नई दिल्ली। पंद्रह दिन पहले जब जम्मू-कश्मीर में उथलपुथल बढ़ी तो कयास लगाए जाने लगे कि मोदी सरकार राज्य के लोगों को विशेषाधिकार देने वाले अनुच्छेद 35-ए को हटा सकती है। लेकिन केंद्र ने उससे भी आगे जाकर कदम उठाया और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को ही निष्प्रभावी कर दिया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांटकर दो केंद्र शासित प्रदेश बना दिए। भाजपा सरकार ने दूसरी बार सत्ता में आने के बाद 17वीं लोकसभा के पहले ही सत्र में कश्मीर पर फैसला कर लिया।
संविधान विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी कहते हैं कि अनुच्छेद 370 के हटने का लंबे समय से इंतजार था। यह ऐतिहासिक कदम है। अब इस अनुच्छेद की कोई जरूरत नहीं रह गई थी। इतिहास बताता है कि कश्मीर ने कभी इस्लाम के लिए दरवाजे बंद नहीं किए। बौद्ध धर्म और इस्लाम भी कश्मीर के रास्ते आया। तो अब नौकरियों और विकास की खातिर कश्मीर के दरवाजे बंद नहीं रखने चाहिए।
रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (रिटायर्ड) जीडी. बख्शी बताते हैं कि साझा सरकार में दक्षिण कश्मीर में सुरक्षा बलों की तैनाती का फैसला महबूबा मुफ्ती के हाथों में था। महबूबा ने कहा था कि दक्षिण कश्मीर में भारत की फौज क्यों है? वहां से फौज हटा दी गई। इसके बाद वहां बुरहान वानी और जाकिर मूसा जैसे आतंकी पनपे। अब वहां सुरक्षा बलों की तैनाती है। अनुच्छेद 370 हटने से वहां शांति आएगी तो चुनाव प्रक्रिया भी बाकी राज्यों की तरह बिना किसी धांधली के पूर्ण कराई जा सकेगी।
1) पहले कार्यकाल में मोदी ने कश्मीर के 18 दौरे किएमई 2014 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के दिन ही मोदी ने गृह मंत्री बने राजनाथ सिंह से 9 मिनट राष्ट्रपति भवन में कश्मीर के मुद्दे पर चर्चा की थी। इसके बाद जुलाई 2014 में मोदी ने कश्मीर का दौरा किया। 2014 में ही उन्होंने राज्य के 9 दौरे किए। पहले कार्यकाल में मोदी ने 18 बार जम्मू-कश्मीर का दौरा कर साफ कर दिया कि कश्मीर उनके टॉप एजेंडे में शामिल है। उनके दौरों का मकसद कश्मीर की जनता से सीधे जुड़ना था।
2) श्यामा प्रसाद मुखर्जी की नीति अपनाईजम्मू-कश्मीर विधान परिषद के पूर्व सदस्य और भाजपा नेता विबोध गुप्ता बताते हैं कि मोदी सरकार की कश्मीर नीति वही रही, जो श्यामा प्रसाद मुखर्जी की थी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी कहते थे कि एक देश में दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे। यही भाजपा के एजेंडे में रहा। अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी होने से कश्मीर अब सही मायने में आजाद हो गया है। अब मोदी सरकार का अगला लक्ष्य नया जम्मू-कश्मीर बनाना है। ऐसा कश्मीर जहां विकास हो, पर्यटन हो, प्राइवेट सेक्टर हो, अच्छे अस्पताल हों। अभी तक अनुच्छेद 370 और 35ए के कारण यह सब नहीं था, लेकिन अब यह सब होगा।
संविधान विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी कहते हैं कि अनुच्छेद 370 के हटने का लंबे समय से इंतजार था। यह ऐतिहासिक कदम है। अब इस अनुच्छेद की कोई जरूरत नहीं रह गई थी। इतिहास बताता है कि कश्मीर ने कभी इस्लाम के लिए दरवाजे बंद नहीं किए। बौद्ध धर्म और इस्लाम भी कश्मीर के रास्ते आया। तो अब नौकरियों और विकास की खातिर कश्मीर के दरवाजे बंद नहीं रखने चाहिए।
