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ऑस्ट्रेलिया में विधायक बने पहले भारतीय दीपक बोले- दूसरे देश में चुनाव लड़ना मुश्किल जरूर, नामुमकिन नहीं

नई दिल्ली। ऑस्ट्रेलिया कैपिटल टेरेटरी (एसीटी) असेंबली में भारतीय मूल के दीपक राज गुप्ता चुनकर पहुंचे हैं। वे कैनबरा से विधायक हैं। साथ ही पहले भारतीय भी, जो ऑस्ट्रेलिया में विधायक बने हैं। दीपक सिर्फ भारतीय होने के नाते ही चर्चा में नहीं हैं, बल्कि वे भगवद्गीता पर हाथ रखकर शपथ लेने की वजह से भी चर्चा में हैं। उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे दीपक करीब 30 साल से ऑस्ट्रेलिया में रह रहे हैं और वहां के भारतीयों के लिए काम करने के मकसद से ही राजनीति में आए।

सवाल: आप ऑस्ट्रेलिया में कब से रह रहे हैं? वहां की राजनीति में आने का ख्याल कैसे आया?
दीपक :
मुझे ऑस्ट्रेलिया में रहते हुए लगभग 30 साल हो गए हैं। मैं 1989 में मेलबर्न आया था। उसके बाद कैनबरा में शिफ्ट हो गया। राजनीति में मेरा आना ऐसा हुआ कि यहां के भारतीय लोगों के साथ मेरा काफी लगाव रहा है और मैं उनके साथ काम करता रहा हूं। इसी से एक से दूसरी चीज बनती चली गई। इसके बाद मैं ऑस्ट्रेलिया-इंडिया बिजनेस काउंसिल का चेयरमैन बना। वहां से मेरी मुलाकात राजनेताओं से होने लगी। उन्होंने ही मुझसे कहा कि आप भारतीयों के लिए इतना करते हैं और यहां पर भारतीयों की संख्या भी बढ़ रही है, तो आप उन लोगों के मुद्दे उठाने और उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए राजनीति में आने का क्यों नहीं सोचते? वहीं से मुझे राजनीति में आने का ख्याल आया। हालांकि, मैं अभी भी अपने आपको राजनेता नहीं समझता, क्योंकि मैं जो काम कर रहा हूं, वह अपने लोगों के लिए कर रहा हूं। मैं भले ही कैनबरा का विधायक हूं, लेकिन मेरा काम भारतीयों के लिए अभी भी वैसा ही है।

सवाल: एक भारतीय नागरिक होने के नाते ऑस्ट्रेलिया में चुनाव लड़ना कितना मुश्किल है?
दीपक : आप जब भी किसी दूसरे देश जाकर काम करते हैं, तो वहां मुश्किलें आती ही हैं। क्योंकि हम एक अलग बैकग्राउंड से आते हैं। हमारी संस्कृति वहां से अलग होती है। हमारे सोचने का तरीका अलग होता है। मेरे सामने भी ऐसी कई कठिनाइयां आईं, जब लोगों ने मुझसे कहा कि आप तो यहां के नहीं हैं। थोड़ा भेदभाव भी रहता है, लेकिन यहां के लोगों से मुझे बहुत प्यार मिला। यहां के स्थानीय लोगों ने भी मुझे वोट दिया। दूसरे देश का नागरिक होने के नाते चुनाव लड़ना थोड़ा मुश्किल जरूर है, पर नामुमकिन नहीं।

सवाल: आप उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्मे, चंडीगढ़ में पढ़ाई की। तो क्या कभी भारत आना होता है? परिवार का कोई सदस्य यहां रहता है?
दीपक :
उत्तर प्रदेश के आगरा में मेरा जन्म हुआ। चंडीगढ़ में मेरे पिताजी नौकरी करते थे, इसलिए मेरी पढ़ाई वहीं हुई। मेरे बड़े भाई अभी भी चंडीगढ़ में रहते हैं। मेरा भारत से नाता अभी भी उतना ही मजबूत है। मैं अपने परिवार के साथ अक्सर भारत आता हूं। हर दो साल में मैं अपने बच्चों को भी भारत लेकर आता हूं और मैंने उन्हें पूरे भारत का भ्रमण भी करवाया है। बच्चों को यहां बहुत अच्छा लगता है। वे यहां आकर अपने कजिन से मिलते हैं। उन्हें भारतीय खाना बहुत पसंद है। चंडीगढ़ में मेरे कुछ दोस्त हैं, उनसे मिलने मैं जाता रहता हूं।

