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महाराष्ट्र भाजपा-शिवसेना में फिर से टकराव

विजय यादव, मुंबई.

कहने के लिए तो, दोनों आज भी एक साथ सरकारी थाली में खाते है, लेकिन दोनों विचारों से अलग-अलग है। एक कहता है 10-10 बच्चे पैदा करो तो, दूसरा बोलता है एक ही बच्चा शेर जैसा हो। विचारों और मतभेदों की नई जंग महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर से शुरू हो गई है। दिवंगत शिवसेना सुप्रीमो बालासाहब ठाकरे के जन्म दिन पर उद्धव ठाकरे ने एक बार फिर से अपनी टीस भरी तलवार म्यान से बाहर निकाल ली। भाजपा के साक्षी महाराज के बयान पर उद्धव ठाकरे ने करारा हमला कर एक बार फिर से यह बता दिया कि, महाराष्ट्र में अभी भी सब कुछ ठीक नहीं है। 

महाराष्ट्र भाजपा-शिवसेना में फिर से टकराव
मतभेदों की तलवार, आ ही गई म्यान से बाहर

महाराष्ट्र में सरकार न बना पाने का दर्द शिवसेना को आज भी है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का भाजपा पर आक्रामक रुख तो यही दर्शाता है। उद्धव ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र की सरकार हमारी नहीं है। सरकार को हमने तो बस स्थिर किया है, जब कभी ये कुछ गलत करेंगे, हमारे सांसद और विधायक इसके खिलाफ आवाज उठाएंगे।
महाराष्ट्र में शिवसेना के 63 विधायक हैं। इनके समर्थन से 122 विधायकों वाली बीजेपी की महाराष्ट्र की सरकार बहुमत का आंकड़ा पार कर सकी। इसके बदले शिवसेना को 10 मंत्रीपद मिले हैं, लेकिन शिवसेना सरकार में अपनी पहचान नहीं बना सकी है। हाल ही में पर्यावरण कानून में बदलाव को लेकर बीजेपी से लोहा ले चुके शिवसेना नेता और पर्यावरण मंत्री रामदास कदम ने एक बार फिर अपनी ही सरकार पर निशाना साधा। राज्य के पर्यावरण मंत्री ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर गंभीर आरोप मढ़ दिया है। पर्यावरण मंत्री रामदास कदम ने कहा है कि मौजूदा सीएम 2 नंबर की कमाई छोड़ दें। इसके अलावा वह मुंबई में मराठी माणूस को सस्ते घर दिलाएं।

रामदास कदम
रामदास कदम
हालांकि शिवसेना द्वारा फडनवीस सरकार पर निशाना साधना कोई पहली बार नही है। शिवसेना ने पहले भी सरकार पर निशाना साधते हुए आगाह किया था कि वह मराठी मानुष को हल्के में कदापि न लें। शिवसेना और बीजेपी ने विधानसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले 25 सितंबर को गठबंधन तोड़कर अलग रास्ते अख्तियार कर लिए थे। चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। शिवसेना का यह बयान महाराष्ट्र सरकार के लिए अच्छा संकेत नही है।
शिवसेना-भाजपा के बीच भले ही राज्य में रिकनेक्शन हो गया हो, लेकिन आज भी शिवसेना चुनाव के दौरान भाजपा द्वारा दिया गया दर्द भूल नहीं सकी है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर भाजपा ने शिवसेना की जो, दुर्गति की थी, वह किसी से छुपी नहीं है। 25 साल पहले जब दोनों दलों का महाराष्ट्र में गठबंधन हुआ था, तब भाजपा में वाजपेयी और आडवाणी का युग था। आज स्थितियां बदल गई है। पार्टी में आज वही होता है, जो नरेंद्र मोदी और अमित शाह चाहते है। दोनों ही नेता आक्रामक और बदलती राजनीति के सफल रणनीतिकार है। शिवसेना को इनसे अटल-आडवाणी वाली खातिरदारी की उम्मीद नहीं लगानी चाहिए। महाराष्ट्र में भाजपा हमेशा शिवसेना से कमजोर रही, लेकिन लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की आंधी ने राज्य से विरोधियों के साथ-साथ शिवसेना की भी जड़े हिला दी। 

महाराष्ट्र भाजपा-शिवसेना में फिर से टकराव
शिवसेना अपनी कमजोर होती शक्ति से अनजान बनी रही है और विधानसभा चुनाव में पहले की ही तरह बटवारे में आधे से अधिक सीटें मांगने लगी। यहीं से दोनों के बीच टकराव शुरू हो गया। देखते ही देखते 25 साल पुरानी दोस्ती टूट गई। मित्रता की मिशाल कहे जाने वाली दोनों पार्टियां आमने-सामने थी। परिणाम के रूप में शिवसेना को 63 और भाजपा को 121 सीट मिले थे। परंतु जैसे ही सरकार बनाने का मौका आया उनके स्वार्थ टकराने लगे और अपनी-अपनी बात पर अड़े नेताओं ने अलग-अलग बैठने का निर्णय ले लिया। आखिर यह रस्साकसी ज्यादा दिन नहीं चली और शिवसेना ना-ना करते हुए भी सरकार में शामिल हो गई। महाराष्ट्र विधानसभा में 287 सदस्यों में भाजपा के 121, शिवसेना के 63, राकांपा के 41 और कांग्रेस के 42 विधायक है। शिवसेना के नए हमले ने यह साफ कर दिया है कि, राज्य में सब कुछ ठीक नहीं है।

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