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जशपुर में चंगाई से लेकर घर वापसी तक का महासंग्राम

शिखा दास, जशपुर/रायपुर.
 
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में प्रतिशत के हिसाब से राज्य की सबसे ज्यादा ईसाई आबादी रहती है। स्वास्थ्य, शिक्षा और कानूनी सहायता के जरिए ईसाई मिशनरी आदिवासियों को चर्च में ले गए तो यहीं से भाजपा नेता दिलीप सिंह जूदेव ने उनकी हिंदू धर्म में वापसी का सघन अभियान चलाया। 


आदिवासियों के धर्मान्तरण और घर वापसी को लेकर टकराव

1860 से इसाईकरण के नतीजे में हुआ हैं सर्वाधिक धर्मान्तरण


अब भगवा ब्रिगेड की प्रयोगशाला बन रहीं हैं ईसाई मिशनरियां


दरअसल, 1860 से इसाई मिशनरियों ने जशपुर में धर्मान्तरण के लिए स्वास्थ्य और शिक्षा के साथ ही सेवा को माध्यम बनाया। भोले भाले आदिवासियों को बडेÞ देव और बजरंगबली की ही तरह ईसा मसीह को देवता बनाकर मढियों से लेकर घरों की दीवारों तक पर टंगवा दिया। आदिवासी भी बाकी देवताओं की तरह बकरे और नारियल चढ़ाते रहें। हालांकि, बाद में एशिया दूसरा सबसे बड़ा गिरजाघर बनने से परिदृश्य ही बदल गया। गिरजाघरों का विकास होने और अंग्रेजी भाषा के ज्ञान से चर्च में प्रार्थना तक ही धर्मान्तरित आदिवासी सिमट गए।

आज जशपुर का साक्षरता प्रतिशत राज्य में सबसे अधिक है तो यहां से बस्तर तक ईसाई और हिंदू संगठनों के बीच तकरार बढ़ रही है। जशपुर बस स्टैंड में खड़े कुनकुरी इलाके के जोग साय अपनी नाक से बीड़ी का धुंआ निकालते हुए दार्शनिक अंदाज में कहते हैं, जशपुर सबके लिए प्रयोगशाला है। ईसाई मिशनरी के लिए भी और भगवा संगठनों के लिए भी। 50 साल के होने को आए जोग साय बताते हैं कि किस तरह आदिवासी बहुल इस इलाके में 1860 के आसपास ईसाई मिशनरियों का प्रवेश हुआ और किस तरह 1952 में संघ ने देश में अपना पहला कल्याण आश्रम जशपुर में खोला। उसके बाद जशपुर के ही दिलीप सिंह जूदेव ने कैसे जशपुर समेत पूरे मध्य भारत में ईसाई संगठनों में गए आदिवासियों के पैर धोकर हिंदू धर्म में ‘घर वापसी’ का अभियान चलाया। कैसे फिर एशिया का दूसरा सबसे बड़ा चर्च कुनकुरी इलाके में बनाया गया।

कानूनी मदद देकर मिशनरियों ने बढ़ाई पैठ
ब्रिटेन के एक विश्वविद्यालय से स्रातक कुनकुरी के रहने वाले अभय खाखा बताते हैं, इस इलाके में शिक्षा या स्वास्थ्य के बजाए ईसाई मिशनरी ने शुरुआती दौर में कानूनी सहायता देकर आदिवासियों का दिल जीता। अंग्रेजी सरकार की कचहरियों से मिलने वाला नोटिस किसी आदिवासी के लिए बंदूक की गोली से कहीं अधिक खतरनाक होता था। ऐसे में ईसाई धर्म प्रचारकों ने आदिवासियों के लिए अबूझ भाषा में मिलने वाले सरकारी नोटिसों के मामले में कानूनी मदद की। 


सहानुभूति और खाने का सामान पाकर आदिवासियों ने ईसाई धर्म स्वीकार करना शुरू किया, जिसका सही ढंग से मतलब तक नहीं जानते थे। आज की तारीख में छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले की पहचान राज्य के सर्वाधिक ईसाई बहुल इलाके के तौर पर है, जहां 8,51,669 की कुल आबादी में से लगभग 43 फीसदी आबादी ईसाइयों की है। 65.37 फीसदी आदिवासियों वाले इस इलाके में राज्य के श्रेष्ठतम स्कूल-कॉलेज हैं। यही कारण है कि बस्तर जैसे दूसरे आदिवासी बहुल इलाकों में जहां साक्षरता दर 54.40 प्रतिशत है, वहीं जशपुर में यह आंकड़ा 67.92 प्रतिशत है।

मूल संस्कृति से आदिवासियों को काटा मिशनरियों ने
वनवासी कल्याण आश्रम से जुड़े हुए दिलमनरति मिंज का कहना है कि सभी लोगों ने आदिवासी समाज पर दबाव और प्रलोभन दे कर उन्हें उनकी संस्कृति से काटने का काम किया है। वह कहते हैं, आदिवासी भी हिंदू समाज का ही हिस्सा हैं लेकिन जब उनको, उनकी जड़ों से काटा गया तो हिंदू समाज उनके पक्ष में खड़ा होने नहीं आया। हमारा संगठन आदिवासी समाज को उनकी सभ्यता, संस्कृति में बनाए और बचाए रखने की कोशिश में जुटा है। मिंज का दावा है कि जशपुर समेत मध्य भारत में आॅपरेशन घर वापसी चलाने वाले दिलीप सिंह जूदेव के कारण ही आदिवासी समाज बच पाया। बावजूद अभी भी ईसाई संगठन और मिशनरियां धर्मांतरण में जुटे हैं। 


तेजी से घट रही है ईसाई धर्म मानने वालों की संख्या
छत्तीसगढ़ क्रिश्चियन फोरम के महासचिव अरुण पन्नालाल का दावा हैकि पिछले कुछ सालों में राज्य में ईसाई धर्म को मानने वालों की संख्या घटी है। उनका कहना है कि अलग-अलग इलाकों में उनकी जनसंख्या वृद्धि दर में भी कमी आई है। पन्नालाल तर्कों के साथ कहते हैं, हम पर धर्मांतरण का आरोप धार्मिक कारणों से नहीं लगाया जाता, बल्कि इसके पीछे का कारण राजनीतिक है। जाहिर है, दोनों तरह के दावों के बीच ईसाई और हिंदू संगठनों के बीच तकरार की घटनाएं जशपुर से लेकर बस्तर तक बढ़ी हैं। पिछले कुछ सालों में ईसाई संगठनों पर हमले और मुकदमे की 270 से अधिक घटनाएं राज्य के अलग-अलग हिस्सों में सामने आई हैं। ईसाई धर्म के प्रसार के लिए काम करने वाली संस्था इवैंजेलिकल फेलोशिप आॅफ इंडिया के मध्यक्षेत्र के महासचिव रेवरेंड अखिलेश एडगर कहते हैं कि, छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार आने के बाद आरएसएस समेत अन्य हिंदूवादी संगठनों के हमले ईसाई समाज पर बढ़े हैं। हालांकि कुनकुरी के हेमंत कुमार नायक अपने को हिंदू मानते हैं। वह दावा करते हैं कि ईसाई मिशनरी ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो काम किया है, उसी के कारण आदिवासी ईसाई समाज की ओर झुके। जो काम सरकार को करना चाहिए था, ईसाई मिशनरी ने किया। सरकार की अनुपस्थिति के कारण आदिवासी समाज ईसाई बना। आप इसे दबाव कहें, प्रलोभन कहें। समय आ गया है कि, सरकार को अब इस दिशा में काम करना चाहिए।

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