अयोध्या
राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद केस को आपसी मध्यस्थता से सुलझाने के सुप्रीम कोर्ट
के सुझाव को एक बार फिर पक्षकारों और संतों ने नकार दिया है। पक्षकारों ने
कहा कि अब आपसी बातचीत से इसका हल निकालने की कोई उम्मीद नही दिखती। जब
दोनों पक्ष के लोग कोर्ट का फैसला मानने को तैयार हैं तो अदालत को लंबे समय
से अटके इस मामले में जल्द फैसला सुनाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार
को इसकी सुनवाई 8 हफ्ते के लिए फिर टाल दी है। इस बीच पक्षकारों को
दस्तावेजों के अनुवाद देखने का समय दिया गया है। साथ ही मध्यस्थता से इस
अवधि में केस को सुलझाने की भी सलाह दी है।
वीएचपी कैंप के संत और संत समिति के अध्यक्ष महंत कन्हैया दास ने कहा कि
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान है लेकिन जितने समझौते के प्रयास हुए सब
विफल हो चुके हैं। कट्टरवादी मुस्लिम राम जन्मभूमि पर समझौता करना नहीं
चाहते। ऐसे में बेहतर यही होगा कि सुप्रीम कोर्ट ही प्राथमिकता के आधार इस
पर फैसला दे। अब संत समाज और हिंदू रामभक्त अपना धैर्य खो रहे हैं। महंत ने
कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता करवाना चाहता है तो सीएम योगी
आदित्यनाथ को मध्यस्थता करने का आदेश दे। योगी पहले ही कह चुके हैं कि वह
24 घंटे में इस समस्या का निस्तारण करवा देंगे।
'दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाए सुप्रीम कोर्ट'
राम वल्लभा कुंज के अधिकारी राजकुमार दास ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को
ही दृढ़ इच्छाशक्ति दिखानी चाहिए। अयोध्या में भव्य रामलला का मंदिर बनना
चाहिए। बहुत हो चुका है इंतजार। कोर्ट अब जल्द फैसला करे। कब तक रामलला टाट
में रहेंगे।
मध्यस्थता में सेंकी गईं राजनीतिक रोटियां: मुस्लिम पक्षकार
बाबरी मस्जिद के पक्षकार इकबाल अंसारी का कहना है कि जब दोनों पक्ष के
पक्षकार कोर्ट के फैसले को मानने को तैयार हैं तो बार-बार मध्यस्थता की बात
क्यों की जाती है। अब तक कई बार इसकी कोशिश हो चुकी है। इसमें राजनीतिक
रोटियां ही सेंकी गईं। मुख्य पक्षकारों से बात ही नहीं की गई। अब मुस्लिम
पक्षकार कोर्ट के फैसले को ही मानेंगे। यही बात दूसरे पक्षकार हाजी महबूब
ने भी कही। उन्होंने कहा कि आपसी सुलह से अगर समझौता होता तो यह सबसे
बेहतर होगा पर राजनीति इसे होने नहीं देगी।