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नरेंद्र मोदी का बढता कद

अशोक प्रियदर्शी,  नई दिल्ली.
 
भारतीय संदर्भ में समूचे विश्व की राजनीतिक चर्चा में आज ‘नरेंद्र मोदी’ एक ऐसा नाम है, जिसके बारे में इतना तो कहना ही पड़ेगा- ‘या तो उससे (नरेंद्र मोदी) प्यार करो या फिर नफरत करो, किंतु तुम उसकी उपेक्षा नहीं कर सकते।’ चकाचैंध वाली आज की विश्व राजनीति में भले ही नरेंद्र मोदी एक जुगनू हों, लेकिन इस जुगनू के वजूद को, उसकी मौजूदगी को तथा विश्व राजनीति में उसके सार्थक हस्तक्षेप को नकारने की जुर्रत आज दुनिया के किसी देश में या शासक में नहीं है।
 
मोदी का बढता कदमोदी का कद और क्रेज ज्यों-ज्यों बढ़ रहा है, त्यों-त्यों उनका कथित विराट व्यक्तित्त्व उनके कृतित्व के कारण देश और दुनिया के तमाम महारथियों और राजनैतिक आकाओं के आंखों की किरकिरी भी बन रहा है। इसीलिए ऐसा आभास होता है कि नरेंद्र मोदी कवि पहारिया के उपरोक्त गीत को गाता-गुनगुनाता एक ऐसा ‘अभिमन्यु’ है जो देश और दुनिया के अपने और पराए महारथियों के चक्रव्यूह में घिर गया है, जहां वह अकेला तो है, पर असहाय नहीं। इस अभिमन्यु ने ‘अर्जुन’ बनकर इस ‘महाभारत’ को जीतने के लिए ताबड़-तोड़ आघात-प्रतिघात शुरू करके महारथियों को आत्ममंथन के लिए विवश कर दिया है। आज पूरी दुनिया इस हकीकत को हजम नहीं कर पा रही है कि कैसे एक अदद नरेंद्र मोदी ने अकेले के दम पर भाजपा की प्रचंड बहुमत वाली सरकार बना कर दिखा दी। दुनियाभर के राजनैतिक पंडितों की ज्योतिष विद्या धराशायी हो गई। पूरे संसदीय चुनाव में एक ही नारा गूंजता था- ‘अबकी बार, मोदी सरकार’। ‘भाजपा की सरकार’ नारा उछालने का दुरूसाहस एकाध नेताओं ने लिया भी, किंतु मिनटों मेे उनका अभियान शीत खाए फुसफुसे पटाखे की तरह फुस्स हो गया। हैरत की बात तो यह रही कि मोदी की सक्रियता, आक्रामता तथा लोकप्रियता के आगे भाजपा और संघ के बड़े से बड़े दिग्गज नेता भी नेपथ्य में चले गए थे।
 
प्रधानमंत्री पद की शपथ के दिन से ही मोदी ने ‘मैं और मेरा एजेंडा’ जैसे अघोषित एलान के साथ अपना ऐतिहासिक शपथ ग्रहण समारोह एक विराट उत्सव के रूप में संपन्न कराकर इसे अंतरराष्ट्रीय महत्त्व का बना दिया। शपथ ग्रहण समारोह में ‘सार्क’ देशों की उपस्थिति मोदी की कूटनीति का पहला धमाका था (जिसे चक्रव्यूह में घिरे अभिमन्यु का प्रथम आघात या प्रतिघात कह सकते हैं)। उसके बाद भूटान, नेपाल जैसे छोटे पड़ोसी देशों की यात्रा करना और उन्हें अपना सहयोगी एवं हमसफर बनाकर अपनी ताकत बढ़ाई। इसी क्रम में ब्राजील, रूस, भारत, चीन तथा दक्षिण अफ्रीका को मिलाकर बने ‘ब्रिक्स’ में भाग लेते हुए इसे इतना ताकतवर संगठन बनाने की योजना बना डाली कि दुनिया का सबसे ताकतवर आदमी और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी भौंचक्का रह गए। तभी ओबामा ने मोदी को बार-बार अमेरिका आने का न्यौता भेजा, लेकिन शायद मोदी के अंदर अपमान की वह टीस भरी थी कि प्रधानमंत्री बनने के पहले तक यही ओबामा मोदी को वीजा देने पर प्रतिबंध लगाए थे- अब क्यों म्याऊं-म्याऊं कर रहे हैं?
 
