बुन्देलखण्ड के चर्चित बाहुबली नेता अशोकवीर विक्रम सिंह भैयाराजा आज पंच तत्व में विलीन हो गये। इस बाहुबली नेता की अन्तिम यात्रा में शामिल होने के लिए जन सैलाब उमड़ पड़ा। पन्ना व छतरपुर जिले सहित समूचे प्रदेश से हजारों की तादाद में लोग गहरवार की रतनगढ़ी में पहुंचकर भैया राजा को अन्तिम विदाई दी। रतनगढ़ी के पास ही रतनबाग में उनका दाह संस्कार हुआ, बड़े पुत्र कुंवर भुवन वीर विक्रम सिंह ने अपने पिता को मुखाग्नि दी।
आध्यात्मिक गुरु दद्दा जी, पूर्व मंत्री ब्रजेंद्र प्रताप सिंह बुंदेला, कांग्रेस विधायक नाती राजा सहित हजारों लोगों ने दी भैया राजा को दी अन्तिम विदाई
रतनगढ़ी से निकली अंतिम यात्रा और रतनबाग में हुआ अंतिम संस्कार
छतरपुर से तकरीबन 20 किमी दूर गहरवार में स्थित भैया राजा की शानदार गढ़ी आज बेनूर नजर आ रही थी। गढ़ी से निकलते रूदन के स्वर यह बता रहे थे कि यहां पर कुछ अनहोनी घटित हुई है। पूरे गहरवार गांव में सन्नाटा पसरा था और गांव के लोग गढ़ी परिसर में अपने राजा की एक झलक पाने के लिए जमा थे। गत शुक्रवार सुबह जैसे ही गहरवार में यह खबर पहुंची कि भैया राजा अब नहीं रहे तो पूरा गांव शोक में डूब गया। आलम यह था कि दो दिनों से इस गांव के किसी भी घर में चूल्हा नहीं जला। शुक्रवार की रात्रि में भैयाराजा का शव भोपाल से रतनगढ़ी पहुंचा। आज सुबह से ही गहरवार की रतनगढ़ी में पहुंचने वालों का सिलसिला शुरू हो गया जो अनवरत जारी है। बुन्देलखण्ड सहित पूरे प्रदेश से बड़ी संख्या में लोग यहां आकर शोक संवेदना प्रकट कर रहे हैं।
जनसैलाब के कारण तीन घंटे देर से हो सकी अंत्येष्टि
घोषित कार्यक्रम के मुताबिक भैयाराजा की अन्त्येष्टि आज सुबह 10 बजे होनी थी। लेकिन अन्तिम दर्शनों के लिए उमड़े जन सैलाब के चलते अन्त्येष्टि तीन घंटे विलम्ब से अपरान्ह एक-डेढ़ बजे हो सकी। रतनगढ़ी से जब शव यात्रा शुरू हुई तो हजारों आंखे नम हो गईं। कोई कह रहा था कि बुन्देलखण्ड का शेर राजनीतिक साजिशों का शिकार होकर चिर निद्रा में लीन हो गया है, अब ऐसा हिम्मतवर और जिन्दादिल इंसान देखने को नहीं मिलेगा। रतनगढ़ी से लेकर रतनबाग तक जन सैलाब था, कहीं पैर रखने को भी जगह नहीं बची थी। पूरी जिन्दगी भैयाराजा ने जिस रूतबे और शाही अंदाज के साथ जीवन यापन किया, उसी अंदाज में उन्हें अन्तिम विदाई भी दी गई। भैया राजा की कर्मभूमि पन्ना जिले से हजारों की संख्या में लोग पहुंचे।
बाहुबली भैया राजा की अन्त्येष्टि में उमड़ा जन सैलाब
पन्ना शहर के अलावा सिमरिया, मोहन्द्रा, रैपुरा, शाहनगर व पवई क्षेत्र से हजारों की तादाद में लोग वहां नजर आये। जिले की सहकारिता से जुडे लोगों ने बहुतायत में पहुंचकर अपने पूर्व अध्यक्ष को अश्रुपूरित अंतिम विदाई दी। पवई क्षेत्र के पूर्व विधायक एवं मंत्री बृजेन्द्र प्रताप सिंह, कांग्रेस विधायक नातीराजा सहित सभी दलों के क्षेत्रीय नेता व जनप्रतिनिधि अन्त्येष्टि में शामिल हुए। भैया राजा के अध्यात्मिक गुरू देव प्रभाकर शास्त्री (दद्दा जी) भी अपने प्रिय शिष्य को अन्तिम विदाई देने के लिए रतनगढ़ी पहुंचे और पूरे समय अन्त्येष्टि स्थल रतनबाग में मौजूद रहे।
कुंवर भुवन वीर विक्रम सिंह |
पूर्व विधायक एवं पन्ना जिले की सहकारिता के दो दशक तक बेताज बादशाह रहे भैया राजा का 21 दिसम्बर को जन्म दिन था। ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही थी कि जन्म दिन से पूर्व भैया राजा को जमानत मिल सकती है। इस उम्मीद में रतनगढ़ी को उनकी आगवानी के लिए सजाया और संवारा जा रहा था। लेकिन नियति को शायद यह मंजूर नहीं था, फलस्वरूप जन्म दिन के दो दिन पहले ही उनका निधन हो गया। जिस गढ़ी में उत्सव और जश्न की तैयारियां चल रही थीं, वहां अब मातम का माहौल है। इसे संयोग ही कहा जायेगा कि भैया राजा की गिरफ्तारी 19 दिसम्बर 2009 को शाम 5 बजे भोपाल में हुई थी और 19 दिसम्बर 2014 को ही सुबह 5 बजे उनका निधन हो गया।
जाते-जाते कर गये दूसरे की जिन्दगी रोशन
भैया राजा के व्यक्तित्व का सिर्फ एक पहलू ही हमेशा सुर्खियों में रहा, दूसरे पहलू की कभी चर्चा नहीं हुई। मौत के आगोश में जाने से पूर्व उन्होंने यह साबित कर दिया कि उनके दिल में भी दया भाव और जन कल्याण का जज्बा कैसा और कितना ज्यादा है। मौत से पूर्व ही भैया राजा ने अपने यह इच्छा जाहिर कर दी थी कि मौत होने पर उनकी आंखे दान कर दी जायें। उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए ऐसा किया गया। इस तरह से जाते-जाते भैया राजा किसी इंसान की अंधेरी जिन्दगी को रोशन कर गये। उन्होंने आंखे दान कर अपने व्यक्तित्व के दूसरे पहलू को भी उजागर किया और यह बताया कि वे बाहुबली ही नहीं दानवीर भी हैं।