अभिषेक पांडे, मुंबई.
मुंबई
सेसन्स कोर्ट के बाहर आइएसआइएस के जिहादी के कोर्ट में पहुॅचने का इंतजार
हो रहा था, तभी एक मीडिया मित्र से बातचीत शुरु हुई। मैनें पूंछा कही बाहर
गए थे क्या दिखे नहीं कई दिनों से? उसने बताया कि वो नैटिव प्लेस उत्तर
प्रदेश गया था। वहां मुझे एक शादी में जाना था।
मैने उत्तर प्रदेश के
बारे में पूछा तो बतौर यूपी वाला होने के कारण दुखी हो गया और वहां के हाल
बताने लगा, वहां के बारे में बताते समय उसके चेहरे और शब्दों में एक टीस
थी। उसने कहा कि हमने करीब दो सौ किलोमीटर की यात्रा की अलग अलग स्थान पर
गया लेकिन रोड और गढ्ढे में मुझे अंतर समझ में नहीं आया। खुशी बस इस बात की
थी कि पत्थरों की गिट्टी और डामर लगे छोटे टुकड़े देखने पर लगा कि हां यहाँ
भी कभी रोड थी। गांव के गांव खाली और वीरान पडे हैं, जिस यूथ की बात
प्रधानमंत्री अपने भाषणों में करते हैं वो यूथ आर्थिक तंगी से परिवार का
पोषण करने के चक्कर में पलायन कर चुका है, गांवो में बचे हैं तो पढने वाले
लडके या बूढ़े माँ बाप दादा दादी। या किसी सोर्स सिफारिश और घुस पताई से
नौकरी पाने वाले एक दुक्का यूथ जो ढूँढने पर किसी गांव में मिलते हैं। आखिर
उत्तर प्रदेश की बदहाली के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए।
तब तक कोर्ट की प्रोसीडिंग्स शुरु हो चुकी थी टॉपिक समाप्त हो गया।
लेकिन उसकी कही गई बातें मेरे दिमाग में घर कर गई। मै सोचने लगा कि उत्तर
प्रदेश का युवा आज दूसरे प्रदेश की रफ्तार का हिस्सा बन चुका है उसके विकास
में भागीदारी कर रहा है लेकिन अपने प्रदेश के प्रति इतनी बेरुखी क्यो हो
गई है। कौन इसके पीछे जिम्मेदार है।
उत्तर प्रदेश की सरकारें आखिर अपने
प्रदेश के युवाओं का पलायन क्यो रोक नहीं पा रही हैं। जिस प्रदेश नें देश
को 9 प्रधानमंत्री दिए अनगिनत मंत्री दिए, जिस प्रदेश के बिना केंद्र में
सरकार संभव नहीं है, जिस प्रदेश से गांधी नेहरु परिवार आते हैं उस प्रदेश
के लोगों का दूसरे शहरो और प्रदेशों में पलायन बेशक एक गम्भीर चिंता का
बिषय है। सरकारी तंत्र हो या सरकार और राजनीतिक लोग सब एक दूसरे का खेल
बनाने और बिगाड़ने में लगे हैं लेकिन विकास कैसे हो? कैसे रोजगार पैदा हो?
कैसे लोग उत्तर प्रदेश की तरफ फिर लौटे? इस पर कोई भी चिंता नहीं कर रहा
है।
गंगा का सबसे ज्यादा किनारा उत्तर प्रदेश में हैं, धार्मिक स्थल
उत्तर प्रदेश में हैं प्राकृतिक क्षेत्र उत्तर प्रदेश में हैं और यूपी की
हालत बदतर होती जा रही है। दूसरे प्रदेशों के लोग उत्तर प्रदेश के लोगों को
गुनहगार के तौर पर देखते हैं। उनके माइग्रेशन पर गालियाँ तक देते हैं
लेकिन ये गालियाँ यूपी के सियासतदानों को क्यों सुनाई नहीं पडती हैं।
यूपी को लेकर कई तरीके के कटाक्ष फेसबुक और व्हाइट्स पर फैल रहे हैं कुछ मैं आपके सामने रखने जा रहा हूं-
भाषा में भदेष हूं, कायर इतना कि उत्तर प्रदेश हूं.
जब बुद्धि अखिलेश हो जाती है तो जिंदगी उत्तर प्रदेश बन जाती है.
आखिर इस तरीके के कटाक्ष के लिए किन सरकारों को जिम्मेदार ठहराया जाए। आखिर इस माइग्रेशन के लिए जिम्मेदार कौन है?
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई नें समय समय पर देश के अलग अलग राज्य की सरकारों को चेताया है। 80
और 90 के दशक में इसी मुंबई में दक्षिण भारतीयों के बिगुल बजा था और नारा
दिया गया था उठाओ लुंगी बजाओ पुंगी और इस नारे की शुरुआत की थी बाल ठाकरे
ने। कई परिवार को अपना रोजगार और घर छोड़कर भागना पडा था। दक्षिण भारतीय
सरकारों ने इस घटना को बहुत ही गम्भीरता से लिया और नतीजा ये है कि आज
दक्षिण भारतीय युवाओं का मुंबई और दूसरे शहरों में पलायन एकदम कम हो गया
है। दक्षिण भारत में कई शहर आज मुंबई और दूसरे शहरों को टक्कर दे रहे हैं।
2008
में वैसे ही घटना उत्तर भारतीयों के साथ हुई और इस बार उत्तर भारतीयों के
खिलाफ बिगुल बजाया था बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने।
उत्तर भारतीय
लोगों को रोजगार छोड़ कर जानवरों की तरह ट्रेन में लद लद कर भागना पड़ा लेकिन
6 साल बाद भी सरकारों को इस घटना नहीं झकझोरा। और जो लोग मुंबई या
इंड्रस्ट्रियल इलाका छोड़कर भागे थे वो फिर से अपनी आजीविका चलाने के लिए
वापस उसी जगहों पर पहुंच गए।
अब एसी सरकारों के खिलाफ सिर्फ और सिर्फ
बिगुल बजाने की जरुरत हैं और ये जरुरत उन्हें हैं जो आर्थिक तौर पर थोड़ा
सम्पन्न हैं या जिनके पास हुनर है लोगों के भीतर सरकार के खिलाफ आक्रोश
पैदा करने की ताकि सरकारों को इस बात के लिए मजबूर किया जाए कि वो
माइग्रेशन रोके और अपने प्रदेश में रोजगार पैदा करे ताकि नए युवाओं को
रोजगार मिले और नौकरी की तलाश में यूपी छोड़ कर चले गए युवा फिर से यूपी की
आवो हवा का हिस्सा बन सके।
माइग्रेशन से बचाओ सरकार...
दिसंबर 11, 2014
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