बहरहाल, नरेंद्र मोदी अमेरिका गए लेकिन दुनिया के सबसे बड़े दादा से मिलने से पहले अपने कद और 56 इंच के सीने का एहसास भी ओबामा को करा दिया और फिर बराबरी से ‘आंख में आंख डालकर’ मुद्दों पर सार्थक बातचीत भी की। परिणामतरू अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने विश्वमंच पर एक सप्ताह के अंदर मोदी की मुक्त कंठ से सराहना भी की। पहली बार म्यांमार में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के इतर ओबामा ने मोदी को ‘मैन ऑफ एक्शन’ जैसी उपाधि से अलंकृत किया और दूसरी बार विश्वस्तरीय कारोबारी गोलमेज बैठक में ओबामा का कहना था कि- ‘मोदी ने भारत के अंदर नौकरशाही की निष्क्रियता को खत्म करने की अपनी इच्छा शक्ति से मुझे प्रभावित किया है। दोनों बार भारत के प्रधानमंत्री नहीं बल्कि ‘नरेंद्र मोदी’ की प्रशंसा का कूटनीतिक अर्थ होता है। इस प्रशंसा से ध्वनित होता है कि मोदी के आवाहन ‘मेक इन इंडिया- मेड इन इंडिया’ को अमेरिकी राष्ट्रपति का समर्थन मिल गया। ध्यान से देखा जाए तो यह प्रशंसा अकारण या लालच वश नहीं है- संत तुलसीदास ने भी रामचरितमानस में इंगित किया है-
‘टेढ़ जान शंका सब काहू। वक्र चंद्रमा ग्रसे न राहू।’
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पूरी शालीनता से भारतीय संस्कृति, संस्कार, अतिथि सत्कार की परंपरा तथा मर्यादा के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को भारत आने का न्यौता दिया और वह भी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर्व के मुख्य अतिथि के रूप में, जिसे ओबामा ने सहर्ष स्वीकार भी कर लिया। इसी क्रम में रूसी राष्ट्रपति पूतिन ने भी भारत आने का न्यौता स्वीकार कर लिया। पूतिन यहां आए भी और दोनों देशों के बीच अनेक समझौते भी हुए। जिनमें ‘मेक इन इंडिया’ भी शामिल है अर्थात् रूस यहां हेलीकॉप्टर सहित कई अन्य साजो-सामान बनाएगा भी।
 
सच पूछें तो ये सभी घटनाक्रम मोदी की कूटनीति, विदेश नीति तथा शांति के पैगाम के अंग हैं। एक तरफ तो दोस्ती का हाथ बढ़ाना और दूसरी तरफ अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी दिखाना दर्शाता है कि भारत समृद्धशाली देश बनने की दिशा में सम्मान सहित सबका साथ लेने और देने को तैयार है। अंतरराष्ट्रीय जगत में तो मोदी ने झंडे गाड़ दिए लेकिन ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ की तर्ज पर अपने देश में मोदी की क्या स्थिति है? मोदी फोबिया से अन्य सभी विरोधी दल ही नहीं, खुद भाजपा और संघ के नेता भी घबराए हुए हैं। मोदी का हंटर पार्टी के अंदर बराबर चल रहा है। कहीं से गृहमंत्री राजनाथ सिंह के पर कतरे तो बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौता पर यू-टर्न लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली के रुख को पलट दिया। इतना ही नहीं मोदी के सबसे चहेते चेहरे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को करारा झटका दे दिया। सारदा चिटफंड घोटाला मामले में अमित शाह के दावे को संसद के अंदर कार्मिक राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने खारिज कर दिया। क्या ऐसा नरेंद्र मोदी की सहमति के बिना संभव था?
 
मोदी सरकार या भाजपा और संघ के राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी और विरोधी अब मोदी से मुकाबला करने को 
महामोर्चा बना रहे हैं। बिखरे हुए समाजवादी और जनता दल ‘एक दल- एक आत्मा’ होने की कवायद कर रहे हैं। बेचैनी वाम दलों में भी है- एकता की सुगबुगाहट वहां भी है। कांग्रेस भी संजीवनी बूटी की तलाश गांव, गली में घूम रही है लेकिन मोदी का खौफ उन्हें खाए जा रहा है। भय मोदी नाम के किसी व्यक्ति का नहीं, बल्कि मोदी की जनप्रिय योजनाओं से घबराहट का माहौल है। जैसे- स्वच्छ भारत अभियान, स्वस्थ भारत, सुरक्षित शौचालय एवं साफ-सफाई, गंगा सहित अन्य बड़ी नदियों की सफाई, पेयजल योजना की प्रक्रिया प्रणाली में परिवर्तन, जन-धन योजना, कौशल शिक्षा पर जोर, श्रम कानून में परिवर्तन, कन्या जमा धन-योजना आदि अनेक ऐसी योजनाओं का श्रीगणेश हो रहा है, जिनके सफल क्रियान्वयन और उससे प्राप्त सफलता मोदी को अजेय बना सकती है। अपने वादे के मुताबिक वाराणसी को जापान के क्योटो की तरह विकसित करने की दिशा में शहरी विकास मंत्रालय ने वाराणसी व क्योटो के बीच पार्टनर सिटी समझौता को लागू करने के लिए, सदस्यीय संचालन समिति का गठन कर दिया है। काशी के विकास के लिए साढ़े बारह हजार करोड़ रुपये भी स्वीकृत हो गए हैं।
 
मोदी उभार और मोदी की लोकप्रियता तथा मोदी का एकलवाद एक सवाल को जन्म देेता है कि देश को विकास की ओर ले जाने का सुनहरा सपना दिखाने वाले मोदी ने सभी राजनैतिक कद बौने कर दिए हैं। पार्टी के अंदर-बाहर मोदी का खौफ है। संघ ने आंख बंद कर ली है। विपक्ष अपने अस्तित्व को बचाने के मंथन से उबर नहीं पा रहा है। ऐसे में क्या मोदी के अधिनायकवादी बनने का खतरा नहीं है? क्या भारत को अधिनायक की आवश्यकता है? क्या अधिनायक बनकर मोदी आज जैसे सरल और निश्छल मोदी रह पाएंगे? इन जैसे तमाम सवालों की पड़ताल करना होगी?
 
