सागर भोपाल स्टेट हाइ-वे के दोनों ओर व्यापारियों ने अपना कारोबार सड़क किनारे तक फैला रखा है, जिस कारण प्रतिदिन जाम तो लगते ही है आवागमन में लोगों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ता है। अतिक्रमण से हालत बद से बदतर है। स्टेट हाइवे के बीच से दोनो तरफ चालीस चालीस फीट के बाद लोगों के व्यापारिक प्रतिष्ठान है, लेकिन वे अपने-अपने प्रतिष्ठान के सामने काफी आगे तक सामान फैला कर रखते है। उसके आगे ग्राहकों के वाहन खड़े किए जाते है, जो सड़क तक पहुंच जाते है। कई दुकानदार बस स्टेण्ड से लेकर बीएम बीड़ी ब्रान्च तक अपना सामान स्थाई तौर पर सड़क किनारे जमाए हुए है, जिससे आसपास के छोटे दुकानदार भी परेशान है।
अस्पताल के सामने सागर भोपाल मार्ग पर लगा जाम |
सियासी रसूख के चलते अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता प्रशासन
कई बार प्रशासन ने डोढी पिटवा कर नगर में अतिक्रमण हटाने की चेतावनी दी, लेकिन कार्रवाई कागजों तक सीमित रही। बहुत हुआ तो हाथ ठेले वालों या चाय पान की गुमठी वालों को हटा दिया गया। सड़क किनारे दो दो ट्रक सामग्री, जिसमें पीवीसी पाइप, मशीनें, लोहा, अंग्रेजी कवेलू, थ्रेसर व अन्य सामग्री शामिल है सड़क से मात्र पांच दस फिट की दूरी तक स्थाई तौर से बारह महीनों जमी रहती है। कहा जाए कि सारा व्यापार ही सड़क किनारे होता है तो ज्यादा ठीक होगा। दूसरी ओर प्रशासन के लचर रवैए के कारण आज तक नगर की सड़कें चौड़ी नहीं हो पाई है। लोग अपने बच्चों को स्कूल या किसी कार्य से भेजने में उनकी वापसी तक चिंतित रहते है कि वे सही सलामत घर लौट आएं। महिलाओं एवं लड़कियों को जाम के चलते बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है।
सडक निर्माणकर्ता एजेंसी की है गलती
रायसेन से राहतगढ़ तक बीओटी बांड योजना के तहत एमएसके कंपनी ने सड़क निमार्ण करने के बाद नगर में अधूरी नालियां सड़क और दुकानों मकानों के बीच बनाकर छोड़ दी। इससे दुकानदारों को अतिक्रमण कर सामान फैलाने में आसानी हो गई, क्योंकि नाली के उस पार वाहन नहीं जाते और दुकानदार नाली तक कहीं कहीं उसके भी आगे तक सामान जमा लेते है।
अनसुनी है नागरिकों की अतिक्रमण हटाने की मांग
नागरिकों ने कई बार अतिक्रमण हटाने के लिए जिला प्रशासन को आवेदन दिए, लेकिन खाना पूर्ति के अलावा पूरी तरह से अतिक्रमण नहीं हटाया गया। प्रशासन के संज्ञान में है कि नगर की अधिकतर गुमठियां नेताओं और दंबगों के जोर पर रखी हुई है, जिनसे वे प्रति माह मोटी रकम किराए के रूप में वसूल करते है। अतिक्रमण हटाने की मुहिम शुरू होती है तो ऐसे नेता दबाव डलवाकर मुहिम को ठंडा करवा देते है।