सिंगापुर। दुनिया में शहरों का क्षेत्रफल और वहां रहने वाले नागरिक लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में प्रशासन के लिए नागरिकों की सुरक्षा और निजता की रक्षा भी एक चुनौती बन जाती है। सिंगापुर में इसी मुद्दे को लेकर एक परिचर्चा हुई। इसमें पॉलिसीमेकर, उद्यमियों और इंडस्ट्री के विशेषज्ञों ने शिरकत की।
इस चर्चा में व्यक्तिगत सुरक्षा के मामले में मुंबई 37वें तो दिल्ली 41वें नंबर पर रहा। अगर बात दुनिया के सबसे ज्यादा सुरक्षित शहरों की हो यहां मुंबई 45वें और दिल्ली 52वें नंबर पर रहा। शहरों का चुनाव पांच महाद्वीपों के 60 देशों के बीच में से हुआ। इस सूची में जापान की राजधानी टोक्यो को पहला स्थान मिला, जबकि दुनिया के टॉप-10 शहरों में 6 शहर एशिया-पेसिफिक क्षेत्र से थे।
एनईसी कॉर्पोरेशन में ग्लोबल सेफ्टी डिवीजन के प्रमुख वॉल्टर ली ने कहा,‘‘पेनल डिस्कशन उत्साह से भरपूर था। हमने इस बारे में बात की कि आखिर किस तरह हम सुरक्षित शहरों का निर्माण कर सकते हैं? निश्चित रूप से परिचर्चा में यह मुद्दा भी शामिल था कि तकनीक किस तरह से शहरों को सुरक्षित बना सकती है।’’
ली ने कहा, ‘‘टेक्नोलॉजिस्ट होने के नाते शहरों की सुरक्षा के लिए हम तकनीक को एक टूल के तौर पर देख रहे हैं। मेरा जोर इस बात पर था कि किसी भी शहर को सुरक्षित बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि वहां रहने वाले नागरिकों की डिजिटल पहचान कितनी सुरक्षित है। यह बात सायबर और फिजिकल एरिया दोनों में लागू होती है।’’
समिट में अर्बन लीविंग, सायबर अटैक के खिलाफ सुरक्षा और पुलिस का दबाव, क्लाइमेट बदलाव पर भी चर्चा हुई। विशेषज्ञों का मत था कि दुनियाभर के शहरों को चाहिए कि वे समाज को स्थिर और सुरक्षित बनाए रखने के लिए सुरक्षा व्यवस्था को लगातार चाक-चौबंद बनाए रखें।
इस मौके पर एनईसी एशिया पेसिफिक के सीईओ टेटसुरो अकागी ने कहा, ‘‘मेरी कंपनी मानती है कि समाज और कम्युनिटी को नेटवर्किंग, कम्प्युटिंग और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के जरिए बहुत कुछ दिया जा सकता है। हम इसी दिशा में काम करने के लिए इच्छुक भी हैं।’’