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महाराष्ट्र में हाजी मस्तान की मौत और तीन दशक बाद फिर बना दलित-मुस्लिम का नया मंच

मुंबई 
तो क्या महाराष्ट्र में तीन दशक बाद एकबार फिर से दलित-मुस्लिम का गठजोड़ बन रहा है? इसी तरह का गठजोड़ तीन दशक पहले अंडर वर्ल्ड डॉन हाजी मस्तान और दलित नेता जोगेंद्र कवाडे ने मिलकर दलित-मुस्लिम अल्पसंख्यक सुरक्षा महासंघ बनाया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में कुछ ऐसा ही मजलिसे-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के असदुद्दीन ओवैसी और बीआरपी बहुजन महासंघ के प्रकाश आंबेडकर के बीच हो रहा है। इस गठबंधन ने 30 साल पहले के उस दौर की याद दिला दी है। दोनों दलों के बीच गठबंधन को दलित-मुस्लिम गठजोड़ के रूप में देखा जा रहा है। आंबेडकर ने राज्य में एनसीपी और कांग्रेस से गठबंधन से इनकार कर AIMIM के साथ गठजोड़ किया है। दोनों दल मजबूती के साथ लोकसभा चुनाव में उतरने वाले हैं। देखना दिलचस्प होगा कि राज्य में इस गठजोड़ को जनता कैसा रिस्पॉन्स देती है। बहरहाल, लोकसभा चुनाव में इस गठजोड़ के बनने के बाद मुकालबा त्रि-स्तरीय दिखाई दे रहा है। 



तीन दशक पहले ऐसे बना था महासंघ 
महाराष्ट्र में दलित-मुस्लिम तीन दशकों बाद वापस एक साथ आए हैं। 1984 के भिवंडी दंगों के बाद, किंगपिन हाजी मस्तान मिर्जा और दलित नेता जोगेंद्र कवाडे ने मिलकर दलित-मुस्लिम अल्पसंख्यक सुरक्षा महासंघ का गठन किया। महाराष्ट्र में पठानों और मिल-लैंड महाराष्ट्रियन गैंग फैलने के बाद बूढ़ा हो चुका मस्तान बॉम्बे अंडरवर्ल्ड से बाहर निकलना चाह रहा था। 

मिर्जा ने छोड़ दी थी तस्करी 
पीपल्स रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष 75 वर्षीय कवाडे ने कहा, 'यह देश के राजनीतिक इतिहास में एक नया अनुभव था। मुझे बाबासाहेब आंबेडकर के बाद औरंगाबाद में मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम बदलने के लिए जाना जाता था। मेरे प्रयास के बाद मिर्जा ने तस्करी छोड़ दी थी और हज गया। उसने अपनी छवि बदल ली। मैं महासंघ का सह-संस्थापक बन गया।' 

डॉन से नेता बना हाजी मस्तान 
कांग्रेस से नाराज और शिवसेना की बढ़ती सांप्रदायिक बयानबाजी से परेशान कुछ मुसलमान ने मस्तान को एक सुधरे हुए ऐसे डॉन के रूप में देखने लगे जो उनकी बाल ठाकरे से रक्षा कर सकते थे। मस्तान को महासंघ बनाने के लिए राजी करने वालों में से एक वरिष्ठ पत्रकार सरफराज आरजू ने कहा, 'हम में से कुछ मस्तान को एक मुस्लिम ठाकरे के रूप में प्रॉजेक्ट करना चाहते थे। हमने सोचा कि वह अपनी भाषा में शिवसेना को जवाब दे सकता है। यह मुसलमानों और दलितों को प्रेरित कर रहा था और कांग्रेस के लिए एक विकल्प लग रहा था।' 

महासंघ की ऐसी थी राजनीति 
महासंघ ने मुसलमानों और दलितों के वोट बैंक के लिए मुंबई और उसके उपनगरों के इलाकों में ध्यान केंद्रित करना शुरू किया। डोंगरी, नागपाडा, बायकोला, धारावी और सायन में दोनों समुदायों के पास पर्याप्त संख्या में प्रतिनिधित्व नहीं थे। दलित राज्य की आबादी का 7 फीसदी और मुस्लिमों का 11 फीसदी हिस्सा शहरी इलाकों में है। न तो मराठा कांग्रेस में मजबूत आवाज थी और न ही वाम दलों में, जो किसी भी तरह से जाति या समुदाय की बात करने से कतराते थे। लेकिन महासंघ तब लड़खड़ाया जब कांग्रेस-बनाम-सेना की बहस ने विभाजनकारी मोड़ ले लिया और अल्पसंख्यकों ने सत्तारूढ़ दल के पीछे एकजुट होने का विकल्प चुना। 

मस्तान की मौत के बाद प्रयोग हुआ ध्वस्त 
कवाडे ने कहा, '1994 में मस्तान की मौत के बाद दलित-मुस्लिम प्रयोग ध्वस्त हो गया। मस्तान ने खुद कांग्रेस के एक राजनेता से तब दबाव डलवाया जब उनकी संपत्ति मुकदमेबाजी में चली गई। महासंघ का निधन हो गया क्योंकि हम हाजी मस्तान जैसा दूसरा मुस्लिम नेता को नहीं खोज पाए।' 

पुनरुत्थान का प्रयास, कड़वा अनुभव
 
इस प्रॉजेक्ट का छोटा पुनरुत्थान तब हुआ जब पूर्व पुलिस अधिकारी शमशेर खान पठान ने दलित नेता बबन कांबले के साथ 1 मई, 2012 को अवामी विकास पार्टी की शुरुआत की। कड़वा अनुभव मिलने पर शमशेर पठान ने कहा, 'मैंने इस पार्टी को लॉन्च किया क्योंकि मैं मुसलमानों को सशक्त बनाना चाहता था लेकिन अब मुझे लगता है कि समुदाय के पास कोई राजनीतिक जागरूकता नहीं है और उनका पार्टियों के गुलाम बने रहना तय है, जो उन्हें वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल करते हैं।' 

अब उन्हें भारतीय लोकतांत्रिक गठबंधन और राष्ट्रीय बहुजन आघाड़ी, मुसलमानों और दलितों के एक अन्य गठबंधन के प्रवक्ता के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि माना जा रहा है कि आंबेडकर के वनचित बहुजन आघाडी का दांव सबसे अच्छा हो सकता है। ओवैसी ने उनका समर्थन करने के साथ ही कुछ सीटों पर दो मुख्यधारा के गठबंधनों के लिए समीकरण बनाए। 

ओवैसी का कांग्रेस-एनसीपी पर हमला 
ओवैसी ने कहा, 'मराठों को 10 फीसदी आरक्षण मिला, जबकि बीजेपी सरकार ने मुसलमानों को आरक्षण देने से इनकार कर दिया। दलित और मुसलमान कांग्रेस-एनसीपी में ज्यादा जगह नहीं पाते हैं। कोरेगांव भीमा घटना के बाद, आंबेडकर दलिल समाज के एक विश्वसनीय आवाज बने जबकि मैंने कभी भी मुस्लिमों से किनारा नहीं किया है। हमें साथ आना था'। ओवैसी ने कहा, 'कांग्रेस और एनसीपी का अहंकार पीछे हट जाएगा और शिवसेना-बीजेपी को निश्चित रूप से धर्मनिरपेक्ष वोटों में को बांटने से लाभ होगा।'
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