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राहुल गांधी के आंकलन से ज्यादा मोदी के सूट की कीमत

शमिन्दर सिंह ‘शम्मी’, शाहजहांपुर.

लीजिये कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी की इच्छा पूरी हो गई, नहीं पहनेंगे देश के प्रधानमंत्री वो सूट जिसकी कीमत कांग्रेस के युवराज ने दस लाख रूपये दिल्ली चुनावों में लगाई थी, नीलाम हो रहा है वह सूट जिसे लेकर विपक्षी पार्टियों के पेट में दर्द हो रहा था, क्योंकि वह सूट वास्तव में देश के उस प्रधानमंत्री के शरीर पर शोभायमान था जिसने अमेरिका के आगे सर झुकाने के बजाए देश का गौरव बढ़ाया। यह सूट नया नहीं था जब मोदी प्रधानमंत्री नहीं थे तब यह सूट उन्हें उनके एक चाहने वाले ने दिया था, लेकिन सहेज कर रखने वाले ने उसे इस तरह रखा था कि वह अभी भी नया लग रहा था। उस सूट की कीमत दस लाख की बजाये दो करोड़ से ऊपर पहुंच गयी। भगवान भला करे बोली लगाने वालों का, जिनकी नजरों में उस सूट की कीमत रूपयों में नहीं उनकी मोदी में विश्वसनीयता की है।

राहुल गांधी के आंकलन से ज्यादा मोदी के सूट की कीमत
राहुल के दस लाख से दो करोड़ से भी ऊपर पहुंच गयी बोली
 
