रेलिक रिपोर्टर, शाहजहाॅपुर।
राष्ट्रीय विधि विष्वविद्यालय, रांची के कुलपति ने दिया अभिभाषण
मुमक्षु शिक्षा संकुल में चल रहे स्वर्ण जयन्ती समारोह कार्यक्रम के क्रम में विधि महाविद्यालय में राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया, जिसमें प्रमुख रुप से मुख्य अतिथि प्रो0 (डाॅ0) बी0सी0 निर्मल, कुलपति राष्ट्रीय विधि विष्वविद्यालय, रांची ने आज के राष्ट्रीय संगोष्ठी के विषय ’’वर्तमान सामाजिक परिदृष्य में विधि षिक्षा की भूमिका’’ पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि- विधि षिक्षा का उद्देष्य भारतीय संविधान के अनुरुप न्यायपरक होना चाहिए इस उद्देष्य को पूरा करने के लिये केवल अधिवक्ता के रुप में व्यवसाय करने के लिये ही षिक्षा नहीं दी जानी चाहिए, बल्कि उच्च षिक्षा, विधायिका, न्यायधीषों, कानून निर्माता, लोक सेवकों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा उच्च वृत्तिक आचार आदि के बीच सामंजस्य बना रहे। बढते हुये औद्योगिकीकरण के कारण आने वाली समस्याओं एवं उनके समाधान के अनुरुप उद्देष्यपरक विधि षिक्षा दी जानी चाहिये एवं विधि शोध इस रुप में होना चाहिए कि बदलती हुयी सामाजिक एवं औद्योगिक परिस्थितियों में क्रियात्मक ज्ञान प्रदान कर सकें जिससे बदलते हुये आयाम में देष की जरुरतों एवं भारतीय संविधान के आदर्षों को पूरा कर सकें। वैष्वीकरण ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विधि व्यवसाय को बदल दिया है, आज विधि षिक्षा का सम्बन्ध विधिक व्यवसाय से पूर्णता जुडा हुआ है।
अतः समय की मांग है कि हमारे विधि षिक्षा को इस रुप में दिया जाये जिससे हमारे विधि स्नातक विद्यार्थी बदलते हुये वैष्विक बाजार में पूर्ण रुप से अपनी विधिक सेवा प्रदान कर सकें। समय की मांग के अनुसार विधि बदलनी चाहिए और महत्वपूर्ण परिवर्तन यह हो कि ’’क्या हमने पढाया और कैसे पढाया’’ इस पर दायित्वाधीन हो, विधि को उद्देष्यपरक होने के लिये जरुरी है कि विधि षिक्षा के पर्याप्त संसाधन होना चाहिये जिससे कि जनता को सषक्त किया जा सके तथा भविष्य एवं समाज को एक आयाम दिया जा सके। विधि षिक्षा का सम्बन्ध विधि व्यवस्था से है और विधि व्यवस्था का सम्बन्ध लोक व्यवस्था है। कानून का उद्देष्य एवं प्रकृति समाज की परिस्थितियों के अनुसार बदलता है। हर बात को हम चीन या अन्य राष्ट्रों की तुलना करके पूरा नही कर सकते है। हमारे देष की विधि व्यवस्था हमारी सामाजिक परिस्थितियों के अनुरुप होनी चाहिए किन्तु इस वैष्वीकरण के युग में विधि व्यवसाय अन्तर्राष्ट्रीय विषय के रुप में पढा जाना चाहिए। चूंकि अंग्रेजी का महत्व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर है इसलिए इस भाषा पर पकड़ बनाते हुए ही हम अन्तर्राष्ट्रीय प्रावधानों के अनुरुप अपने को सषक्त कर सकते है। नेषनल लाॅ यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों ने विधि की भूमिका को बढाया है। नेषनल