सवाल: आप ऑस्ट्रेलिया और भारत की राजनीति में क्या फर्क देखते हैं? वहां प्रचार का तरीका भारत से कितना अलग है?
दीपक :
भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही लोकतांत्रिक देश हैं। दोनों की राजनीति ब्रिटिश सिस्टम पर ही चलती है, इसलिए दोनों देश की राजनीति में ज्यादा फर्क नहीं है, क्योंकि सबकुछ लोकतांत्रिक तरीके से और पारदर्शी होता है। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया और भारत का संविधान बहुत अलग है। भारत की आबादी ज्यादा है तो वहां चुनाव बड़े स्तर पर होते हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में चुनाव इतने बड़े स्तर पर नहीं होते। भारत की तरह ऑस्ट्रेलिया में बड़ी-बड़ी रैलियां नहीं होतीं। बल्कि, यहां नेता टीवी या रेडिया के जरिए या फिर लोगों से मिलकर सीधे बात करते हैं।

सवाल: भारत की राजनीति की ऐसी कौनसी बातें हैं, जिन्हें आप पसंद या नापसंद करते हैं?
दीपक :
भारतीय राजनीति की एक चीज है, जो मुझे पसंद नहीं है और वह है यहां की लंबी चुनाव प्रक्रिया। भारत में राजनीति में आने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ता है। इसके अलावा आबादी भी ज्यादा है, जिस कारण चुनाव कराने में भी ज्यादा समय लगता है। इससे आम जनता के सामान्य जीवन में रुकावट आती है। लेकिन ऑस्ट्रेलिया में सुबह चुनाव होते हैं और शाम तक नतीजे भी आ जाते हैं। इससे लोगों को ज्यादा परेशानी भी नहीं होती।

सवाल: आप जैसे भारतीय अन्य देशों की राजनीति में शामिल होते हैं, तो इससे भारत को कितना फायदा?
दीपक :
हम भारतीयों ने दिखा दिया है कि हम एक अच्छे डॉक्टर भी बन सकते हैं। अच्छे बिजनेसमैन भी बन सकते हैं। पब्लिक सर्विस मे भी जा सकते हैं और वकील भी बन सकते हैं। हमारे लोगों ने बहुत मेहनत की है और हर क्षेत्र में नाम कमाया है। राजनीति एक ऐसा क्षेत्र है, जहां जनता की शिक्षा, स्वास्थ्य और कल्याण से जुड़े फैसले लिए जाते हैं। इसलिए दूसरे देश में रहने वाले भारतीयों के लिए भी एक आवाज होनी चाहिए, सुनवाई होनी चाहिए। अगर कोई भारतीय दूसरे देश की राजनीति में जाता है, तो इससे वह भारतीयों की आवाज सीधे वहां उठा सकता है, जहां फैसले लिए जाते हैं। इसके अलावा, किसी भी भारतीय का दूसरे देश की राजनीति में जाना हम सबके लिए गर्व की बात है।

सवाल: ऑस्ट्रेलिया की ऐसी नीतियां, जिन्हें आप चाहते हों कि वे भारत में भी हों?
दीपक :
ऑस्ट्रेलिया में जो भी काम होता है, वो पारदर्शी तरीके से होता है। ईमानदारी से होता है और सबको साथ लेकर होता है। यही ऑस्ट्रेलिया की नीति है। इस कारण यहां के जो कर्मचारी हैं, वे अपना काम उसी ईमानदारी से करते हैं, जैसे उन्हें करना चाहिए। इससे कोई हेरफेर या गड़बड़ी की बात भी नहीं आती। इसके अलावा उनके काम पर सवालिया निशान भी नहीं खड़े होते कि उनके काम से किसी को परेशानी हो रही है या लोग नाखुश हैं। यहां पर तो इतनी पारदर्शिता है कि लोग चाहें तो वोटों की गिनती भी हॉल में बैठकर देख सकते हैं।

सवाल: विदेशी मूल के लोगों को राजनीति में स्वीकार करने के बारे में ऑस्ट्रेलियाई लोगों में किस तरह की सोच है?
दीपक :
थोड़ा बहुत तो फर्क होता ही है कि आप दूसरे देश से आए हैं और यहां पर राजनीति कर रहे हैं। मेरा ऐसा कोई अनुभव नहीं रहा जब मुझे लगा हो कि मेरे साथ भेदभाव हो रहा है। हालांकि, थोड़ा बहुत तो होता है। हमारे देश में भी होता है। फिर भी यहां के लोगों ने बहुत साथ दिया। मुझे बहुत अच्छा लगा कि हम लोग डाइवर्स कम्युनिटी की तरफ आ रहे हैं। अब यह भी हमारा ही घर है तो यहां पर हमारा भी उतना ही अधिकार है, जितना यहां के स्थानीय लोगों का है।

सवाल: भारत में दोबारा मोदी सरकार बनी है और हाल ही में जम्मू-कश्मीर का अनुच्छेद 370 हटाया गया है। इसपर क्या सोचते हैं?
दीपक :
भारत की सरकार के बारे में मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा। क्योंकि भारतीयों ने सरकार चुनी है तो कुछ सोच-समझकर ही चुनी होगा। मेरा बस यही मानना है कि जनता ने सरकार को स्वीकार किया और दोबारा लेकर आए। जम्मू-कश्मीर के इस अनुच्छेद के बारे में मैं ज्यादा नहीं जानता, तो मैं इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहता।
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