बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना जिले में जितनी अराजकता, भृष्टाचार व निरंकुशता है, शायद ही प्रदेश के किसी अन्य जिले में हो। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे पवित्र पेशे भी यहां भृष्टाचार की गंदगी में सनकर अपवित्र हो चुके हैं। इस जिले में शिक्षा महकमें की असलियत जहां उजागर हो चुकी है, वहीं अब बारी स्वास्थ्य विभाग की है। यहां ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर जिस तरह से सरकारी धन की बर्बादी हो रही है, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन दुर्भाग्यजनक बात यह है कि जिम्मेदार पदों पर आसीन लोगों को हकीकत जानने और व्यवस्थाओं को सुधारने में कोई रूचि नहीं है। जिससे हालात दिनों दिन और बद्तर हो रहे हैं।
उप स्वास्थ्य केन्द्र पहाड़ीखेरा का भवन |
यहां इलाज तो दूर स्वस्थ व्यक्ति यदि आये तो हो जाय बीमार
जिला मुख्यालय पन्ना से तकरीबन 40 किमी। दूर सडक मार्ग के निकट स्थित उप स्वास्थ्य केन्द्र पहाड़ीखेरा का शनिवार को पत्रकारों ने जब अवलोकन किया तो यहां की अव्यवस्थाओं को देखकर दंग रह गये। कहने के लिए यहां पर तीन एएनएम पदस्थ हैं लेकिन भवन की स्थिति तथा उपलब्ध संसाधनों की हालत देखकर ही उनकी कार्यक्षमता और योग्यता का अहसास हो जाता है। मरीजों को भर्ती करने के लिए यहां रखे पलंगों में धूल की परत चढ़ी है तथा पालीथीन के बैगों में बांधकर दवाईयों को गोदरेज की दो अलमारियों में रखा गया है। इन दवाइयों का मरीजों के इलाज में इसलिए उपयोग नहीं पाता, क्यों कि पदस्थ स्वास्थ्य कर्मचारियों को इसके लिए जरूरी ज्ञान ही नहीं है। यही वजह है कि ज्यादातर पालीथीन बैगों की गांठें ही नहीं खोली गईं, फलस्वरूप हजारों रू। कीमत की जीवन रक्षक दवाइयां एक्सपायर होकर अनुपयोगी हो जाने की राह देख रही हैं। उप स्वास्थ्य केन्द्र के प्रसव कक्ष की दशा बयां करना मुश्किल है, यहां प्रवेश करने का मतलब संक्रमण को न्योता देना है। हर तरफ खून के धब्बे व दुर्गन्ध यही बताता है कि यहां कभी ठीक तरह से साफ-सफाई नहीं होती।
यहां पदस्थ एएनएम, प्रसव कक्ष का नजारा |
अधिकारी केन्द्रों का नहीं करते निरीक्षण
उप स्वास्थ्य केन्द्रों की हालत देखकर यही प्रतीत है कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी कभी यहां का निरीक्षण नहीं करते। यहां के विजिट रजिस्टर में सिर्फ डॉ. नीरज जैन की निरीक्षण टीम दर्ज है। उन्होंने अपनी टीम में लिखा है कि बिल्डिंग में पुताई की जरूरत है यहां साफ-सफाई का अभाव है। स्वास्थ्य योजनाओं की जानकारी अंकित नहीं है तथा एएनएम को हीमोग्लोबिन, पार्टोग्राफ आदि की जानकारी नहीं है। इन्हें प्रशिक्षण की आवश्यकता है। रिकार्ड रजिस्टर अद्यतन नहीं तथा आवश्यक दवाओं का भी अभाव है। डॉ. जैन की इस टीप का भी कहीं कोई असर नहीं, यहां की व्यवस्थाएं जस की तस हैं।
भर्ती मरीज देते हैं सफाई के लिए पैसा
सबसे विचित्र और अविश्वसनीय सी लगने वाली बात यहां यह पता चली कि उप स्वास्थ्य केन्द्र की साफ-सफाई तभी होती है जब कोई मरीज या प्रसव कराने कोई महिला यहां आती है। भर्ती होने वाले मरीज जब पैसा देते हैं तभी उप स्वास्थ्य केन्द्र की गंदगी साफ हो पाती है। इस बात की पुष्टि एएनएम ने स्वयं करते हुए बताया कि सफाई कर्मी न होने के कारण साफ-सफाई के लिए गांव की सफाई कामगार शान्ति वंशकार को बुला लेते हैं। जब वह यहां की सफाई करती है तो भर्ती मरीज उसे पैसा दे देते हैं। यह राशि सौ रूपए से लेकर दो सौ रूपए तक होती है।