भोपाल।
केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तहत मध्यप्रदेश में अंतरराष्ट्रीय स्मारकों पर बीते ढाई दशकों से कार्यरत श्रमिकों को अफसरों ने मौखिक फरमान सुनाते हुए एक झटके में निकाल दिया है। इन श्रमिकों का बीते छह महीने से वेतन भुगतान भी नहीं किया गया है, जिससे इनके सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है। ऐसे में प्रदेशभर में स्मारको के सामने धरने पर बैठे श्रमिक इच्छामृत्यु मांग रहे हैं।
केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के 600 श्रमिको को निकाला गया
कैट ने श्रमिकों को निकालने पर स्टे करके रखने के दिए थे आदेश
केंद्रीय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तहत भोपाल मंडल में कार्यरत करीब 600 श्रमिकों को 1 अप्रैल 2019 से जबरिया बाहर निकाल दिया गया है, जोकि बीते 25 सालों से मध्यप्रदेश के राष्ट्रीय धरोहरों पर कार्यरत थे। यह श्रमिक स्मारकों की साफ-सफाई, देख-रेख, मरम्मत आदि की जिम्मेदारी चौबीसों घंटे संभाल रहे थे। इन श्रमिकों को स्मारकों के प्रभारी सरंक्षण सहायकों ने बीते मार्च माह के अंत में मौखिक फरमान सुनाया था कि बजट की कमी के चलते 1 अप्रैल 2019 से सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी। बिना लिखित सूचना और आदेश के मस्टर रोल पर काम करने वालों को निकाल दिया गया। इसके बाद से प्रदेशभर में स्मारको के सामने श्रमिकों ने आंदोलन शुरु कर दिया है।
कैट के स्टे ऑर्डर को भी नहीं माना
जबलपुर कैट कोर्ट (केंद्रीय प्रशासनिक प्राधिकरण) ने 2017 से लेकर कई प्रकरणों में आधा दर्जन याचिकाओं की सुनवाई के बाद यथास्थिति के बाद भी निकाला जा रहा है। हद तो यह है कि ऐसी ही एक याचिका रमेश एवं अन्य वर्सेस एएसआई में 14 फरवरी 2019 को कैट ने 31 दिसंबर 2018 को निकाले गए करीब 100 श्रमिकों को बाहर करने संबंधी आदेश पर स्थगन देते हुए दोबारा काम पर रखने के स्पष्ट आदेश दिए थे। साथ ही अन्य किसी भी श्रमिक को नहीं निकालने के भी आदेश दिए थे। बावजूद इस आदेश को नहीं माना गया और श्रमिकों को 1 अप्रैल 2018 से निकाल दिया गया है।
श्रमिक धरने पर, मांगी इच्छामृत्यु
खजुराहो, सागर, जबलपुर, सांची, विदिशा, ग्यारसपुर, बडोह पठारी, मांडू, बुरहानपुर, मंदसौर, ग्वालियर, रीवा, रायसेन में स्मारको के सामने श्रमिक परिवारों के साथ धरने पर हैं। श्रमिकों ने बहाली नहीं होने पर भूखों मरने के बजाय जिम्मेदार अफसरों से इच्छामृत्यु मांगी है।
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ठेकेदारी मंजूर नहीं, बिना शर्त हो वापसी
सभी श्रमिकों को तत्काल काम पर बिना शर्त वापस लिया जाकर सेवाएं निरंतर जारी रखी जाए, जिनको अधीक्षण पुरातत्व के मौखिक आदेश का हवाला देकर सारे संरक्षण सहायकों ने निकाल दिया है। किसी को भी ठेकादारी प्रथा में जबर्दस्ती नहीं ड़ाला जाए। भुखमरी का शिकार हो रहे श्रमिकों का पांच माह का बकाया वेतन का भुगतान किया जाए।
-दीपक रायकवार, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, अभा कर्मचारी एवं श्रमिक संघ सेवा संगठन
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सेंक्शन के लिए प्रपोजल भेजा है
किसी को नहीं निकाला गया है, गलतफहमी है। यह सभी इयरली स्टीमेट सेंक्शन के बाद रखे जाते रहे हैं, इस बार सेंक्शन के लिए प्रपोजल भेजा गया है। चुनावी आचार संहिता के कारण देरी हो रही है। श्रमिक आंदोलन नहीं करें, बल्कि काम पर लौटें, उनकी सेवाएं सेंक्शन आते ही आगे निरंतर रहेंगी। साथ ही पुराना पांच महीने का वेतन भी उनको तत्काल भुगतान कर दिया जाएगा।
- भुवन विक्रम, अधीक्षण, पुरातत्वविद्, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल
केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तहत मध्यप्रदेश में अंतरराष्ट्रीय स्मारकों पर बीते ढाई दशकों से कार्यरत श्रमिकों को अफसरों ने मौखिक फरमान सुनाते हुए एक झटके में निकाल दिया है। इन श्रमिकों का बीते छह महीने से वेतन भुगतान भी नहीं किया गया है, जिससे इनके सामने भूखों मरने की नौबत आ गई है। ऐसे में प्रदेशभर में स्मारको के सामने धरने पर बैठे श्रमिक इच्छामृत्यु मांग रहे हैं।
केंद्रीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के 600 श्रमिको को निकाला गया
कैट ने श्रमिकों को निकालने पर स्टे करके रखने के दिए थे आदेश
केंद्रीय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के तहत भोपाल मंडल में कार्यरत करीब 600 श्रमिकों को 1 अप्रैल 2019 से जबरिया बाहर निकाल दिया गया है, जोकि बीते 25 सालों से मध्यप्रदेश के राष्ट्रीय धरोहरों पर कार्यरत थे। यह श्रमिक स्मारकों की साफ-सफाई, देख-रेख, मरम्मत आदि की जिम्मेदारी चौबीसों घंटे संभाल रहे थे। इन श्रमिकों को स्मारकों के प्रभारी सरंक्षण सहायकों ने बीते मार्च माह के अंत में मौखिक फरमान सुनाया था कि बजट की कमी के चलते 1 अप्रैल 2019 से सेवाएं समाप्त कर दी जाएंगी। बिना लिखित सूचना और आदेश के मस्टर रोल पर काम करने वालों को निकाल दिया गया। इसके बाद से प्रदेशभर में स्मारको के सामने श्रमिकों ने आंदोलन शुरु कर दिया है।
कैट के स्टे ऑर्डर को भी नहीं माना
जबलपुर कैट कोर्ट (केंद्रीय प्रशासनिक प्राधिकरण) ने 2017 से लेकर कई प्रकरणों में आधा दर्जन याचिकाओं की सुनवाई के बाद यथास्थिति के बाद भी निकाला जा रहा है। हद तो यह है कि ऐसी ही एक याचिका रमेश एवं अन्य वर्सेस एएसआई में 14 फरवरी 2019 को कैट ने 31 दिसंबर 2018 को निकाले गए करीब 100 श्रमिकों को बाहर करने संबंधी आदेश पर स्थगन देते हुए दोबारा काम पर रखने के स्पष्ट आदेश दिए थे। साथ ही अन्य किसी भी श्रमिक को नहीं निकालने के भी आदेश दिए थे। बावजूद इस आदेश को नहीं माना गया और श्रमिकों को 1 अप्रैल 2018 से निकाल दिया गया है।
श्रमिक धरने पर, मांगी इच्छामृत्यु
खजुराहो, सागर, जबलपुर, सांची, विदिशा, ग्यारसपुर, बडोह पठारी, मांडू, बुरहानपुर, मंदसौर, ग्वालियर, रीवा, रायसेन में स्मारको के सामने श्रमिक परिवारों के साथ धरने पर हैं। श्रमिकों ने बहाली नहीं होने पर भूखों मरने के बजाय जिम्मेदार अफसरों से इच्छामृत्यु मांगी है।
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ठेकेदारी मंजूर नहीं, बिना शर्त हो वापसी
सभी श्रमिकों को तत्काल काम पर बिना शर्त वापस लिया जाकर सेवाएं निरंतर जारी रखी जाए, जिनको अधीक्षण पुरातत्व के मौखिक आदेश का हवाला देकर सारे संरक्षण सहायकों ने निकाल दिया है। किसी को भी ठेकादारी प्रथा में जबर्दस्ती नहीं ड़ाला जाए। भुखमरी का शिकार हो रहे श्रमिकों का पांच माह का बकाया वेतन का भुगतान किया जाए।
-दीपक रायकवार, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, अभा कर्मचारी एवं श्रमिक संघ सेवा संगठन
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सेंक्शन के लिए प्रपोजल भेजा है
किसी को नहीं निकाला गया है, गलतफहमी है। यह सभी इयरली स्टीमेट सेंक्शन के बाद रखे जाते रहे हैं, इस बार सेंक्शन के लिए प्रपोजल भेजा गया है। चुनावी आचार संहिता के कारण देरी हो रही है। श्रमिक आंदोलन नहीं करें, बल्कि काम पर लौटें, उनकी सेवाएं सेंक्शन आते ही आगे निरंतर रहेंगी। साथ ही पुराना पांच महीने का वेतन भी उनको तत्काल भुगतान कर दिया जाएगा।
- भुवन विक्रम, अधीक्षण, पुरातत्वविद्, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल