रेलिक रिपोर्टर, बेगमगंज.
शिक्षा
शक्तियों का स्पष्ट मत है कि शिक्षा तभी व्यक्तित्व निर्माण के लिए उपयोगी
होगी जब वह भारतीय शिक्षा दशर्न पर अधिष्ठित होगी।
शिक्षा बालक के
सर्वागीण विकास के आयाम को पूरा करे, उसमें निहित एक एक ज्ञानेन्द्रीय एवं
कर्मेन्द्रिय को विकसित कर सके। बालक का ज्ञानात्मक, कौशलात्मक, भावात्मक
एवं चरित्रात्मक विकास यदि संभव है तो भारतीय शिक्षा दर्शन में है। यह
विचार सरस्वती विद्या मंदिर में आचार्य दीदीयों का एक दिवसीय मासिक
प्रशिक्षण के समापन पर प्राचार्य अशोक दुबे ने व्यक्त किए। उन्होने आचार्य
परिवार के समक्ष कक्षा पांचवी के भैया बहिनों की कक्षा ली एक घंटे की कक्षा
में प्राचार्य द्वारा भय मुक्त कक्षा रही, जिसमें प्रत्येक बालक बालिका
सक्रिय रहे। पंचपदी शिक्षा के माध्यम से क्रिया कलापों के माध्यम से बड़े
रोचक ढंग से कक्षा कक्ष में ही शारीरिक, नैतिक एवं अध्यात्मिक, संगीत,
संस्कृत एंव योग जैसे मूल विषय के साथ पढ़ाए।
शैक्षिक चिन्तन का अधिष्ठान भारतीय शिक्षा दर्शन
दिसंबर 06, 2014
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