3) सेना को खुली छूट मिलीमोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में ही सेना को खुली छूट दे दी थी। घाटी में आतंकवाद कम करने के लिए ऑपरेशन ऑलआउट चलाया, जिसके तहत आतंकियों के खिलाफ खुलकर कार्रवाई की गई। पिछले पांच साल में घाटी में 838 आतंकी सुरक्षा बलों की कार्रवाई में मारे गए। इनमें कई मोस्ट वॉन्टेड और आतंकी गुटों के सरगना थे। गृह मंत्रालय के मुताबिक, 2016 से 2018 के बीच दो साल में सेना ने घेराबंदी और तलाशी अभियान में 97 आतंकियों को गिरफ्तार किया। इसके साथ ही इन दो साल में सेना ने 29 ऐसे ठिकानों का भी पता लगाया, जहां आतंकी छिपते थे।
4) आतंकी घटनाओं में 5 साल में 66% की कमी आई1990 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद और चरमपंथ पनपने के बाद 2018 तक 70,673 आतंकी घटनाएं हो चुकी हैं। इन घटनाओं में 22,400 आतंकी मारे गए हैं। इसी दौरान 13 हजार से ज्यादा आम नागरिक मारे गए, जबकि 5 हजार से ज्यादा जवान शहीद हो गए। 2004 से 2014 तक 9,739 आतंकी घटनाएं हुईं। यानी हर साल औसतन 900 से ज्यादा आतंकी घटनाएं हुईं। इनमें चार हजार आतंकी मारे गए, लेकिन दो हजार आम नागरिकों की मौत हुई और एक हजार से ज्यादा जवान शहीद हो गए। वहीं, 2014 से 2019 के बीच 1708 आतंकी घटनाएं हुईं। इनमें 838 आतंकी मारे गए, लेकिन 138 आम नागरिकों की मौत हुई और 339 जवान शहीद हो गए। पिछले पांच साल में हर साल औसतन 300 से ज्यादा घटनाएं हुईं जो पिछले 10 वर्ष के सालाना औसत आंकड़े की तुलना में एक तिहाई है।
5) सर्जिकल और एयर स्ट्राइकउड़ी हमले के बाद 29 सितंबर 2016 को भारतीय सेना ने पीओके में 3 किमी अंदर जाकर आतंकियों के ठिकानों पर हमला किया। ऐसा पहली बार हुआ कि भारत ने आतंकियों के खिलाफ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में घुसकर कार्रवाई की। इस हमले में 40 से 50 आतंकी मारे गए। इसके बाद फरवरी 2019 में पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर फिदायीन हमले के बाद वायुसेना ने 26-27 फरवरी की रात को पीओके में घुसकर बालाकोट, चकोटी और मुजफ्फराबाद पर बम बरसाए। इस हमले में करीब 300 आतंकी मारे गए।
6) अलगाववादियों से बात नहीं, हुर्रियत नेताओं के खिलाफ कार्रवाई कीमोदी सरकार शुरू से ही कश्मीर मसले पर अलगाववादियों और हुर्रियत नेताओं से बात करने के खिलाफ रही। लोकसभा में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का संकल्प पेश करते हुए भी गृह मंत्री अमित शाह ने दोहराया कि पाकिस्तान से प्रेरणा लेने वालों से हम बात नहीं करेंगे। जम्मू-कश्मीर विधान परिषद के पूर्व सदस्य विबोध बताते हैं कि एनआईए ने हुर्रियत और अलगाववादियों पर कार्रवाई की। उनके घरों पर छापे मारे गए। उनकी संपत्ति का हिसाब मांगा गया। आतंक को बढ़ावा देने वाले जेकेएलएफ और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों पर भी कड़ी कार्रवाई की गई। इसका नतीजा यह हुआ कि घाटी में पत्थरबाजी की घटनाएं कम हो गईं। क्योंकि यही लोग युवाओं को पत्थरबाजी करने के लिए भड़काते थे।