लेकिन पुराने कांग्रेसियों की पाठशाला में पाठ पढ़ने वाले विदेशी शिक्षा प्राप्त युवराज ने कांगेसियों का पुराना ही राग अलापना शुरू कर दिया, युवराज पले-बढ़े तो विदेश में लेकिन भारतीय के लिये वह पप्पू ही रहे। जब से राजनीति में आए, अपने आप तो किसी न किसी तरह पास हो गये, लेकिन बाकी कांगेस और कांग्रेसियों की धज्जिजयां उड़ा दी। जो काम पिछले 60 सालों से सारा विपक्ष एक जुट होकर न कर सका वह युवराज पप्पू ने कर दिखाया। कांगे्रस को यथार्थ के धरातल पर खड़ा कर दिया।
रही बात सूट की तो विदेशी और ब्रांडेड सूट या कपड़े क्या कांग्रेसी और क्या नेहरू गांधी परिवार के लोग ही पहनना जानते है। राहुल बाबा के पिता राजीव गांधी की जब हत्या हुई थी तो उनके शव को भी उनके बूटों के आधार पर ही पहचाना गया था और वह बूट लोट्टो के थे।
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के उस सूट की नीलामी हो रही है जो उन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान पहना था। सूट पर नरेन्द्र दामोदर दास मोदी धारियों में लिखा हुआ था। इस सूट की कीमत को कांग्रेस के होनहार नेता राहुल गांधी ने दस लाख रुपए की कीमत का बता कर दिल्ली की गलियों में लोगों से पूछा कि क्या एक चाय वाला इतना महंगा सूट पहन सकता है? उन्हीं की पार्टी कांग्रेस के हर छोटे-बड़े नेता के लिए यह एक चुनावी मुददा बन गया। दिल्ली के चुनावी दंगल में इस सूट पर लिखे हुए नरेन्द्र मोदी के नाम को भाजपा के विरोधियों ने खूब बांचा। 
क्या प्रधानमन्त्री को इतना भी हक नहीं है कि वह अपने किसी शुभ चिन्तक की इच्छा का मान रखते हुए उसकी दी गई भेंट का सम्मान कर सके? इन कांग्रेसियों को कौन समझाये कि वे तो उसे ही गरीब मानते हैं जिसके कपड़े फटे हुए हों। एक चाय वाला अगर प्रधानमन्त्री बन भी गया है तो उसे यह हक किसने दे दिया कि वह अमीरों जैसे कपड़े पहन कर अमरीका के राष्ट्रपति से मिले। कांग्रेसी नेता जब भी अमरीका के राष्ट्रपति से मिलते हाथ में कटोरा लेकर ही मिलते और फरमाते थे कि हुजूर हम तो गरीब मुल्क हैं, हमारी मदद कीजिये। जो कुछ आपसे बचा-खुचा हो हमारी झोली में डाल दीजिये। बेशक कांग्रेसियों ने दिल्ली के चुनावों में अपने 70 में से 63 प्रत्याशियों की जमानतें जब्त करा दीं मगर उन्हें दस लाख का सूट मिल गया। उन्होंने सोचा चलो कुछ तो हाथ आया। कांग्रेसी जश्न मना ही रहे थे कि मोदी ने फैसला कर लिया कि इस सूट की नीलामी क्यों न करा दी जाये। कम से कम इसी बहाने कांग्रेसियों के कलेजे में ठंडक तो पहुंचेगी। मगर कांग्रेसी कहां मानने वाले थे। उन्होंने नया तोड़ निकाला कि मोदी जी इस सूट से छुटकारा पाने के लिए इसकी नीलामी करा रहे हैं। वे क्या कोई नेहरू या इन्दिरा गांधी हैं कि उनके किसी सामान को लोग ऊंची बोलियां लगा कर खरीदेंगे। एक चाय वाले के सूट की कीमत कौन देगा? मगर देखिये इस भारत के लोगों का पागलपन कि वे सूट की ऊंची बोलियां करोड़ों में लगा रहे हैं। कांग्रेसी इसे भी ढकोसला बता रहे हैं और कह रहे हैं कि प्रधानमन्त्री ने खिजलाहट मिटाने के लिए ऐसा किया है मगर करोड़ों की बोलियां सुन कर अब कांग्रेसियों को ही उल्टे खिजलाहट होने लगी है कि बेकार में ही उन्होंने सूट का दाम इतना महंगा बता दिया। लोग गंगा की सफाई के नाम पर मोदी के सूट की कीमत ऊंची आंकते ही रहेंगे। बिना वजह ही सूट का मसला उन्होंने खड़ा कर दिया क्योंकि मोदी ने तो इस पर भी एक कदम आगे की चाल चल कर ऐलान कर दिया कि जितना भी पैसा सूट की बिक्री से आयेगा वह गंगा मैया की सफाई पर खर्च होगा। कांग्रेसियों को डर यही सता रहा है कि जो गंगा उनके राज में लगातार मैली होती चली गई उसे मोदी साफ करने के रास्ते ढूंढ रहा है। 
राहुल गांधी ने मोदी की निजी पसन्द पर सवाल खड़ा किया है तो लोगों को यह पूरा हक है कि वे जानें कि माननीय राहुल गांधी की दैनिक जीवनचर्या किस प्रकार की है? वह अचानक क्यों गायब हो जाते हैं और कहां गायब हो जाते हैं? अगर कुछ लोग कल को फिर से श्रीमती सोनिया गांधी की उस लाल साड़ी पर प्रश्न खड़े करने लगें जिस पर एक विदेशी पत्रकार ने पुस्तक लिखी है तो जवाबों से कैसे निपटा जायेगा? यह सवाल भी कुछ लोग खड़े कर सकते हैं कि पं. जवाहर लाल नेहरू प्रधानमन्त्री रहते हुए अपने कपड़े फ्रांस में सिलवाते थे तो क्या तब भारत गरीब नहीं था?
राजनीति कुछ युवाओं का फैशनी शगल नहीं हो सकती कि जिसे जब चाहे वैसे ही अपने विरोधी की आलोचना करने का अस्त्र बना लिया जाये। राजनीति में व्यक्तिगत आरोपों-प्रत्यारोपों की गुंजाइश रहती है मगर वे निजी हित में लोकहित का तिरस्कार करने से सम्बन्धित ही हो सकते हैं। इन बातों का पूरा ध्यान समाजवादी नेता स्व. डा. राम मनोहर लोहिया रखते थे जब वह पं. नेहरू के खर्चीले जीवन की आलोचना करते थे मगर इसमें भी नेहरू के प्रति निरादर का भाव नहीं रहता था। डा. लोहिया कहते थे कि नेहरू बेशक किसी राजकुमार की तरह पले हुए हैं मगर वह अब ऐसे मुल्क के प्रधानमन्त्री हैं जिसकी 90 प्रतिशत से ज्यादा जनता (1947 में) खेती पर निर्भर है। शायद यही वजह थी कि पं. नेहरू ने प्रधानमन्त्री बनने के बाद अपने पूरे जीवनकाल में कभी भी विदेशी साबुन का प्रयोग नहीं किया मगर अपने परिधान को लेकर वह हमेशा संजीदा रहे। 
कांग्रेस के युवराज को भी समझना होगा देश केवल कांगेस का नही है देश देशवासियों से है और उन्हें हक है कि वो किसी को भी देश का प्रधानमंत्री बना सकते हैं। पार्टी चाहे कोई भी भी जब देश के सर्वोच्च पद पर कोई आसीन होता है तो उसका सम्मान करना होता है यह भी क्या पुराने कांग्रसियों ने उन्हें नहीं बताया। उत्तर शायद न हो सकता है, क्योंकि कांग्रेसियों ने कभी भी नेहरू गांधी परिवार के अलावा किसी दूसरे को स्वीकार करने की कोशिश ही नहीं की।

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