राजेंद्र कोठारी, आर्थिक विश्लेषक, भोपाल.
‘‘अच्छे दिन आयेगें’’, का वायदा करके बनी सरकार, पिछले 9 महिनों से परिवर्तन और विकास का भीमसेन पैदा करने की प्रसव पीड़ा का शोर मचाती रही है, लेकिन आज वित्त मंत्री अरूण जेटली ने संसद में जो बजट पेश किया, उससे लगता है कि अर्थ व्यवस्था में क्रांतिकारी सुधार और परिवर्तन और देश की आज की आवश्यकता के अनुसार विकास कार्यक्रमों को लागू करने के लिये इस सरकार के पास न तो कोई दृष्टि है और न ही कोई इरादा ही है।
केवल अच्छे-अच्छे जुमलो और विज्ञापन एजेसिंयों से खरीदे गये प्रचार नारों के सहारे अब तक सरकार जनता को अपने मायाजाल में उलझाने में तो सफल रही है, लेकिन अब जनता की आंखें खुलने लगी है।
1. बजट में सरकार ने अपने वोट बैंक, शहरी मध्य वर्ग और उच्च वर्ग को राहत देने के लिये उम्मीद के अनुरूप, आयकर में कोई नई छूट नही दी गई है। दूसरी ओर आम नागरिक पर 1.54 प्रतिशत की दर से सर्विस टैक्स बढ़ाकर उसकी जेब काटने का काम किया है।
2. कार्पोरेट टैक्स में कमी करने से रोजगार अवसरों की वृद्धि नही होगी केवल कुछ बडे निवेशकर्ताओं को ही लाभ होगा।
3. दो दिन पहले जो रेल बजट आया था उसमें सुरक्षा और यात्राओं की सुविधा पर बड़ा जोर दिया गया था। पर उस बजट में मध्यप्रदेश जैसे पिछडे राज्य जहां पर प्रति हजार किमी 16.2 किमी रेल्वे लाईन है जबकि देश का औसत 24.2 प्रति हजार किमी है। मप्र की गरीब जनता को कोई रेल्वे बजट में कोई सुविधा नही मिली उसी तरह पूरे बजट में आदिवासी, अशिक्षित, गरीब, आमजनता जो देश में 40 करोड़ से अधिक है, उनके लिये यह माना गया कि अमीरों की सम्पन्नता से उनका भी जीवन स्तर सुधर जायेगा। मध्यप्रदेश जैसे पिछडे राज्य और गरीब जनता के लिये इस बजट में कोई मंत्र नही है कि कैसे मध्यप्रदेश की प्रति व्यक्ति आय वर्ष 2016-2017 में राष्ट्रीय औसत के बराबर हो जायेगी।
4. फरवरी 2014 में राज्यों को केंद्रीय हस्तान्तरण से मिलने वाले धन के लिये 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद अब राज्यों को पहले से अधिक केंद्रीय धन प्राप्त होगा। यह संवैधानिक बाध्यता है। इसलिये लगता है कि इस बजट से ही केन्द्र सरकार ने केन्द्र प्रवर्तित और केंद्रीय सहायता अनुदान से चलने वाले विकास और जन कल्याण के कार्यक्रमों में भारी कटौती करने का इरादा कर लिया है। इसीलिये पोषण आहार कार्यक्रम, स्कूलों में मध्यान्ह भोजन, सर्वशिक्षा अभियान और कई अन्य पुराने कार्यक्रमों पर कितना धन खर्च किया जायेगा, इसका स्पष्ट उल्लेख इस बजट में नही मिलता है।
5. देश में जनता की स्वास्थ्य समस्याओं और अलग-अलग राज्यों में स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं जैसे-पंजाब राज्य में 11 प्रतिशत जनता कैंसर रोग से पीडित होना और मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में सर्वाधिक मुंह का कैंसर होना और बच्चों में कुपोषण तथा महिलाओं में अल्परक्तता आदि के संबंध में इस बजट में कोई विशेष चिंता नही दिखाई गई है। इससे लगता है कि सरकार को जनता के स्वास्थ्य की कोई चिंता ही नही है।
6. स्वास्थ्य बीमा और चिकित्सा बीमा को प्रोत्साहन दिये जाने से लगता है कि सरकार स्वास्थ्य और चिकित्सा के मामले में जनता को निजी क्षेत्र के हवाले कर रही है।
7. मेक इन इंडिया की रूपरेखा और योजना इस बजट में भी स्पष्ट नही है क्योंकि नई सरकार के कार्यकाल में प्रधानमंत्री जी के जापान, अमेरिका दौरे और चीन, अमेरिका और कई देशों के राष्ट्र्र प्रमुखों के भारत सदभावना दौरे के बाद भी भारत का विदेश व्यापार संतुलन डगमगा रहा है और व्यापार घाटा बढ़ रहा है, जबकि पेट्रोल और डीजल के दाम अर्न्तराष्ट्रीय बाजार में कम हुये है। पिछले एक साल में तो मेक इन इंडिया नारे का कोई जमीनी असर हुआ नही लगता है कि अगले एक साल भी केवल इस नारे का शोर ही मचता रहेगा और दुनिया के बडे देश भारत को एक बडेÞ बाजार के रूप में अपनी कमाई का केन्द्र बनाने में सफल होते रहेगें।
8. वायदा बाजार को मजबूत करने के सरकार के इरादे से थोक और फुटकर बाजार में महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकेगा, यह सोच ही अव्यवहारिक है। वायदा बाजार पर सेबी के नियंत्रण से कोई खास लाभ होने वाला नही है बल्कि बडे व्यापारियों को ही फायदा होगा और छोटे व्यापारी उनके दलाल एजेन्ट के रूप में काम करने पर मजबूर होगें।
9. ईपीएफ और एनपीएफ पूरे देश में कुल 12 करोड़ लोगो के लिये है और अशिक्षित असंगठित क्षेत्र के कामगारों, गांव के वरिष्ठ लोगों को इस किश्म की पेंशन योजना का लाभ नही मिल पायेगा और सारी समस्या इसी गरीब अशिक्षित, अकुशल मजदूर वर्ग की है, जिसने सरकार के सपनों को अपना सपना मान लिया और अब वह जुमलों की मार से त्रस्त है और छला हुआ महसूस कर रहा है।
जुमलो के शोर में परेशान जनता
फ़रवरी 28, 2015
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