बनासकांठा
गुजरात में अंतरराष्ट्रीय सीमा के पिलर नंबर 960 के दूसरे ओर अक्सर पाकिस्तानी रेंजर्स के जवान एक हिंदू मंदिर में बैठे नजर आ जाते हैं। सिंध प्रांत में स्थित करुंझर पहाड़ी पर तैनात पाकिस्तानी रेंजर्स के जवान यहां पर बने एक एक प्राचीन हिंदू मंदिर का इस्तेमाल अपनी आउट पोस्ट के रूप में करते हैं। खास बात यह कि पाकिस्तान के बोडेसर गांव में बने इस मंदिर में कई बार उन हिंदू श्रद्धालुओं को भी देखा जाता रहा है, जो कि पाकिस्तान के इस आखिरी गांव में रहते हैं।
बनासकांठा जिले से सटी अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास स्थित इस मंदिर को स्थानीय लोगों की आस्था के केंद्र के रूप में जाना जाता है। अतीत में इस खास मंदिर में भारत और पाकिस्तान दोनों ही देशों के हिंदू श्रद्धालु पूजन अर्चन के लिए जाते रहे हैं। सीमा से सटे जलोया गांव के सरपंच थानाजी बताते हैं कि अक्सर इस मंदिर में पाकिस्तान के बोडेसर और बदतलाव गांव के लोग पूजा के लिए आते हैं। इसके अलावा तमाम मौकों पर इस मंदिर के आसपास पाकिस्तान रेंजर्स के जवानों की चहलकदमी दिखती है। थानाजी कहते हैं कि भारत की तरह पाकिस्तान में भी हिंदू समाज के तमाम लोग रहते हैं जो कि सीमा से सटे इस खास मंदिर में प्रार्थना के लिए जाते हैं।
नागरपार्कर में रहते हैं हिंदू समाज के लोग
दरअसल, यह खास मंदिर पाकिस्तान के जिस नागरपार्कर जिले में स्थित है वहां बड़ी संख्या में हिंदू रहते हैं। इसी जिले के बोडेसर और बदतलाव गांव के लोग इस मंदिर में अपनी पूजा-अर्चना के लिए अक्सर आते दिखते हैं।
अंबाजी मंदिर के अलावा कई और देवस्थान भी
अंबाजी मंदिर के अलावा नागरपार्कर में सच्या माता मंदिर, जैन मंदिर और लखन भारती आश्रम जैसे कुछ और हिंदू देवस्थान हैं, जहां तमाम हिंदू लोग अक्सर पूजा-पाठ के लिए जाते हैं। जलोया गांव में रहने वाले कुछ लोग जो कि 1971 के भारत-पाक युद्ध से पहले पाकिस्तान के नागरपार्कर जिले में रहते थे वह इन तमाम हिंदू मंदिरों की कहानी सुनाते हैं। इन लोगों का कहना है कि अंबाजी मंदिर भी आस्था के ऐसे ही केंद्र के रूप में प्रतिष्ठित है, जिसका इस्तेमाल फिलहाल पाक रेंजर्स के जवान अपनी आउटपोस्ट के रूप में करते हैं।