दूसरा सवाल यह कि आज समूची दुनिया ‘युद्ध’ के कगार पर खड़ी है। पूरी दुनिया आतंकवाद से भी ग्रस्त है। ऐसे खौफनाक वातावरण में दुनिया को शांति के पुजारी भारत से हमेशा उम्मीद रही है और संयोगवश भारत को नरेंद्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री मिल गया जो अपने आचरण, व्यवहार, वाकपटुता तथा तदनुरूप कार्यशैली से पूरी दुनिया को सम्मोहित कर रहा है। वही मोदी के घरेलू विरोधी, अंतरराष्ट्रीय विरोधी तथा आतंकवादी गुटों के चक्रव्यूह में अभिमन्यु की तरह घिरे मोदी इस ‘अग्नि पथ’ पर चलकर अभिमन्यु की कथा दोहराएंगे या अर्जुन बनकर महाभारत के विजेता बनकर भारत को विश्व गुरु का दर्जा दिलाने में कामयाब हो सकेंगे? ऐसे हजारों सवालों के जवाब हमें इन्हीं सवालों की सतह में तलाशना पडेंगेे और सही निष्कर्ष भी यही से निकलेंगे।
हमारी इस खोज का पहला विषय था कि आखिर नरेंद्र मोदी को इतनी ऊंचाई तक पहुंचने की समझ और शक्ति का स्त्रोत क्या है? दरअसल, एक ऐसा बौद्धिक संगठन है- ‘विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन’ (वी.आई.एफ.) जिसकी सलाहकार परिषद् में भारत के महान शिक्षाविद्, सेवानिवृत्त सेना और पुलिस के प्रमुख, रॉ, आईबी और सीबीआई के सेवानिवृत्त अधिकारी, पूर्व विदेश सचिव एवं तमाम सेवानिवृत्त नौकरशाह, वैज्ञानिक, इंजीनियर आदि। यह फाउंडेशन देश के अग्रणी सुरक्षा विशेषज्ञों, राजनयिकों, उद्योगपतियों आदि के सामूहिक प्रयास से सन् 2009 में दिल्ली में स्थापित किया गया था। दिल्ली के चाणक्यपुरी में इसका मुख्यालय है। फाउंडेशन ने अपने उद्देश्य में घोषित किया है- ‘वी.आइ.एफ एक स्वतंत्र और निष्पक्ष संस्थान है, जो गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान और गहन अध्ययन को बढ़ावा देता है। इसका प्रयास है कि भारत के सभी प्रतिभाशाली लोगों को प्रमुख राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय विषयों पर चर्चा करने के लिए एक मंच पर लाया जाए। इसका प्रयास ऐसी पहलों को बढ़ावा देना है जो शांति और वैश्विक सद्भाव को मजबूत करती हैं। संस्था का काम उन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों पर नजर बनाए रखना है जो भारत की एकता व अखंडता पर असर डाल सकती हैं। इस संस्था को ‘थिंक टैंक’ कहा जाता है। सन् 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने दिल्ली के चाणक्यपुरी क्षेत्र में इस संस्था को जमीन आंवटित की थी। इस संस्था की विधिवत स्थापना आई.वी. प्रमुख पद से सेवानिवृत होने वाले ‘अजित डोभाल’ ने सन् 2009 में की थी।
यही अजित डोभाल नरेंद्र मोदी सरकार में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र इसी संस्था की कार्यकारिणी से हैं तथा मोदी सरकार में अतिरिक्त प्रमुख सचिव  बनाए गए पी.के. मिश्र भी इसी संस्था से आयातित हैं। अनुमान है कि लगभग 17 अन्य अधिकारी इसी संस्था से मोदी सरकार में उनके सहयोग के लिए पहुंच रहे हैं। संस्थान से संबद्ध लोगों का कथन है कि यह संस्थान मुख्य रूप से आठ क्षेत्रों- राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक अध्ययन, अंतरराष्ट्रीय संबंध, कूटनीति, तकनीकी और वैज्ञानिक अध्ययन, पड़ोस अध्ययन, गर्वनेंस और राजनीतिक अध्ययन, राजनीतिक अध्ययन, ऐतिहासिक और सभ्यता अध्ययन तथा मीडिया स्टडीज- में अनुसंधान एवं अध्ययन करता है। सूत्रों के अनुसार मोदी का इस संस्थान से पुराना रिश्ता है। इसलिए ‘मोदी सरकार’ में श्रम-शक्ति, प्रस्तुतिकरण तथा चेहरा मोदी का है और नीति निर्धारण एवं उसके क्रियान्वयन पर नजर रखना तथा समीक्षा करने का काम ‘थिंक टैंक’ का है।             
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)                                                                                                   
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