लाॅ कमीषन ने विधि की षिक्षा पर प्रकाष डालते हुए कहा कि व्यवसायिक षिक्षा का मुख्य उद्देष्य न्यायोन्मुख षिक्षा है, जन सेवा के उद्देष्य से विधि व्यवसाय किया जाना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए मुमुक्षु षिक्षा संकुल के अधिष्ठाता स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती जी ने कहा कि विधि षिक्षा को विज्ञान की तरह पढ़ते हुए ’विधि विज्ञान’ के रुप में समझने की जरुरत है। विद्यार्थियों का कैम्पस प्लेसमेंट हो, इस उद्देष्य से विधि षिक्षा को केन्द्रित करते हुये अध्यापकों को विद्यार्थियों को विधि के अद्यतन ज्ञान एवं निर्णयों से परिपक्व करना चाहिए। आर्थिक सुधारों एवं अन्तर्राष्ट्रीय करारो के अनुरुप कानून को परिवर्तित करना पडता है । हमारे देष की विधिक व्यवस्था हमारी जरुरतों हमारी दक्षता एवं सामाजिक जरुरतो को देखकर बनायी जानी चाहिए। अध्यापको को अपनी जिम्मेदारी उद्देष्यपकर तरीके से पूरी करनी होगी ताकि विद्यार्थियों को विधि षिक्षा उनकी बदलती परिस्थितियों के अनुसार प्राप्त हो सके। आज के समय में अधिकारों की आंधी में हमारे कर्तव्य की नींव उखड चुकी है। डाॅ0 डी के सिंह, बरेली कालेज बरेली ने विषिष्ट अतिथि के क्रम में बोलते हुए कहा कि हमारी विधिक व्यवस्था एवं षिक्षा व्यवस्था अपने उद्देष्य से भटक चुकी है। षिक्षा का व्यवसायीकरण हो चुका है। अध्यापक का उद्देष्य व्यवसाय परक हो चुका है। प्रारम्भिक षिक्षा से उच्च षिक्षा का काफी अवमूलन हो चुका है, हमे कर्तव्यपरक बनाना होगा। इसी क्रम में विषिष्ट अतिथि के रुप में डाॅ0 एस0पी0 सिंह ने प्रकाष डालते हुए कहा कि हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन मजबूती के साथ करना चाहिए। कर्तव्य निर्वहन में किसी भी प्रकार की अडचन एवं बाधा को स्वीकार नहीं करना चाहिए। एस0एस0 लाॅ के सचिव अवनीष कुमार मिश्र जी ने विधि षिक्षा पर प्रकाष डालते हुए कहा कि जो षिक्षा हम दे रहे है आपकी जरुरत के अनुसार प्रासंगिक होनी चाहिए तभी वह षिक्षा सार्थक होगी। विधि षिक्षा का उद्देष्य चरित्र निर्माण, कर्तव्य परायण एवं देष प्रेम की भावना से ओत-प्रोत होना चाहिए। आज की इस संगोष्ठी में तकनीकी सत्र का भी आयोजन किया गया जिसमें लगभग 150 प्रतिभागियों का शोध प्रपत्र पढा गया। कार्यक्रम में छात्रों की उनकी उपलब्धियों के लिये प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया। सम्मानित होने वाले छात्र श्री आदित्य श्रीवास्तव, कु0 अंजली अग्रवाल, दिव्या सक्सेना, निवेदिता शर्मा आदि रहे। विषय प्रर्वतन हरिचरण यादव ने किया, संचालन पवन कुमार गुप्ता ने किया, अतिथि परिचय डाॅ0 अनिरुद्ध राम द्वारा किया गया। कार्यक्रम में प्रमुख रुप से डाॅ0 जयषंकर ओझा, अनिल कुमार, अषोक कुमार, प्रमोद कुषवाहा, नलनीष चन्द्र सिंह, रंजना खण्डेलवाल, अमित यादव, डाॅ0 रघुवीर सिंह आदि रहे। धन्यवाद ज्ञापन प्राचार्य संजय कुमार बरनवाल द्वारा किया गया।