लोकेश मालती, भोपाल.
शिक्षा के निजीकरण, बाजारीकरण व सांप्रदायीकरण के खिलाफ और ‘केजी से पीजी तक’ पूरी तरह मुफ्त व सरकार द्वारा वित्त-पोषित ‘समान शिक्षा व्यवस्था’ की स्थापना के लिए, ‘अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच’, इसके 45 सदस्य व सहयोगी संगठनों व 200 से भी ज्यादा बिरादराना संगठनों द्वारा आयोजित ‘अखिल भारत शिक्षा संघर्ष यात्रा-2014’ का भोपाल महापड़ाव 4 दिसंबर 2014 के अंतर्गत विशाल रैली भोपाल टाकीज से शुरु होकर यादगार-ए-शाहजहानी पार्क तक निकाली गई।
अखिल भारत शिक्षा संघर्ष यात्रा-2014 की रैली से शुरुआत
देश की विविधता को दर्शाते और अनेक भाषाओं में समतामूलक शिक्षा के लिए संघर्ष की प्रतिबद्धता को जाहिर करते हुए देश के कोने-कोने से आए 2500 से ज्यादा लोगों ने नारों, गीतों और कलरव संगीत के साथ निकली रैली का जोरदार नारों से रैली का स्वागत किया गया। जनगीतों के बीच शाहजहानी पार्क में ‘अखिल भारत शिक्षा संघर्ष यात्रा’ के तहत निकली पांच देश-व्यापी आंचलिक यात्राओं के प्रतिनिधियों ने पांच मशालें भोपाल महापड़ाव स्थल पर समर्पित की।
अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच के अध्यक्ष मंडल सदस्य डॉ. अनिल सदगोपाल ने कहा कि शिक्षा व्यवस्था पर पिछले दो से ज्यादा दशकों से जारी नवउदारवादी सांप्रदायिक हमले को जनता पहचान रही है। मंच के अध्यक्ष मंडल सदस्य प्रो. मधु प्रसाद ने कहा कि आज की सरकार शिक्षा के हक को वास्तव में लागू न कर के केवल लोकलुभावन मगर खोखले नारों और योजनाओं से जनता को बरगला रही है। मंच के अध्यक्ष मंडल सदस्य प्रो. जी हरगोपाल ने शिक्षा के बाजारीकरण व सांप्रदायीकरण के खिलाफ व समान शिक्षा व्यवस्था के लिए ‘भोपाल आह्वान’ जारी किया। इसके प्रति देश की अनेक वामपंथी व समाजवादी राजनीतिक दलों (सीपीआइ, सीपीआइ (एम), सीपीआई-एमएल (रेड स्टार), सीपीआई-एमएल (न्यू डेमोक्रेसी), सीपीआई-एमएल लिबरेशन, समाजवादी जन परिषद और जल-जंगल-जमीन के जनांदोलनों ने अपने समर्थन की घोषणा की।
यह है यात्रा का तीन-सूत्रीय मकसद
देश में ‘केजी से पीजी तक’ समानता पर आधारित व हर तरह के भेदभाव से मुक्त, सरकार द्वारा वित्त-पोषित और पूरी तरह मुफ्त ‘समान शिक्षा व्यवस्था’ का निर्माण करना, जिसमें 12वीं कक्षा तक ‘समान पड़ोसी स्कूल प्रणाली’ शामिल हो और जिसका प्रबंधन लोकतांत्रिक, विकेंद्रित व सहभागितापूर्ण हो। इस व्यवस्था में शिक्षा का माध्यम बहुभाषीयता के संदर्भ में हमारी मातृभाषाएं होनी चाहिए और इसके लिए भारत की भाषाओं को कार्यपालिका, विधायिका व न्यायपालिका, व्यापार व वाणिज्य, विज्ञान व तकनीकी और सूचना प्रौद्योगिकी समेत राष्ट्रीय जीवन के सभी क्षेत्रों में प्राथमिकता के साथ स्थापित किया जाना चाहिए। इस आमूलचूल बदलाव के जरिए ही शिक्षा व्यवस्था संविधान के आदर्शों के अनुरूप देश में लोकतांत्रिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, न्यायशील, प्रबुद्ध और मानवीय समाज के निर्माण में सक्षम बन पाएगी।
भोपाल महा-पड़ाव से एकजुट संघर्ष की शुरूआत
दिसंबर 05, 2014
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