हाल ही में हुए जी-7 और सार्क सम्मेलनों में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद पर पाकिस्तान को घेरा था, जिसकी सभी ने सहमति दी कि आज आतंक वास्तव में केवल भारत ही नहीं बल्कि सारे संसार के लिए एक चुनौती और खतरा बन चुका है। बावजूद पाकिस्तान ने लगाम कसना तो दूर एक शब्द भी उसके खिलाफ नहीं बोला, बल्कि भारत को ही इसका दोषी ठहराने की कोशिश की। आतंक और आतताईयों को पुष्पित और पल्लवित करने वाला पाकिस्तान वैसे तो पिछले कई सालों से दहशतगर्दी का दंश स्वयं तो झेल ही रहा और संसार के अन्य देशों को भी इस का दंश झेलने को लगातार मजबूर करता रहा है, लेकिन कल 16 दिसम्बर को पाकिस्तान के पेशावर में जो हुआ वह क्रूरता की हदों को भी पार कर गया।
क्या बिगाड़ा था इन मासूमों ने आतंकियों का जो उन्होंने 132 मासूमों को हलाक कर दिया। आज मानवता फिर क्रन्दन कर उठी, तहरीक-ए-तालिबान ने पेशावर के आर्मी स्कूल में 132 बच्चों को जिस वहशियाना ढंग से मारा उसने बर्बरता की सारी हदें पार कर दीं। दुनिया का कोई भी धर्म खुदा की नेमत माने गए मासूम बच्चों के कत्ल की अनुमति नहीं देता। ये बच्चे किसी के बेटे, किसी के भाई, किसी के जिगर के टुकड़े थे। आज दुनिया में बंधक बनाना, खूनी खेल खेलना और आतंक मचाना ही आतंकियों की फितरत में शामिल है। मासूम बच्चों की हत्याएं इनके लिए कोई नया नहीं है। बच्चों को मार कर उन्होंने खुद को ही कलंकित किया है। अगर हम पुराने इसी प्रकार वहशियाना घटनाओं पर नजर डाले तो पायेंगे 1 सितम्बर, 2004 को रूस के बेसलान के स्कूल में आतंकवादियों ने 1100 लोगों को बंधक बनाया था, जिसमें 777 बच्चे थे। मानवता के दानवों ने बम धमाके किए जिसमें 385 लोग मारे गए, जिनमें अधिकतर स्कूली बच्चे थे। आज भी इस घटना को याद कर रूह कांप उठती है। हो सकता है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को नोबेल शांति पुरस्कार से चिढ़ा बैठा हो और उसने आतंक फैलाने के लिए आर्मी स्कूल के बच्चों को निशाना बना डाला और स्कूल को बच्चों की कत्लगाह में बदल दिया। जिस तरह से इन मासूमों के परिजन चीख - चीख कर पाकिस्तान के हुक्मरानों को दुहाई दे रहे थे या खुदा रहम कर इस कहर से। पाकिस्तान 26/11, 2008 के मुम्बई हमले के मास्टर माइंड हाफिज सईद को अब तक संरक्षण देता आ रहा है। हमारे जवानों के सिर काटे गए। कल की घटना से उसे भी दर्द हुआ होगा। जिस तरह से पाकिस्तान के लोग नेता, सांसद और विधायक खासकर महिलाएं रो-रो कर चीख रही थी, ऐसे ही भारत की मां, बहन और बेटियां भी रोती रही हैं।
इसके एक दिन पहले सिडनी के चाकलेट कैफे में एक अकेले बंदूकधारी द्वारा दो भारतीयों समेत 17 लोगों को बंधक बनाए जाने का संकट तो खत्म हो गया, लेकिन समूचा घटनाक्रम पूरी दुनिया के लिए कई सबक छोड़ गया।
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शमिन्दर सिंह ‘शम्मी’ |
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9/11 का आतंकी हमला अमरीका में था। दुनिया के इतिहास में अपने आप में बड़ा हमला था। यह हमला किसी महाशक्ति या किसी देश ने नहीं किया, बल्कि यह हमला ओसामा बिन लादेन नामक एक ऐसे अरबी इंजीनियर ने किया था, जिसने इस्लाम और कट्टरवाद को मिलाकर एक नई परिभाषा गढ़ी थी।
आज भारत और लोकतांत्रिक देशों की लड़ाई इस्लाम से नहीं है, बल्कि जेहादी कट्टरवाद से है। अतीत में जो घट चुका है, वर्तमान में हर पल जो घट रहा है, भविष्य काल के गर्भ में है, जो लोग अतीत से सबक नहीं लेते वर्तमान उन्हें माफ नहीं करता। सबक तो भारत को भी सीखना होगा। आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए केन्द्र सरकार को एक ऐसा तंत्र विकसित करना होगा जो पूरी सैन्य क्षमता से लैस हो और जेहाद के नाम पर आतंकियों का साफ करने के लिये विश्वमंच पर ले जाने में सक्षम हो।