ब्रजनाथ सिंह, सामाजिक विश्लेषक, भोपाल.
बड़ा
शोर सुनते थे हाथी की दुम का...वाली हालत आज अवाम की हो रही है। बजट से
पहली कुछ अपेक्षाएं ऐसी थी कि, जिनको पूरा होने में किसी को शक नहीं था,
लेकिन केंद्रीय बजट से माली हालत सुधारने के बजाय जोशीले अंदाज में
दिवास्वप्न जरुर दिखाए गए हैं। क्या यह मजाक नहीं है कि, अच्छे दिन आएंगे
के शोर में एक ओर तो प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी का दावा और महंगाई कम
करने का दावा किया जा रहा है, दूसरी ओर आयकर की सीमा नहीं बढ़ाई गई है। अब
या तो आय बढ़ी नहीं और बढ़ी है तो उसका फायदा मध्यवर्ग मिलने वाला नहीं। हद
तो यह है कि, 1.54 फीसद की दर से सर्विस टैक्स जरुर लगा दिया गया है। यानि
महंगाई बढ़ाने का सरंजाम ऐसे किया गया है कि जिसके लिए सरकार के बजास
व्यवसायिक संस्थानों को निशाना बनवाया जा सके।
अच्छे
दिनों का नारा उस 40 करोड़ आम हिन्दुस्तानी के लिए था, जिसको साल में
हजार-दो हजार की वेतनवृद्धि भी किसी नियामत से कम नहीं लगती। बावजूद
केंद्रीय वित्त मंत्री ऐसा कुछ भी नहीं कर सके, जिससे यह उम्मीद बंधती हो
कि, अगले वित्तीय वर्ष तक प्रति व्यक्ति राष्ट्रीय औसत कमोबेश कुछ ही
राज्यों में बराबर हो सकेगी।
वृद्धों
के लिए पेंशन योजना का लाभ कितनों को मिलेगा? ईपीएफ और एनपीएफ का आंकड़ा
देशभर में 12 हितग्राही का है। सीधी सी बात है कि, अशिक्षित असंगठित
क्षेत्र के कामगारों, गांव के वरिष्ठ लोगों को इस किश्म की पेंशन योजना से
कोई फायदा नहीं मिलने वाला।
वैसे
भी विदेशी बीमा कंपनियों के लिए दरवाजे खोलने से किसी का भला होना भी है
तो वह विदेशी कंपनियां ही होंगी। पहले की तरह भारतीय जीवन बीमा से रक्षा
सुदृढीकरण के लिए एकमुश्त रकम विदेशी बीमा कंपनियों से मिलने से रही। इसके
साथ ही यह आंशका बलवती हो गई है कि, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा बीमा को
प्रोत्साहित करने से निजी क्षेत्र का दबाव बढ़ जएबा, जिससे अमेरिका जैसी
हालत न हो जाए।
बजट
घाटा को पूरा करने के लिए औद्योगिकीकरण पर जोर दिया गया है, लेकिन वह भी
निजी क्षेत्रों के सहारे। सरकारी क्षेत्र को बढ़ावा देने के बारे में कोई
लांग टर्म स्कीम नहीं है। ऐसे में भूमि अधिग्रहण बिल लागू करने के बाद
उद्योगों के लिए जमीन अधिग्रहण करने का यही आशय होगा कि, निजी क्षेत्रों के
लिए हो रहा है। इसी के साथ यह दावा भी किसी के गले नहीं उतरने वाला कि,
वायदा बाजार मजबूत करने से महंगाई कम होगी। इसका एक ही असर होगा कि, बडे
प्रतिष्ठान और बडे होंगे।
रही
बात मध्यप्रदेश की तो, इस बजट से एक छदाम का फायदा नहीं है, जबकि उम्मीद
थी कि, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रयोगशाला बने इस प्रदेश को तवज्जो
मिलती।