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किसानों को नही मिल रही खाद, कैसे बढ़ेगा उत्पादन..?

रामबिहारी पांडे, सीधी.
 
जिले में खेती अब फायदे के लिये नही जीवकोपार्जन के लिये की जाने लगी है। किसानी इतनी महंगी साबित हो रही है कि किसानों का मोह इस ओर से फिर भंग होने लगा है और दूसरे काम की तलाश में पलायन करना शुरू कर चुके हैं। बीते कुछ वर्षो से सिंचाई की सुविधा हो जाने खाद बीज की उपलब्धता हो जाने के कारण खेती से मुंह मोड चुके किसान लौट कर इस व्यवसाय को अपनाना शुरू कर दिये थे, किंतु 2014 से शुरू हुई प्रशासनिक अव्यवस्था ने किसानों को फिर से खेती में नुकसान होने लगा है। 


किसानों को नही मिल रही खाद, कैसे बढ़ेगा उत्पादन..?
किसानों के माथे पर खिंची चिंता की लकीरें
दोगुने दाम पर भी नहीं मिल पा रही है यूरिया
समितियों में लगाम, बाजार में लूटने की छूट
 


गौरतलब हो कि मप्र सरकार ने वर्ष 2008 से खेती को फायदे का सौदा बनाने का संकल्प लेकर शून्य प्रतिशत ब्याज पर जहां कर्ज देना शुरू किया था वहीं खाद बीज की उपलब्धता सहजता से कराना सुनिश्चित कर दिया था किसानों को समितियों तक पहुंचने में देरी हुआ करती थी वहां पहुंचने के बाद उन्हे खाद समय पर मिल जाती रही नहरों में पानी समय से छोड दिया जाता रहा जिससे जिले का उत्पादन दिन व दिन बढता जा रहा था। लेकिन बीते दो वर्षो से खाद जहां समय पर नही मिल पाती वहीं नहरों में पानी छोडने का कोई समय सीमा निर्धारित नही रहती। जब किसानों की फसलें सूखने लगती है तब पानी छोडा जाता है जब बोनी का समय समाप्त हो जाता है तब उन्हे बीज व खाद उपलब्ध होने की जानकारी दी जाती है। इन सब परिस्थितियों के चलते जिले के किसान खेती को आधुनिक बनाने में कामयाब नही हो पा रहे उनका उत्पादन इतना कम हो जाता है कि उन्हे कर्ज चुकाना मुश्किल हो जाता है। जबकि सहकारिता विभाग जिले का उत्पादन बढाने का दावा करना शुरू कर देता है इतना ही नही खरीदी केन्द्रों में जिले के बाहर से अनाज मंगाकर खरीदी करना बता दिया जाता रहा है, तो उचित मूल्य की दुकानों में जाने वाला अनाज भी इन खरीदी केन्द्रों में पहुंच जाता है। जिससे जिले का उत्पादन का आकडा बढ़ जाता रहा है। इस वर्ष सहकारिता विभाग की बागडोर जिला प्रशासन के हाथ में सौंप दी गई है। प्रशासन ने अपनी मुठ्ठियां भी कडी कर ली है नियम सख्त कर दिये गये तो सहकारिता विभाग की आमदनी कम हो गई और किसानों को उत्पादन बढाने के लिये खाद बीज का संकट पैदा हो गया। 

किसानों को नही मिल रही खाद, कैसे बढ़ेगा उत्पादन..?
हालात यह हो गये है कि समितियों से खाद गायब हो गई है बोनी के दौरान जहां डीएपी और यूरिया के लाले पडे हुये थे किसानों को बाजार से घटिया किस्म की खाद मंहगें दाम पर खरीदने पड रहे थे वहीं अब यूरिया के लिये किसानों को दर-दर की ठोंकरें खानी पड रही है। पैदावार बढाने व पौधों की पौष्टिकता के लिये यूरिया खाद व पानी की ही जरूरत रहती है किंतु इन दिनो न यूरिया मिल पा रही है न तो किसानों के खेतों तक पानी पहुंच पा रहा है। नवंबर के महीने से शुरू हुई बोनी दिसंबर बीत जाने के बाद भी पूरी नही हो सकी है। जिन किसानों ने जुगाड़ से बोनी कर लिया था वे खेतों में खाद डालने के लिये भटक रहे है। 

सूख रही फसलें, नही छूटा नहरो में पानी
बोनी का कार्य प्रभावित होने के लिये किसानों ने बाण सागर नहर, गुलाब सागर बांध के महान नहर परियोजना के अधिकारियों को जिम्मेवार मान रहे है। कृषि अधिकारी ने सितंबर 2014 से पानी छोडने का आश्वासन दिया था लेकिन नवंबर अंत तक न तो बाण सागर के माईनर व कैनालों में पानी छोडा गया न ही गुलाब सागर बांध से जुडे किसानों के लिये पानी की उपलब्धता कराई जा सकी। दिसंबर के महीने में जब किसानों ने पानी की व्यवस्था कर खेतों को बोनी योग्य बना लिया व खेतोंं की बोनी कर दी तो महान नहर परियोजना के अधिकारियों ने घटिया स्तर की बनाई गई। नहर में टेस्टिंग के नाम पर पानी छोड दिया, जैसे ही नहर में पानी का प्रवाह हुआ नहर जगह-जगह से फूट गई जिससे किसानों के खेतों में बोई गई फसल नष्ट हो गई। अब दोबारा खाद बीज की व्यवस्था कर बोनी करनी पड रही है। 


खुलेआम तिगुने दाम पर बिक रही है खाद

खाद के संकट से जूझ रहे किसानों का शोषण सहकारिता विभाग के अधिकारी तो कर ही रहे थे अब व्यापारी भी उनका शोषण करने से बाज नही आ रहे है। यूरिया का दाम जहां व्यापारियों ने दुगना कर दिया है वही डीएपी के तिगुने दाम पर बिक रही है। किसानों की माने तो डीएपी तीन हजार से 36 सौ रूपये क्विंटल की वसूली कर रहे है तो यूरिया का दाम 8 सौ से 12 सौ रूपये लिया जा रहा है।

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