिका की वजह से भारत को भी चाबहार निर्माण में दिक्कत
जरीफ ने कहा कि भारत को अमेरिका की वजह से चाबहार पोर्ट के विकास के लिए उपकरण जुटाने में मुश्किल हो रही है। इसके अलावा चाबहार को अफगानिस्तान और मध्य एशिया से रेलवे के जरिए जोड़ने में भी परेशानी हो रही है। हमें जल्द चाबहार-जाहेदन नेटवर्क पूरा करना होगा। हमारे पास सारा इन्फ्रास्ट्रक्चर मौजूद है। हमें अब रेल की जरूरत है। हम इस पर भारत के साथ समझौते में जुटे हैं। हम भी पटरियां बनाते हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल देश में ही हो जाता है। इसलिए इस जगह पर हमें सहयोग करने की जरूरत है।
ईरान और भारत ने 2018 में 8.5 करोड़ डॉलर्स में चाबहार बंदरगाह विकसित करने का समझौता किया था। ईरान के दक्षिणपूर्व में स्थित यह बंदरगाह सीधा ओमान की खाड़ी से जुड़ता है। यह पोर्ट भारत और अफगानिस्तान को व्यापार के लिए वैकल्पिक रूट मुहैया कराता है।