सरकार की जलस्त्रोतों को सहेजने संवारने और प्राचीन धरोहरों को संरक्षित करने की कवायद राजस्व विभाग की मोनोपाली की भेंट चढ़ गई। क्षेत्र के पटवारियों की सांठ गांठ से जल स्त्रोतों पर अवैध कब्जाधारियों की खेती मजे से हो रही है। इन पर काबिज लोग हर एक साल लाखों रुपए की फसल मुफ्त में ले रहे है।
कोकलपुर तालाब में बेजा कब्जा करके हो रही है खेती |
महाभारत कालीन तालाब किनारे प्राचीन मूर्तियों और धरोहरों की हो रही बर्बादी
महाभारत कालीन राजा चन्द्रहास की राजधानी कुंतलपुर जो वर्तमान में कोकलपुर नाम से जाना पहचाना जाता है। अपने गर्भगृह में पुरासंपदा समेटे कोकलुपर प्राचीन मूर्तियों के साथ प्राचीन ऐतेहासिक तालाब यहां की अमूल्य धरोहर थी। जो वक्त के साथ खत्म होने की कगार पर आ गई है। यहां का प्राचीन तालाब 32 एकड़ के रकबे में फैला हुआ था, जो अब मात्र 15-16 एकड़ बचा है। इस तालाब की खूबसूरत तराशे गए पत्थरों की सीढ़ियां आकर्षण का केन्द्र है। लबालब नीर भरे इस खूबसूरत तालाब को अतिक्रमणकारियों की नजर लग गई, जिन्होने योजनाबद्ध ढंग से उस पर कब्जा जमाया और मजे से खेती करने लगे जो आज तक जारी है।
पूर्व में दिग्गी सरकार ने पानी सहेजने की योजनान्तर्गत प्राचीन तालाब कुए, बावड़ी इत्यादि की साफ सफाई का विशेष अभियान चलाया था। तब जमाने भर के जल स्त्रोत पुन: चार्ज होकर जीवित हो उठे थे। इस क्रम को शिवराज सरकार ने भी आगे बढ़ाया लेकिन कोकलपुर तालाब पर शायद प्रशासन की आज तक नजर नहीं गई जिससे तालाब पर काबिज लोग मजे से खेती कर रहे है। तालाब का प्राचीन स्वरूप नष्ट होता जा रहा है। धीरे धीरे तालाब में मात्र तीन एकड़ में पानी का भराव वर्षा ऋतु में होता है, जो दस बारह एकड़ तक फैलता तो है, लेकिन बारिश खत्म होते ही सिमट जाता है। इसके बाद बेजा काबिज लोग मजे से इस पर खेती करने लगते है।
पटवारी पर धौंस जमाते या पैसों की चकाचौंध में पटाते ये कब्जाधारी अपनी अपनी बपौती समझकर खेती करने में लगे हुए है, इन्हें रोकने टोकने की हिम्मत शायद ही राजस्व अमले में हो। एक खूबसूरत प्राचीन तालाब अपनी पहचान खोता जा रहा है। शासन प्रशासन एवं पुरातत्व विभाग अवैध कब्जाधारियों के खिलाफ कार्रवाई से बच रहा है, तो प्राचीन ऐतिहासिक कोकलपुर तालाब के वजूद की रक्षा से भी पीछे हटा हुआ है। समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो कभी यहां एक खूबसूरत प्राचीन तालाब हुआ करता था ये किवदंती बन जाएगी।
इस संबंध में तहसीलदार एसएल शाक्या का कहना है कि प्राथमिकता के आधार पर स्वयं जाकर निरीक्षण कर यदि अतिक्रमण पाया जाता है तो कार्रवाई की जाकर उसके संरक्षण की पहल की जाएगी। जाहिर है, हलका पटवारी और राजस्व निरीक्षक ने आज तक तालाब में अतिक्रमण की रिपोर्ट बनाई ही नही है।