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अशफाक उल्ला खां एक क्रांतिकारी ही नहीं एक बेहतरीन शाइर भी थे

शमिन्दर सिंह ‘शम्मी’, शाहजहांपुर.

बहुत ही जल्द टूटेंगी गुलामी की ये जंजीरें,
किसी दिन देखना आजाद ये हिन्दोस्ताँ होगा।
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का सपना अपनी आँखों से अगली पीढ़ी को देकर फांसी के फंदे को गले मे यूँ पहना मानो कि वरमाला पहन रहे हों...कुछ ऐसे ही लाल भारत की माटी मे समय-समय पर आते रहे हैं...उन्ही मे से एक थे अमर शहीद अशफाक उल्ला खान जी, जिनका जन्म 22 अक्टूबर 1900 को शाहजहांपुर मे हुआ था...इस वीर सपूत को भारत की आजादी की नीव का पत्थर बनाने क लिए नौ महीने अपनी कोख मे रखा था श्रीमती मजरूनिशा बेगम ने और इनके पिताजी का नाम श्री मोहम्मद शफीक अली खान था। 


  अशफाक उल्ला खां एक क्रांतिकारी ही नहीं एक बेहतरीन शाइर भी थे19 दिसम्बर बलिदान दिवस पर
 
अशफाक उस ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी’ के जाबांज सिपाही थे जिसने काकोरी-काण्ड जैसा दुस्साहसिक कार्य सफलतापूर्वक अंजाम दिया था...स्मरणीय है कि अमर शहीद अशफाक उल्ला खान ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के तत्वों को उभारा भी और सदियों से चली आ रही गंगा-जमुनी तहजीब को और भी समृद्ध किया..अपनी साम्प्रदायिक सौहार्द्र की इस नदी के माध्यम से उन्होने तत्कालीन ‘तबलीग-तंजीम’ एवं ‘शुद्धि-आन्दोलन’ जैसे अवरोध उत्पन्न करने वाले बांधो को नेस्तनाबूद भी किया। अशफाक एक ऐसे शायर थे जो कि सामजिक सुधारों और हिन्दू-मुस्लिम एकता की लौ को हमेशा दिल मे जलाए रखते थे।
अभी तक हम अशफाक को एक बहादुर और महान क्रांतिकारी योद्धा के रूप मे ही पाते हैं किन्तु यह उनके जीवन का एक पक्ष है...कम ही लोग जानते हैं कि वह एक संजीदा शायर और सजग-दूरदृष्टा भी थे, कम लोगों के जानने से मेरा आशय यह है कि भारतीय शोध कराने वाली संस्थाओं मे बैठे तथाकथित चीन, नागपुर और कांग्रेसी गणेश परिक्रमाधारी की अवैध संतानों ने कभी इस ओर किसी शोधार्थी को बढने भी नहीं दिया, क्योंकि उनको पता है कि जिस दिन इन महान क्रांतिकारियों पर शोध होने लगेगा तो उनके बौद्धिक विचारकों और विचारधाराओं दोनों की जमीन ही खिसक जायेगी।
अशफाक उल्ला खान 20 के दशक में ये कहते नजर आते हैं कि---‘‘कोई तब्लीग का दिलदादा है, तो कोई शुद्धि पर मर-मिटने को वाइज निजात समझ रहा है , मुझे तो रह- रह कर इन दिमागों और अकलों पर तरस आ रहा है, जो अपने आपको बेहतरीन दिमाग और माहिरेनी - सियासत मानते हैं...तो निश्चित तौर पर उनकी मानवीय और लोकतांत्रिक समझ का ही नतीजा था...जो काम भक्तिकाल मे कबीर कर रहे थे वही काम तो अशफाक भी कर रहे थे.. सीधे-सीधे फटकार लगते हुए उन्होने धरम के ठेकेदारों को कहा कि----‘‘ तबलीग और शुद्धि वालों खुदारा आंखें खोलो, कहाँ थे और कहां पहुंच गए, अपनी- अपनी शान खतम करो, सोचो तो मजहब में जबरदस्ती इखितिलाफेय राय पर जंग, एक ना मुकम्मल काम छोड़कर दूसरी तरफ रुजू हों गए’’( 1920 के दशक की राजनीति को देखे जगह जगह दंगे हों रहे है, मोपला से लेकर पूरा भारत इस आग के लपेटे मे था। उस दौर मे जो काम ये कर रहे थे यदि सारे राजनीतिक दल ये काम कर गए होते तो विभाजन की त्रासदी न हुई होती )....
