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यदि 90 साल तक जिंदा रहना है और खर्चा 25 हजार/माह है..!

अशोक भाटिया, वसई ईस्ट, पालघर.

जितनी भी कोशिश करली जाए कम नहीं हो रही हैं वरिष्ठ नागरिकों की समस्याएं। अच्छी बात यह है कि, गत एक शताब्दी में हुई अनेक वैज्ञानिक उपलब्धियों के कारण स्वास्थ्य सेवाओं में अभूतपूर्व सुधार हुए। इस अवधि में अनेक संक्रामक रोगों पर विजय प्राप्त हुई और अनेक गंभीर बीमारियों पर नियंत्रण पाया जा सका । जिससे मानव मृत्यु दर में अप्रत्याशित गिरावट आई और मानव स्वास्थ्य जीवन एवं दीर्घायु जीवन पाने में सफल हुआ। सौ वर्ष पूर्व भारत में औसत आयु मात्र चालीस वर्ष हुआ करती थी, बढ़ कर वर्तमान समय में पैंसठ वर्ष होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसी कारण आज भारत सहित समस्त विश्व में वृद्धों की संख्या में तीव्रता से वृद्धि हो रही है। इससे स्पष्ट है भारत में वरिष्ठ नागरिकों की बढ़ी संख्या देश की बड़ी समस्याओं में शामिल हो चुकी है। समस्या का मुख्य कारण इस आयु में किसी भी वृद्ध के लिए देश के लिए योगदान लगभग नगण्य होता है। अनुत्पादक वर्ग होने के कारण बुजुर्ग समाज को भार स्वरूप देखा जाता है। जो बुजुर्ग को स्वयं भी व्यथित करती है, क्योंकि भारत में सरकार के पास साधनों के अभाव के कारण, वृद्ध परिवार की जिम्मेदारी होती है।


यदि 90 साल तक जिंदा रहना है और खर्चा 25 हजार/माह है..!एक तरफ तीव्रता से बढती वरिष्ठों की संख्या, दूसरी तरफ तीव्र भौतिक विकास के कारण तेजी से आ रहे जीवन शैली में बदलाव और सामाजिक संरचना में परिवर्तन, पूरे देश और समाज के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है। आज वरिष्ठ नागरिक अपनी आर्थिक आवश्यकताओं के लिए अपनी संतानों पर निर्भर हैं। आर्थिक पराधीनता हमारे देश के वृद्ध समाज की मुख्य समस्या है, जो उनके जीवन को कष्टकारी बनती है। हमारे देश में संतान पर इतनी बड़ी संख्या में निर्भरता का मुख्य कारण, हमारे देश की परम्पराएं और सामाजिक संरचना है। गरीब देश होने के कारण हमारा समाज अल्प आय वर्ग अथवा मध्यम आय वर्ग में निहित है। जो प्राय: अपने जीवन भर की बचत को अपने बच्चों की पढाई लिखाई और उनके विवाह आयोजनों पर खर्च कर समाप्त कर देता है। उसके पास इतना धन शेष नहीं रहता, जिससे वह अपने भावी निष्क्रिय जीवन का भरण पोषण कर पाए, जो कुछ बचता भी है, तो बढती महंगाई के कारण वह रकम ऊंट के मुंह में जीरा साबित होती है। हमारे देश की सरकार भी इतनी सक्षम नहीं है जो इतनी विशाल संख्या में वरिष्ठ नागरिक के भरण पोषण का भार स्वयं उठा सके। सरकारी सेवाओं से निवृत कर्मचारी अवश्य ही पेंशन के माध्यम से, सरकार द्वारा संरक्षित जीवन यापन कर पाते हैं। परन्तु उनकी संख्या कुल वरिष्ठ नागरिकों की संख्या के मात्र 11 प्रतिशत है। शेष वरिष्ठ नागरिकों को अपने जीवन यापन के लिए निजी स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है, या आमदनी के विकल्प ढूंढने होते हैं।

यदि 90 साल तक जिंदा रहना है और खर्चा 25 हजार/माह है..!
जो वरिष्ठ इतने भाग्यशाली हैं की वे आर्थिक मामले में जीवन पर्यंत आत्म निर्भर होते हैं, उनके लिए भी वृद्धावस्था कम समस्याएं नहीं लेकर आती। बल्कि आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर वरिष्ठ नागरिकों को मानसिक रूप से संकुचित स्थिति में देखा गया है। वे अपने परिजनों की उपेक्षा करते देखे जाते हैं, उनके साथ अपमानजनक व्यव्हार करते पाए जाते हैं। क्योंकि उनकी इच्छा अपनी आर्थिक सक्षमता के होते हुए पूरे परिवार पर अपना वर्चस्व बना कर रखने की होती है। जो उनको अपने परिवार में अलोकप्रिय बना देता है। जबकि वृद्धावस्था में उसे समस्त परिवार के सहयोग की आवश्यकता होती है। जो लोग अपनी आर्थिक आत्मनिर्भरता के रहते परिवार से अलग रहकर जीना चाहते हैं, और सोचते हैं की वे अपने सभी काम धन के बल पर करा लेने की क्षमता रखते हैं। ऐसे लोग अक्सर अनेक प्रकार से शोषण और धोखे के शिकार होते हैं। कभी कभी तो उनके नौकर ही उनकी हत्या तक कर देते हैं। और परिवार के प्रति उनका तानाशाह व्यवहार उनके लिए अभिशाप सिद्ध होता है।

उपरोक्त सभी पहलुओं पर विचार मंथन से स्पष्ट है की भारतीय सामाजिक परिवेश में प्रत्येक वरिष्ठ को अपनी जीवन संध्या को सुरक्षित, सुखद, शांतिमय बनाने के लिए अपने परिजनों से सामंजस्य बनाना आवश्यक है। आवश्यक यह भी है कि वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं से समस्त समाज को अवगत कराया जाए। वरिष्ठ नागरिकों को अपने परिजनों के साथ सामंजस्य बना पाने के उपाए सोचे जाएं।

(आलेख- अशोक भाटिया,   सेक्रेटरी, वसई ईस्ट सीनियर सिटिजन एसोसिएशन,   जिला पालघर, महाराष्ट्र)
(अशोक भाटिया, सेक्रेटरी, 
वसई ईस्ट सीनियर सिटिजन 
एसोसिएशन, 
जिला पालघर, महाराष्ट्र)
यह तो निश्चित है, ताली कभी भी एक हाथ से नहीं बजती। यदि बुजुर्ग एवं युवा दोनों पीढियां एक दूसरे के मान सम्मान एवं भावनाओं की कद्र करें, एक दूसरे की खुशियों का ध्यान रखें तब ही परिवार का वातावरण सहज और शांती पूर्ण बन सकता है। क्योंकि वरिष्ठ वर्ग परिवार की अशक्त कड़ी होता है, इसलिए उसे अपने व्यवहार को अधिक संतुलित एवं नियंत्रित रखने की आवश्यकता होती है। यही उनके बड़प्पन का प्रतीक भी है। प्रसिद्ध आर्थिक सलाहकार पंकज मठपाल बताते है कि वरिष्ठ नागरिकों को यदि 90 साल तक जिंदा रहना है और आपका खर्चा 25 हजार रुपये माह है तो कम से कम एक करोड़ की सेविंग आवश्यक है। अब कितने ऐसे वरिष्ठ होंगे, जिन्होंने ऐसी सेविंग कर रखी हो। उनको यदि संतानों, संगठनों, सरकारों से सहायता न मिली तो जीवन के बीच में ही दम तोड़ देना पड़ेगा।

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