स्वामी शुकदेवानन्द जी महाराज के निर्वाण की अर्द्ध शताब्दी के उपलक्ष्य में मुमुक्षु आश्रम में चल रहे मुमुक्षु महोत्सव में आयोजित श्रीमदभागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर श्री वृन्दावन धाम से पधारे विश्वप्रसिद्ध कथावाचक श्रवणानन्द सरस्वती जी महाराज ने गजेन्द्र उपाख्यान के माध्यम से बताया कि संसार में जितने भी लोग है यह आपको नहीं चाहते आपसे चाहते है । सभी का प्रेम स्वार्थपूर्ण है जब इनके स्वार्थ की पूर्ति नहीं होती तब यह प्रेम भी समाप्त हो जाता है जब तक मनुष्य का स्वार्थ संसार के असार लोगों से लगा रहेगा तब तक वह परमात्मा की ओर नही बढ सकता ।
गजेन्द्र प्रकरण के माध्यम से स्वामी जी ने बताया कि संसार में लगने बाली ममता और आषक्ति ही मनुष्य का सबसे बडा बैरी है । गजेन्द्र को जब तक परिवार वालों का सहारा रहा तब तक उसने परमात्मा को नहीं पुकारा जब उसने घर, परिवार को असार समझ लिया परमात्मा को पुकारा और उस परमात्मा ने तत्काल मगर रूपी विपत्ति से बचा लिया अर्थात परमात्मा भक्तवत्सल और शीघ्र प्रसन्न होने वाले हैं उनका स्मरण ही एक मात्र कल्याण का मार्ग है। इसके पष्चात स्वामी जी ने समुद्र मंथन की चर्चा करते हुये बताया कि जब जीव अच्छाई रूपी अमृत की खोज में संसार समुद्र का मंथन करता है तब अनेक बाधाओं के रूप में विष इत्यादि निकलता है। अगर व्यक्ति में सत्य की स्थापना है तो वह व्यक्ति बाधा रूपी विष का पान करके अमृत रूपी अच्छाईयों तक पहुंच जाता है । इसके पष्चात स्वामी जी ने वामन अवतार कथा का निरूपण करते हुये बताया जब संसार में मांगने के लिये व्यक्ति जाता है तब वह छोटा ही होता है चाहें वह स्वयं ईष्वर ही क्यों न हो और देने वाला हमेषा ही श्रेष्ठ और महान माना जाता है। इस संसार में कभी कोई किसी को ठग नहीं सकता जैसे वामन भगवान गये ठगने के लिये थे लेकिन खुद राजा बलि के यहां चैकीदार बनकर रहना पड़ा । स्वामी जी ने बताया कि श्रमद्भागवत कथा के श्रवण से आत्मा पवित्र और कलंक रहित हो जाती है प्रत्येक जीव को ईष्वर अंस जीव अविनासी की अवधारणा को साकार करना चाहिये क्योंकि जीव को निज स्वरूप प्राप्त किये बगैर कल्याण की प्राप्ति नहीं हो सकती । जबतक भक्ति भक्त भगवन्त की महिमा का हृदय में अवगाहन नहीं होगा तबतक यार्थाथ सत्य का बोध भी संभव नहीं है। आगे कहा जो व्यक्ति अहंकार बस कर्ता भाव लेकर फिरता रहता है वह अधोगति को प्राप्त होता है और जो यह निष्चय कर लेता है कि मैं सेवक सचराचर स्वामि रूप भगवन्त वह सच्चे अर्थों में सच्चा भक्त होता है। जिसकी दृष्टि से दीन हीन ही सम्मन प्राप्त करते है वही शीलनिधि भक्ति को प्राप्त करता है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को परोपकार की भावना से ओतप्रोत होना चाहिये रामचरित मानस की चैपाई परहित सरसि धर्म नहि भाई। पर पीड़ा सम नहीं अधमाई।। तथा सुन्दर भजनों का पाठ भक्तों के मन को मोहता रहा ।
जब राम जन्म का प्रसंग आया तब भय प्रकट कृपाला भजन ने खूब तालियां बटोरी। कृष्ण जन्म पर भी श्रद्धालु खूब थिरके । कथा में पूज्य स्वामी चिन्मयानन्द जी महाराज का आषीर्वाद श्रोताओं को प्राप्त होता रहा । कथा के यजमान रजनीष गुप्त ने सपत्नीक कथाव्यास की अर्चना एवं वन्दना की ।
इससे पूर्व यज्ञ के आचार्य ने मुख्य यजमान बी0पी0 पाण्डेय द्वारा गायत्री महायज्ञ का पूजन एवं यजन कराया । आचार्य पूजन और गणपति गौरी पूजन नवग्रह पूजन से पूरा प्रांगण गंुजायमान होता रहा होताओं द्वारा पूर्ण आहुति एवं जयकारे लगाये गये।