ऐसे महान क्रांतिकारी अशफाक के बलिदान पर एक भी व्यक्ति अपनी कलम की स्याही खर्चा करने तैयार नही है, क्योंकि टीआरपी नहीं बढ़ेगी..? विज्ञापन नहीं मिलेगा और सबसे बड़ी बात ये कि उनकी दुकान के ही बंद हों जाने का खतरा है..आज लगातार छद्म बौद्धिक वर्ग यह कहता नजर आता है राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में मात्र दो ही लोगो के पास आजादी के बाद के भारत की तस्वीर भी थी। एक गाँधी जी और दूसरे भगत सिंह में...पर यह दुष्प्रचार है हकीकत तो ये है कि हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के घोषणा-पत्र और उसके सिपाहियों के दर्शन पढ़ लिए जाएं तो होश उड़ जायेंगे ‘‘लाल-चश्मा, भगवा-चश्मा, मैडम-चश्मा’’ को धारण करने वालों के......
यह इतिहास-सिद्ध तय है कि जो समाज, अपने शहीदों, देशभक्तों को भुला देता है, उसका पतन निश्चित है...यह बहुत बड़ी विडम्बना ही है कि बच्चे-बच्चे को फिल्मी कलाकारों की सारी जन्मकुंडली तो पता होती है, मगर बहुत कम लोगों को क्रांतिकारियों एवं उस धारा के लोगों के जीवन के बारे मे पता होता है......
क्या यह सब अनायास ही है, कि युवाओं को वेलेंटाइने डे जैसे विदेशी त्योहार तो पता हैं लकिन उसी माह की 19 दिसम्बर को पडने वाले अमर शहीद अशफाक उल्ला खां की शहादत दिवस को भूल जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि उत्तर प्रदेश के लखनऊ में लखनऊ महोत्सव आयोजित किये गए न सिर्फ बल्कि उनका प्रचार बड़े बड़े पोस्टर द्वारा किया गया...
दरअसल, इन सबके पीछे सत्ता की घिनौनी साजिशें काम कर रही हैं। क्योंकि यदि जनता उन शहीदों को जानेगी, उनकी कथनी और करनी के अद्वैत को जानेगी---तो आज के भ्रष्ट और गंदे नेताओं से भी यही अपेक्षा करने लगेगी...जो इन अवसरवादियों व फिरकापरस्तों की औकात के बाहर की चीज है....एक भी चैनल, एक भी पार्टी, एक भी बुद्धिजीवी अथवा एक भी सिविल समाज का सदस्य नहीं बोलेगा, इस भारत कि धरा के अमर शहीद अशफाक उल्ला खान की शहादत के बारे मे...ये भारत के प्रथम शहीद थे, जिन्होने मुस्लिम समाज से पहली कुर्बानी दी थी अपने मादरे वतन को.....हम इतने बड़े खुदगर्ज निकले कि अपने ही शहीदों को भूल बैठे.....आइये हम सब मिलकर इस महान सपूत को अपने अपने अंतर्मन से याद करे और उनकी अंतिम आशा कि सभी भारतवासी आपस मे देशप्रेम एवं भाईचारे से रहें...जिस तरह से गंगाजी की पूजा गंगाजल से होती है उसी तरह से अशफाक उल्ला खान की बात उन्ही की पंक्तियों से......
‘‘कुछ आरजू नहीं है,
है आरजू तो यही है ,...
रख दे कोई जरा सी खाक-इ -वतन कफन में.........’’

कृतज्ञ राष्ट्र आप का हमेशा आभारी रहेगा अमर शहीद अशफाक उल्ला खान... 

जय हिंद.... जय भारत....

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