नई दिल्ली
एयर फोर्स चीफ बी. एस. धनोआ ने सोमवार को साफ कहा कि इंडियन एयर फोर्स मारे गए लोगों की संख्या नहीं गिनती, यह काम सरकार का है। दरअसल, पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर आत्मघाती हमले के बाद इंडियन एयर फोर्स ने पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सबसे बड़े ट्रेनिंग कैंप पर 26 फरवरी को कार्रवाई की। सरकार ने 26 फरवरी को हुई एयर स्ट्राइक में कितने लोग मारे गए, इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया है। वहीं, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने रविवार को कहा कि इस कार्रवाई में '250 से ज्यादा' आतंकी ढेर हुए। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कौन गिनता है कि युद्ध में कितने लोग मारे गए और यह गिनती कैसे होती है। आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब।
कौन गिनता है?
युद्ध में हताहतों की संख्या कौन गिनता है? कोई भी नहीं, क्योंकि हर कोई आकलन करता है। किसी संघर्ष या युद्ध में मरने वालों का कोई 'प्रामाणिक' आंकड़ा नहीं होता, खासकर तब जब बड़ी तादाद में लोग मारे गए हों। इसका सिर्फ आकलन किया जाता है। जब संघर्ष में 2 देश शामिल होते हैं तो यह और भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि मरने वालों की संख्या गिनने की जिम्मेदारी स्थानीय संस्थाओं पर होती है और सरकार जैसा चाहती है, वे वैसे ही काम करती हैं। बड़े पैमाने पर हुए संघर्ष के मामलों में हालांकि संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाएं मरने वालों की संख्या बताती हैं लेकिन वह भी मोटे तौर पर आकलनों पर ही निर्भर रहता है।
कैसे गिना जाता है?
शत्रुतापूर्ण माहौल में मरने वालों की गिनती ऐक्टिव और पैसिव सर्विलांस दोनों के संयुक्त इस्तेमाल के जरिए की जाती है। ऐक्टिव सर्विलांस में शवों की गिनती या घरों का सर्वे किया जाता है और बाद में स्थापित सैंपलिंग टेक्निक की मदद से तय किया जाता है कि कुल मिलाकर कितने लोग मारे गए हैं। दूसरी तरफ, पैसिव सर्विलांस में मीडिया, अस्पतालों, मुर्दाघरों, लॉ एनफोर्समेंट एजेंसियों जैसे तीसरे पक्ष से मिले आंकड़े शामिल होते हैं। उदाहरण के तौर पर, यमन में संयुक्त राष्ट्र के आकलन के मुताबिक जनवरी 2017 तक युद्ध में 10,000 लोगों की मौत हुई थी। इसके लिए यूएन ने अस्पतालों से मिलीं रिपोर्ट्स पर यकीन किया।
समस्याएं
आंकड़े इस पर निर्भर करते हैं कि इसके लिए इनपुट कौन देता है। उदाहरण के तौर पर, 1994 में रवांडा में हुए जातीय नरसंहार में मारे गए लोगों की तादाद 5 लाख से 10 लाख के बीच है। इसी तरह, इस्लामिक स्टेट के खिलाफ इराक के संघर्ष में कितने आम लोग मारे गए, इसका कोई सटीक आंकड़ा नहीं है। इसकी वजह यह है कि अमेरिका द्वारा सिर्फ उन्हीं आंकड़ों को माना गया जिन्हें IS को काउंटर करने वाली गठबंधन सेना ने बताया।
किसी संघर्ष में कितने लोग मारे गए, इसके आंकड़े अलग-अलग होते हैं क्योंकि संबंधित देशों के दावे अलग-अलग होते हैं। इसकी विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि इन आंकड़ों को कौन बता रहा है और इसे कितनी बार बताया गया है।