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दो साल में 2560 छात्रों ने आईआईटी-आईआईएम छोड़ा, इनमें 1233 आरक्षित वर्ग के

नई दिल्ली। पिछले 2 साल में 2461 छात्रों ने आईआईटी और 99 ने आईआईएम छोड़ा। आईआईटी छोड़ने वालों में 48% जबकि आईआईएम छोड़ने वालों में 62.6% छात्र आरक्षित वर्ग से हैं। मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय की हाल ही में जारी की गई रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है। आईआईटी दिल्ली छोड़ने वाले सबसे ज्यादा 782 छात्र हैं। वहीं, आईआईएम छोड़ने वाले सबसे ज्यादा 17 छात्र इंदौर संस्थान के हैं।

आईआईटी दिल्ली से कॉलेज छोड़ने वाले छात्रों में 111 एससी, 84 एसटी और 161 ओबीसी के हैं। इसी तरह आईआईएम इंदौर छोड़ने वाले 17 छात्रों में रिजर्व कैटेगरी के 9 थे। वहीं, आईआईएम काशीपुर (उत्तराखंड) के 13 छात्रों ने कॉलेज छोड़ा। इसमें 11 ओबीसी और दो एसटी छात्र शामिल हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, संस्थान छोड़ने वाले एससी, एसटी और ओबीसी के छात्रों का प्रतिशत सामान्य वर्ग के छात्रों के या तो बराबर है या उनसे ज्यादा है। हालांकि, आरक्षित वर्ग के छात्रों का सामान्य वर्ग के छात्रों से एडमिशन लेने का प्रतिशत कम है। यह स्थिति छात्रों के साथ भेदभाव की ओर इशारा करती है। साथ ही जातिगत आरक्षण को लेकर सवाल खड़े करती है, जो कम अंक आने के बाद भी संस्थान में एडमिशन लेते हैं।
शैक्षणिक तनाव भी कॉलेज छोड़ने का मुख्य कारण
आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों के लिए प्रवेश परीक्षा में कट-ऑफ कम है, लेकिन कॉलेज में पास होने के लिए अंक सभी के लिए एक समान है। विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसे छात्र अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। वे दबाव से निपटने में नाकाम रहते हैं। एचआरडी की रिपोर्ट के मुताबिक, शैक्षणिक तनाव कॉलेज छोड़ने का मुख्य कारण है।
‘उच्च शैक्षणिक मानकों के कारण छात्र बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते’
आईआईएम इंदौर के निदेशक हिमांशु राय ने कहा कि सामान्य वर्ग के छात्र भी कॉलेज छोड़ते हैं। ड्रॉपआउट के कई कारण हैं। जो छात्र पहली बार अकेले रहने आते हैं, वे कोर्स और उच्च शैक्षणिक मानकों के कारण अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। राय ने कहा कि आईआईएम इंदौर ज्यादा छात्रों को दाखिला देता है, इसलिए यहां के सबसे ज्यादा छात्र कॉलेज छोड़ते हैं। कमजोर छात्रों के लिए अलग से भी क्लास कराई जा रही है।
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