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सिर्फ आयोग ही बना, नहीं बन सकी समग्र पुनर्वास नीति

बृजनाथ सिंह गौर, सीहोर/भोपाल.

बूढ़ी आंखों में अंतहीन इंतजार और आवाज में दर्द है। कमजोर कांपते पैरों से किसी तरह से बची जिंदगी की गाड़ी खींच रहे 72 साल के शंकरलाल, हैदरगंज (सीहोर) को अब भरोसा नहीं रहा कि, जिंदगी के आखिरी दिनों में उनके लिए सरकार कुछ करेगी। हालांकि, उनको दो साल पहले तब उम्मीद बंधी थी, जब वरिष्ठ नागरिक कल्याण आयोग के गठन की खबर आई थी। परन्तु, सालभर के बजाय दो साल बीतने के बाद भी आयोग समग्र पुनर्वास नीति का खाका तैयार नहीं कर सका। नतीजे में नाउम्मीदी में डूबी सांसों का बोझ अब और बढ़ गया है। 

मध्य प्रदेश राज्य वरिष्ठ नागरिक कल्याण आयोग
राज्य वरिष्ठ नागरिक कल्याण आयोग के दो कार्यकाल पूरे

सालभर में बनने वाली नीति निर्माण की शुरुआत तक नहीं


नियमों की धज्जियां उड़ाकर बदली डेपुटेशन की परिभाषा



यह नाउम्मीदी सिर्फ शंकरलाल की ही नहीं है, बल्कि मध्यप्रदेश में रहले वाले करीब 70 लाख वरिष्ठ नागरिकों की है। गौरतलब होगा कि, मध्य प्रदेश राज्य वरिष्ठ नागरिक कल्याण आयोग का गठन इसलिए किया गया था कि, वरिष्ठ जनों के समग्र कल्याण एवं उन्नयन हेतु समग्र पुर्नवास नीति का प्रारुप बनाकर शासन को प्रस्तुत किया जाए। हालांकि, ऐसा दो साल बाद भी नहीं हो सका है। आयोग की प्रस्तावना में हैकि, आयोग वरिष्ठ जनो को एक सम्मान पूर्ण जीवन, संरक्षण एवं समुचित देखभाल देने हेतु कटिबद्ध है। आयोग का यह दायित्व होगा कि वह वृद्धजनों को सहयोगात्मक वातावरण उपलब्ध कराए ताकि वे उद्देश्यपूर्ण जीवन शांति और सम्मान के साथ जी सकें। वर्तमान सेवाओं का उन्नयन हो एवं वरिष्ठ जनो की उन की प्रादेशिक आवश्यकताओं के तहत नई सेवाओं की उपलब्धता प्रदान की जा सके। आर्थिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक देखरेख, शारीरिक सुरक्षा एवं उनकी आवश्यकताओं के तहत सहायता एवं सहयोग प्रदान करने की संभावनाओं को भी ढूंढ़ना था। हालांकि, ऐसा कुछ भी नहीं हो सका। 

विजय धर्माधिकारी
विजय धर्माधिकारी
दो साल हो गए हैं आयोग को बने
सामाजिक न्याय एवं कल्याण विभाग के तहत अध्यक्ष और चार सदस्यों वाला राज्य वरिष्ठ नागरिक कल्याण आयोग का गठन 5 फरवरी,13 में किया गया। इसके बाद 11 फरवरी को,13 को इसका अध्यक्ष विजय धर्माधिकारी, पूर्व आइएएस को बनाया गया। 
आयोग का एक साल के लिए कार्यकाल था, जो फरवरी,2014 में पूरा हो गया। इसके बाद एक साल का एक्सटेंशन हुआ, इसके बाद फरवरी,2015 में यह कार्यकाल भी पूरा हो गया।

संविदा की पोस्ट डेपुटेशन से भरी
कैबिनेट से स्वीकृत आयोग के सेटअप में संविदा से 10 हजार रुपए मासिक मानेदय पर अध्यक्ष के निज सचिव की नियुक्ति हो सकेगी। ऐसा नहीं किया गया, बल्कि नियमों की धज्जियां उड़ाते 55 हजार रुपए मासिक वेतन वाले अफसर (9300-34800 रुपए ग्रेड पे 4200) हाथ करघा संचालनालय (कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग) के मूल वेतन वाले कर्मचारीको डेपुटेशन पर लाया गया। 

संजय उजवणे
संजय उजवणे
10 हजार वाले के बजाय 55 हजार महीने का निज सचिव
सामाजिक न्याय विभाग के आदेश 550/852/2013/26-1, दिनांक 1 जुलाई 2013 से संजय उजवणे, वरिष्ठ निज सहायक, हाथकरघा संचालनालय की सेवाएं सामाजिक न्याय विभाग के तहत वरिष्ठ नागरिक कल्याण आयोग में लेने के आदेश जारी हुए। इस आदेश द्वारा उजवणे की सेवाएं प्रतिनियुक्ति पर तो ले ली गईं, लेकिन बड़े हास्यास्पद रूप से आदेश में यह लेख भी कर दिया गया कि प्रतिनियुक्ति की शर्तें पृथक से जारी की जाएंगी। प्रतिनियुक्ति के मामले में अपने आप में यह मामला अनोखा इसलिए माना जा रहा है, क्योंकि प्रतिनियुक्ति की शर्तों के विधिवत नियम होते हैं और इन नियमों के तहत ही प्रतिनियुक्ति पर एक निर्धारित और निश्चित अवधि के लिये भेजने और लेने की शर्तें तय होती हैं। उजवणे के मामले में ऐसा नहीं हुआ।

आयोग के सेटअप का पालन नहीं
सामाजिक न्याय विभाग के आदेश एफ 2-18/2012/26-2, दिनांक 5 फरवरी 2013 द्वारा वरिष्ठ नागरिक कल्याण आयोग के लिये पदों का सेटअप स्वीकृत किया गया है। इस सेटअप में सिर्फ सचिव पद के लिये ही प्रतिनियुक्ति मान्य है। शेष पद अनुभाग अधिकारी, अध्यक्ष के लिये निज सचिव, सदस्यों के लिये निज सहायक, शीघ्रलेखक, कम्प्यूटर आपरेटर और भृत्य सह चौकीदार के पद मानदेय भुगतान पर स्वीकृत किए गये हैं।

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