शाहजहांपुर।
जिस प्रकार के हम कर्म करते है वहीं फिर हमारे जीवन फल बन कर आता है: श्रवणानन्द
श्री शुकदेवानन्द स्नातकोत्तर महाविद्यालय के स्वर्ण जयन्ती महोत्सव के उपलक्ष्य में स्वामी श्री चिन्मयानन्द सरस्वती जी महाराज की अध्यक्षता में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा सप्तम दिवस में श्रीवृन्दावन धाम से पधारे स्वामी श्री श्रवणानन्द सरस्वती जी महाराज ने भगवान के 16100 विवाहों का वर्णन करते हुये कहा की भगवान के विवाहों पर जो लेष आक्षेप करते है उन्हें पता ही नहीं भगवान ने यहां बहुत बड़ा क्रान्ति का काम किया जो कन्याये राजा के यहां बन्दी थी उसका संकल्प था कि जब 100000 हो जायेगी तब सब के साथ विवाह करूंगा भगवान ने उसका उद्धार कर उसकी कैद से इन कन्याओं को छुड़ाया लेकिन जो कन्या दूसरे की कैद में रह जाये उसे समाज स्वीकार नहीं करता उनके पास आत्महत्या ही एक रास्ता था भगवान ने उन्हें स्वीकार कर उन्हें समाज में सम्मान से जीने का अधिकार दिया। उसके पष्चात सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुये बताया की सुदामा जी भगवान के अनन्य भक्त थे । सुदामा जी ने भगवान से कभी कुछ नहीं मांगा फिर भी भगवान ने उन्हें ऐष्वर्य प्रदान किया नवयोगेष्वर संवाद के माध्यम से भागवत धर्म का निरूपण करते हुये बताया कि भागवत धर्म इतना सरल मार्ग है इसमें चाहे व्यक्ति आंख बन्द करके चले या दौडे कोई गिरने का खतरा नहीं है भागवत धर्म है की आप जो भी काया से मन से वाणी से कर्म करते है उसे भगवान को समर्पित करते चले भागवत धर्म हो गया लेकिन ऐसा न हो की अच्छा किया वह हमने और बुरा किया के भगवान ने कर दिया उसके पष्चात हंसापाख्यान चोबीस गुरूओं की कथा का श्रवण करात हुये भिक्षुगीत के माध्यम से कर्म सिद्धान्त का वर्णन करते हुये कहा की भिक्षु ब्राह्मण को लोग पत्थर मारते है उसके भोजन में मलमूत्र त्याग देते लेकिन वह किसी पर नाराज नहीं होता और एक गीत गाता है कहता है की इस जीवन में कोई किसी को सुख दुख नहीं देता न कोई मनुष्य न देखता न ग्रह न काल अगर कोई सुख दुख देने वाला है तो वह है कर्म जिस प्रकार के हम कर्म करते है वहीं फिर हमारे जीवन फल बन कर आता जिसे हम भोगते है उसके बाद अन्तिम उपदेष कलियुग के राजाओं का वर्णन कते हुये पुरे भागवत का सार सुना कर कथा को विराम दिया। महाभागवत, ज्ञान यज्ञ के समापन दिवस पर स्वामी विवेकानन्द जी महाराज एवं स्वामी सर्वेष्वरानन्द जी महाराज का उद्बोधन व आर्षीवाद श्रोताओं को प्राप्त हुआ। महामण्डलेष्वर परमपूज्य स्वामी असंगानन्द जी महाराज जी ने ज्ञान, भक्ति, वैराग्य व दर्षन का उपदेष कर उपस्थित श्रोताओं को आषीर्वाद व परमपूज्य स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज को दीर्घायु होने की कामना की।
मंचपीठ से राजेष्वरानन्द जी महाराज जी का भी आषीर्वाद प्राप्त हुआ। भागवत सप्ताह के अन्तिम दिवस पर विभिन्न साधुओं का आषीर्वाद व पूर्ण लाभ श्रोताओं को प्राप्त हुआ। स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज ने श्रोताओं को अषीर्वाद प्रदान किया। उसके पष्चात महाराज जी ने व्यास जी एवं भागवत जी का पूजन व आरती की।
इस अवसर पर कथा व्यास स्वामी श्रवणानन्द जी महाराज ने कथा में सहयोग के लिये जनपद के गणमान्य नागरिकों और महाविद्यालय के स्टाफ को रुद्राक्ष की माला आषीर्वाद स्वरुप प्रदान की। आचार्य रामऔतार ने स्वस्ति वाचन कर आरती निराजन का कार्य सम्पन्न कराया।
इससे पूर्व गायत्री महायज्ञ के मुख्य यजमान डाॅ0 के0के0 शुक्ला ने पूजन एवं यज्ञ किया यज्ञ में पूर्ण आहूति स्वामी चिन्मयानन्द सरस्वती ने दी। कथा भागवत में मुख्य यजमान रजनीष गुप्ता सहित डाॅ0 रवि मोहन, डाॅ0 सत्यप्रकाष मिश्र, श्री रामचन्द्र सिंघल, कैलाष नारायण अग्रवाल, सुनील सिंघल, ओमकार मनीषी, दिनेष लवानिया, आचार्य पद्मनाभ, आचार्य रामकुमार मिश्र, प्राचार्य डाॅ0 अवनीष मिश्र, श्रीप्रकाष डबराल, चन्द्रभान त्रिपाठी, डाॅ0 अनुराग अग्रवाल, डाॅ0 प्रभात शुक्ल, डाॅ0 प्रषान्त अग्निहोत्री, डाॅ0 श्रीकान्त मिश्र जगतबन्धु रघुवंषी आदि प्रमुख रुप से उपस्थित रहे। कथा में प्रसाद वितरण व भण्डारे का भी आयोजन किया गया।