त्यौहार प्रत्येक समाज की संस्कृति व परंपरा को प्रतिबिंबित करते है, इसी कड़ी में झाबुआ में क्रिसमस के अवसर पर एक पखवाड़े तक मनाये जाने वाले पर्व का भी अपना एक अलग ही महत्व है। जिले में जनसंख्या के मान से आदिवासी वर्ग की बाहुल्यता है तथा 85 प्रतिशत आदिवासी यहां होने के बावजूद भी इनकी अपनी पुरातन आदिवासी संस्कृति के साथ ही सभी धर्मो के तीज त्यौहारों को उत्साह एवं श्रद्धा के साथ मनाए जाने की परंपरा रही है।
गिरजाघर, यहा होगी विषेश प्रार्थना सभा |
ईसा मसीह का जन्म दिन दोनों जिलों के प्रमुख 32 चर्चो के माध्यम से मनाये जाने की स्थायी परंपरा बन चुकी है। जिले में जबसे धर्मप्रांत की स्थापना हुई है झाबुआ डायोसिस बना है ईसाईयों का कार्यक्षेत्र भी व्यापक हुआ है।
चर्च में होगे विशेश आयोजन
झाबुआ-आलीराजपुर जिले के थांदला, झाबुआ, राणापुर, पंचकुई, पिपलिया, मेघनगर, जोबट, गोपालपुरा, मोहनपुरा, उन्नई एवं कोदली, आमखूंट आदि चर्चो मेंं विशेश आयोजन क्रिसमस के अवसर पर होगे। इस त्यौहार को क्रिसमस के एक सप्ताह पूर्व से ही ईसाई धर्मावंबियों द्वारा घर-घर व फलिये-फलिये में प्रभु ईसु के संदेशों को प्रचारित किया जाता है।
मनचलों से परेशानी
पादरी के मेले के नाम से विख्यात इस मेले में महिलाओं को काफी परेशानियां उठाना पडती है। दुकाने व झूले, कचरी आदि मनोरंजन के स्टॉल आपस में सटे होने से मेला स्थल पर काफी भीड हो जाती है, जिसके कारण पैर रखने तक की जगह नही रहती है, इसका फायदा मनचले उठाने में तनिकभी देर नही करते है, कभी कभार अश्लील हरकतों के कारण मजनूओं की पिटाई तक हो जाती है।