प्रदेश के साढ़े तीन लाख वनवासी अब वनभूमि से बेदखल नहीं किए जाएंगे। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राज्य सरकार को स्टे मिल गया है। अब सरकार पिछली सरकार द्वारा अपात्र मानकर खारिज किए गए आवेदनों की फिर से जांच कराएगी और पात्र वनवासियों को पट्टे देगी। जनजातीय कार्य विभाग ने इसकी प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।
गुरुवार शाम को आदिम जाति कल्याण मंत्री ओमकार सिंह मरकाम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि 13 फरवरी को दिए कोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी। कोर्ट ने सरकार की दलीलें सुनते हुए पुराने फैसले पर स्टे दे दिया है। अब सरकार आदिवासियों को उनका हक दे सकेगी।
मंत्री ने प्रदेश की पिछली सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इस कारण साढ़े तीन लाख से ज्यादा आदिवासियों को उनके घर से बेदखल करने की नौबत आ गई थी। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने जिन्हें अपात्र घोषित किया है, उनमें पात्र भी हैं, जिन्हें अब परीक्षण कर पट्टे दिए जाएंगे।
अपात्र घोषित करने वालों पर भी कार्रवाई
- राज्य सरकार वन अधिकार पट्टे के लिए आए आवेदनों का परीक्षण करने वाले अफसरों पर कार्रवाई की तैयारी कर रही है। मंत्री मरकाम ने बताया कि पिछली सरकार के समय जिन अफसरों ने आवेदनों का परीक्षण किया और उन्हें अपात्र घोषित किया है। यदि वे अब पात्र पाए जाते हैं तो संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई की जाएगी।
13 फरवरी को आया था ये फैसला
- यहां बता दें कि 13 फरवरी को जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच ने 16 राज्यों के करीब 11.8 लाख आदिवासियों के जमीन पर कब्जे के दावों को खारिज करते हुए राज्य सरकारों को आदेश दिया था कि वे अपने कानूनों के मुताबिक जमीन खाली कराएं। कोर्ट ने 16 राज्यों के मुख्य सचिवों को आदेश दिया था कि वे 24 जुलाई से पहले हलफनामा दायर कर बताएं कि उन्होंने तय समय में जमीनें खाली क्यों नहीं कराईं।
ये है मामला
- सुप्रीम कोर्ट में राज्यों द्वारा दायर हलफनामों के अनुसार वन अधिकार अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों द्वारा किए गए लगभग 11,72,931 (1.17 मिलियन) भूमि स्वामित्व के दावों को विभिन्न् आधार पर खारिज कर दिया गया था। इनमें वो लोग शामिल हैं जो कम से कम तीन पीढ़ियों से भूमि पर काबिज होने के सबूत नहीं दे पाए।