रेलिक रिपोर्टर, नई दिल्ली.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस्तीफा दिए जाने की सीधी धमकी के बाद संघ के हिंदुत्ववादी चेहरे माने जाने वाले संगठनों और आए दिन बयानों से महौल गर्माने वाले नेताओं के तेवर ढीले पड़ गए हैं। मोदी ने साफ कह दिया कि या तो विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और धर्म जागरण मचं जैसे अनुषांगिक संगठनों की मुहिम को रोका जाकर स्वतंत्रता पूर्वक उन्हें काम करने दिया जाए, नहीं तो इस्तीफा दे देंगे। जाहिर है इसके बाद ही संघ परिवार अचानक ही घर वापसी और राम मंदिर जैसे मुददों पर चुप्पी साध गया है। मोदी चाहते हैं कि, विदेशी पूंजी निवेश बढ़ाकर आर्थिक सुधार के लिए देश में सांप्रदायिक सौहार्द्र जरुरी है। ऐसे में विदेशी कंपनियों को डर का नहीं शांति का माहौल चाहिए।
पीएम मोदी ने हिन्दुत्ववादी संगठनों की घर वापसी रोकने का अल्टीमेटम दिया
विनिवेश के जरिए आर्थिक सुधारों पर ध्यान देना चाहते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री के करीबी सूत्रों का कहना है कि मोदी ने संघ नेताओं से कहा कि जनता ने उन्हें पूर्ण बहुमत सुशासन, विकास और राष्ट्र निर्माण के लिए दिया है। इसलिए पहले अर्थव्यवस्था की गाड़ी पटरी पर लाना उनकी सरकार की प्राथमिकता है। राम मंदिर और हिन्दू धर्म रक्षा बाद में देखे जाएंगे। प्रधानमंत्री के आग्रह के बाद संघ नेतृत्व ने विहिप और बजरंग दल को अपने कदम पीछे खींचने के निर्देश दिए।
अलीगढ़ में घर वापसी आयोजन स्थगित
सूत्रों का कहना है कि इसके बाद ही न सिर्फ अलीगढ़ में विहिप की ईसाइयों और मुसलमानों को हिंदू बनाने की कथित ‘घर वापसी’ मुहिम स्थगित की गई, बल्कि यह भी तय किया गया कि कम से कम अगले दो साल तक राम मंदिर पर भी जोर नहीं दिया जाएगा। राम जन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद मुकदमे के मुस्लिम पक्षकार मोहम्मद हाशिम अंसारी की प्रधानमंत्री से मुलाकात मोदी के इस कड़े रुख के बाद ही निरस्त करवाई गई। खुफिया एजेंसियों ने प्रधानमंत्री कार्यालय को चेताया था कि अयोध्या मामले में अदालत के बाहर की कोई भी पहल सरकार के लिए नया संकट पैदा कर सकती है। इससे पहले तक विहहप नेता अशोक सिंघल खुद इस मामले में सीधे दिलचस्पी ले रहे थे और लगातार अंसारी के संपर्क में थे। यही नहीं बुधवार को जब संघ नेताओं को पता चला कि सिंघल वाराणसी में ‘घर वापसी’ कार्यक्रम आयोजन करने जा रहे हैं, तो उनकी उलझन बढ़ गई। सिंघल पर आनन फानन में दबाव बनाकर उसे रुकवाया गया।
विदेशी कंपनियों के हितों की चिंता सबसे ऊपर
सूत्रों के मुताबिक राम मंदिर को लेकर भाजपा नेताओं के विवादास्पद बयानों और विश्व हिंदू परिषद व बजरंग दल की कथित घर वापसी की मुहिम से पीएमओ तनाव में था। इसके बाद ही संघ के शीर्ष नेताओं से बात की गई। पिछले दिनों दिल्ली में प्रधानमंत्री के साथ संघ के कुछ शीर्ष नेताओं की बैठक भी हुई। बैठक में प्रधानमंत्री ने साफ कहा कि उन्हें काम करने के लिए वक्त चाहिए। वह विदेशों में भारत की सकारात्मक छवि बनाकर निवेश आमंत्रित कर रहे हैं, जबकि विहिप और बजरंग दल की मुहिम सब किए कराए पर पानी फेर देगी और विपक्ष को सरकार व संघ परिवार के खिलाफ खड़े होने का मौका मिल जाएगा।
कई दिग्गज भी चाहते हैं मोदी सरकार की विफलता
सूत्रों का दावा है कि, केंद्र में पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार बनने के बाद से ही संघ परिवार के अशोक सिंघल, प्रवीण तोगड़िया जैसे कट्टर हिंदुत्ववादी नेता लगातार अयोध्या में राम मंदिर और अन्य हिंदुत्ववादी एजेंडे को लागू करने का दबाव बना रहा है। इनके पीछे भाजपा के भी कुछ वरिष्ठ नेताओं का मौन समर्थन बताया जाता है जो मोदी सरकार को विफल देखना चाहते हैं। इनमें कुछ वो कट्टर हिंदुत्ववादी चेहरे भी शामिल हैं, जिन्हें वरिष्ठता के बावजूद मोदी सरकार में जगह नहीं मिली।