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कर्मचारियों का अल्टीमेटम: सिसायी दल घोषणा पत्र में शामिल करें पुरानी पेंशन की बहाली

भोपाल। लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिए पुरानी पेंशन बहाली की मांग बड़ी चुनौती बनती जा रही है। सरकारी कर्मचारियों की पेंशन बंद करने का निर्णय 2004 में तत्कालीन अटल सरकार ने लिया था, जिसका कभी किसी सियासी दल ने विरोध नहीं किया। हालांकि इस बार के चुनाव में कम्युनिष्ट पार्टी आॅफ इंडिया ने अपने घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा शामिल किया है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस सहित किसी भी दल ने अभी तक इस बारे में कुछ कहा नहीं है। दूसरी ओर अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ ने दबाव बढ़ाते हुए सभी राजनीतिक पार्टियों से पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग को घोषणा पत्र में शामिल करने की मुहिम छेड़ दी है।                                      

अभा राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ ने सीपीआई के घोषणा पत्र को फालो करने के लिए सारे सियासी दलों को लिखी पाती                                                                     अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ की सभी राजनीतिक पार्टियों को पत्र लिखकर घोषणा पत्र में नेशनल पेंशन सिस्टम (एनपीएस) को समाप्त कर पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने की मांग के जवाब में सबसे पहले माकपा ने घोषणा पत्र में देश के लाखों कर्मचारियों की पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने का वादा किया है। महासंघ अध्यक्ष  सुभाष लांबा ने बताया कि फैडरेशन के बेनर तले सभी राज्यों के कर्मचारी एनपीएस को समाप्त कर पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने की मांग को लेकर आन्दोलन चलाएं हुए हैं। इसी के दबाव में केरल, उत्तरप्रदेश, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, दिल्ली सहित कई राज्यों ने पुरानी पेंशन स्कीम को बहाल करने का अध्ययन करने के लिए कमेटियों का गठन किया है। इस बीच दिल्ली के मुख्यमंत्री तो विधानसभा में बकायदा प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार तक को भेज चुके हैं। 
2004 से बंद हैं पेंशन
वर्ष 2003 में एक कार्यकारी आदेश के द्वारा तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेई  के नेतृत्व में सत्तारूढ़ एनडीए सरकार ने जनवरी 2004 से पुरानी पेंशन समाप्त कर नयी नेशनल पेंशन सिस्टम को लागू किया था। उसके बाद 2004 के आम चुनाव में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा और  कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आ गई। इस सरकार को वामपंथी पार्टियों का बाहर से समर्थन था। वामपंथी पार्टियों के तीखे विरोध के कारण यूपीए सरकार संसद में पेंशन फंड एंड डेवलपमेंट रेगुलेटरी अथॉरिटी बिल को पारित नहीं कर सकी। 2009 में आम चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व में बिना वामपंथी पार्टियों के समर्थन से पुन: सरकार बनी। तब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने भाजपा के सहयोग नवम्बर,2013 में पीएफआरडीए बिल संसद में पारित कर दिया। केरल, बंगाल व त्रिपुरा की तत्कालीन वामपंथी सरकारों को छोड़ कर बाकी राज्यों में अलग-अलग समय पर एनपीएस को अपने कर्मचारियों पर लागू कर दिया। बाद में यूडीएफ की सरकार ने केरल में भी एनपीएस को लागू कर दिया। यहां तक कि 2018 में त्रिपुरा में पहली बार सत्ता में आई भाजपा सरकार ने भी कर्मचारियों के तीखे विरोध के बावजूद राज्य में एनपीएस को लागू कर दिया। 

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