नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों को लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम शुल्क के बकाया भुगतान में राहत नहीं दी। कंपनियों पर सरकार के 1.47 लाख रुपए बकाया होने का अनुमान है। सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर में कहा था कि एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) की गणना का टेलीकॉम विभाग का तरीका सही है। टेलीकॉम कंपनियों को इसी आधार पर सरकार को लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम शुल्क चुकाना होगा। कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट से इस आदेश पर दोबारा विचार करने की अपील की थी। इस याचिका को गुरुवार को कोर्ट ने खारिज कर दिया।
सरकार ने 23 जनवरी तक बकाया चुकाने को कहा है
दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने नवंबर में संसद में बताया था कि भारती एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया समेत अन्य टेलीकॉम कंपनियों पर लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम शुल्क के 1.47 लाख करोड़ रुपए बकाया हैं। सुप्रीम कोर्ट के अक्टूबर के आदेश के बाद सरकार ने टेलीकॉम कंपनियों से कहा था कि बकाया भुगतान 23 जनवरी तक कर दें। न्यूज एजेंसी के मुताबिक भारती एयरटेल चाहती थी कि कम से ब्याज और पेनल्टी में राहत मिल जाए।
एजीआर क्या है?
टेलीकॉम कंपनियों को एजीआर का 3% स्पेक्ट्रम फीस और 8% लाइसेंस फीस के तौर पर सरकार को देना होता है। कंपनियां एजीआर की गणना टेलीकॉम ट्रिब्यूनल के 2015 के फैसले के आधार पर करती थीं। ट्रिब्यूनल ने उस वक्त कहा था कि किराए, स्थायी संपत्ति की बिक्री से लाभ, डिविडेंड और ब्याज जैसे नॉन कोर स्त्रोतों से प्राप्त रेवेन्यू को छोड़ बाकी प्राप्तियां एजीआर में शामिल होंगी। विदेशी मुद्रा विनिमय (फॉरेक्स) एडजस्टमेंट को भी एजीआर में माना गया। हालांकि फंसे हुए कर्ज, विदेशी मुद्रा में उतार-चढ़ाव और कबाड़ की बिक्री को एजीआर की गणना से अलग रखा गया। दूरसंचार विभाग किराए, स्थायी संपत्ति की बिक्री से लाभ और कबाड़ की बिक्री से प्राप्त रकम को भी एजीआर में मानता है। इसी आधार पर वह टेलीकॉम कंपनियों से बकाया फीस की मांग कर रहा है।