7) विवाद हुआ, लेकिन पत्थरबाजों को कड़ा संदेश दिया2016 में हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद राज्य में बड़ी तादाद में युवा चरमपंथ की तरफ झुके। इसके साथ ही राज्य में पत्थरबाजी की घटनाएं भी बढ़ती गईं। कश्मीर में सेना जब भी आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने जाती, वहां के स्थानीय लोग ही उनका विरोध करते हुए पत्थरबाजी करते थे, जिससे आतंकियों को भाग निकलने में मदद मिल रही थी। अप्रैल 2017 में पत्थरबाजों ने सेना की जीप को रोक लिया। तभी सेना ने पत्थरबाजी के लिए युवाओं को उकसा रहे फारुक अहमद डार को अपनी जीप में आगे बांधा और वहां से निकल गए। सेना के इस कदम को खुली छूट के तौर पर देखा गया। हालांकि, अलगाववादियों और मानवाधिकार संगठनों ने इस पर आपत्ति जताई।
8) पीडीपी के साथ सरकार बनाने का दांव2014 में एकदम उलट विचारधारा वाली पीडीपी के साथ सरकार बनाकर भाजपा ने सभी को चौंका दिया। मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने। उनके निधन के बाद जब महबूबा मुफ्ती सीएम बनीं तो भाजपा ने उन्हें घाटी में फ्री हैंड नहीं दिया और माहौल अपने पक्ष में होते ही सरकार गिरा दी। इसमें संघ से भाजपा में आए महासचिव राम माधव का बड़ा रोल रहा। भाजपा की फरवरी में ही अनुच्छेद 370 से जुड़ा बिल लाने की तैयारी थी, लेकिन पुलवामा हमले की वजह से इसे टाल दिया गया।
रक्षा विशेषज्ञ मेजर जनरल (रिटायर्ड) जीडी. बख्शी बताते हैं कि साझा सरकार में दक्षिण कश्मीर में सुरक्षा बलों की तैनाती का फैसला महबूबा मुफ्ती के हाथों में था। महबूबा ने कहा था कि दक्षिण कश्मीर में भारत की फौज क्यों है? वहां से फौज हटा दी गई। इसके बाद वहां बुरहान वानी और जाकिर मूसा जैसे आतंकी पनपे। अब वहां सुरक्षा बलों की तैनाती है। अनुच्छेद 370 हटने से वहां शांति आएगी तो चुनाव प्रक्रिया भी बाकी राज्यों की तरह बिना किसी धांधली के पूर्ण कराई जा सकेगी।
2019 में जब भाजपा को 2014 से भी बड़ा बहुमत मिला तो गृह मंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 हटाने की योजना पर काम शुरू कर दिया। सरकार राज्य में चुनाव से पहले ही अनुच्छेद 370 पर फैसला करना चाहती थी। इसकी राजनीतिक और कानूनी योजना पर जून से ही काम शुरू हो गया था।
9) सरकार बनते ही अनुच्छेद 370 पर काम शुरू किया
अमित शाह 26 जून को दो दिन के दौरे पर जम्मू-कश्मीर पहुंचे। यहां उन्होंने राज्यपाल से मुलाकात कर सुरक्षा का जायजा लिया। शाह के दौरे के करीब एक महीने बाद 24 जुलाई को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल सीक्रेट मिशन पर श्रीनगर गए। उनके लौटते ही सरकार ने 10 हजार अतिरिक्त जवानों की तैनाती कर दी। अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को जल्द से जल्द घाटी से लौटने की एडवाइजरी जारी की। यह 30 साल में पहला मौका था जब केंद्र सरकार की तरफ से ऐसी एडवाइजरी जारी की गई। देश को लग रहा था कि राज्य के लोगों को विशेषाधिकार देने वाले अनुच्छेद 35-ए को हटाया जाएगा, लेकिन मोदी सरकार ने कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को ही निष्प्रभावी कर दिया। इसी के साथ 24 घंटे में पुनर्गठन विधेयक पारित कराकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया।
10) देश को 35-ए पर फैसले की उम्मीद थी, सरकार ने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया