बाबू भाई, मुंबई.
कैसे एक मानव महामानव बनता है और कैसे कई सितारों को न सिर्फ बनाता है, बल्कि उनको आगे भी बढ़ता है, यही सब कुछ का नाम है सलीम खान। वैसे तो रूपहले पर्दे पर सलीम खान किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वह सलमान, अरबाज और सोहेल खान जैसे सितारों के मेगा स्टार फादर हैं। हिंदी फिल्म इंस्डस्ट्री में सबसे सफल स्क्रिप्ट राइटर, स्क्रीनप्ले और डायलॉग राइटर सलीम खान आज 79 साल के हो गए हैं। 1996 के बाद पर्दे और लेखन से लगभग दूर हो चुके इस इंदौरी खान के बारे में बहुत कुछ अभी ऐसा है, जो परदे के पीछे है। सलीम खान की सफलता की बानगी जावेद अख्तर के बिना अधूरी है। यह इसलिए कि इन दोनों ने 70 और 80 के दशक में कुल 24 फिल्मों की पटकथा लिखी, जिसमें 20 फिल्में सुपरहिट साबित हुई। यही नहीं, सलीम-जावेद की जोड़ी एक स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर पर्दे पर चमकने वाला पहला नाम भी था। यही नहीं, इस जोड़ी से पहले किसी को भी साझा काम नहीं दिया जाता था।
मायानगरी में सलीम खान ने कलाकार और लेखक से कहीं ज्यादा एक महामानव
का रोल निभाया
सलीम खान का जन्म 24 नवंबर 1935 को इंदौर में हुआ। उनके पिता पुलिस में थे। कच्ची उम्र में ही सलीम खान के सिर से मां का साया उठ गया। 1964 में सलीम खान ने महाराष्ट्र की ब्राह्मण लड़की सुशीला चरक से शादी की। शादी के बाद सुशीला ने नाम बदलकर सलमा रख लिया और 27 दिसंबर 1965 को उन्हें सलमान खान के रूप में पहली संतान का सुख मिला। सलीम और सलमा के चार बच्चे हैं। सलमान के बाद अरबाज खान, सोहेल खान और अलविरा। 1981 में सलीम खान ने अपने जमाने की मशहूर डांसर हेलेन से शादी की। दोनों को कोई औलाद नहीं हुई, जिसके बाद करीब दो दशक पहले उन्होंने एक छोटी बच्ची को गोद लिया और नाम रखा अर्पिता। अभी अर्पिता की ही शादी के चर्चे मीडिया में छाए हुए हैं।
एक्टर बनना चाहते थे सलीम खान
मुंबई आकर सलीम खान की इच्छा एक्टर बनने की थी। छोटे-मोटे किरदार के लिए उन्हें शुरुआत में 400 रुपये प्रतिमाह के वेतन पर रखा गया। उन्होंने लगभग 14 फिल्मों में छोटे-मोटे रोल भी किए, लेकिन बतौर एक्टर कुछ खास बात नहीं बन पाई। सलीम खान बतौर एक्टर जिन फिल्मों में नजर आए, उनमें 1966 में तीसरी मंजिल और सरहदी लूटेरा, 1967 में दीवाना और 1977 में वफादार प्रमुख हैं।
किस्मत से बने एक्टर से स्क्रिप्ट राइटर
सलीम खान एक्टिंग में हाथ-पैर मार रहे थे। सरहदी लूटेरा के लिए जावेद अख्तर डायलॉग लिख रहे थे। जावेद को यह मौका असल डायलॉग राइटर की तबीयत बिगड़ने के कारण मिला था। खैर, यहीं से दोनों की दोस्ती हुई। सलीम खान उन दिनों लेखन में भी कोशिश कर रहे थे और राइटर-डायरेक्ट अबरार अल्वी को असिस्ट करते थे। जावेद अख्तर कैफी आजमी को असिस्ट करते थे। अल्वी और आजमी पड़ोसी थे, लिहाजा सलीम और जावेद की दोस्ती यहां भी फलने-फूलने लगी। अब तक हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में स्क्रीनप्ले, स्टोरी और डायलॉग का काम किसी एक शख्स को नहीं मिलता था। पर्दे पर उनके नाम को भी तव्वजो नहीं मिलती थी।
सुपर स्टार राजेश खन्ना लाए टिवस्ट
सलीम-जावेद की कहानी में राजेश खन्ना ने टिवस्ट ला दिया। दरअसल, राजेश खन्ना को उन दिनों घर (आशीर्वाद) खरीदना था। इसके लिए उन्होंने फिल्म हाथी मेरे साथी साइन की। लेकिन यह रीमेक थी और राजेश खन्ना को कहानी उतनी जच नहीं रही थी। राजेश सलीम-जावेद से मिल चुके थे और उन्होंने दोनों को फिल्म के स्क्रीनप्ले पर हाथ साफ करने का मौका दिया और साथ ही एक वादा कि पर्दे पर लिखा होगा सलीम-जावेद।सलीम-जावेद की जोड़ी यूं तो पहली बार अंदाज में साथ आई, लेकिन हाथी मेरे साथी, सीता और गीता, यादों की बारात ने उन्हें पीछे मुडकर देखने का मौका नही दिया। अमिताभ बच्चन को जंजीर, शोले और डॉन जैसी फिल्मों के जरिए एंग्री यंग मैन बनाना भी सलीम-जावेद के कलम की ही जादूगरी थी। हालांकि 1982 में फिल्म शक्ति के दौरान इस दोस्ती में दरार आ गई और फिर दोनों की राहें जुदा हो गईं। दोनों के आखिरी बार 1987 में मिस्टर इंडिया के लिए साथ काम किया। जोड़ी टूटने के बाद जावेद अख्तर ने भले ही लिखना जारी रखा, लेकिन सलीम खान ने 1996 के बाद फिल्मों के लिए लेखन को अलविदा कह दिया। जावेद से अलगाव के बाद उन्होंने नाम, पत्थर के फूल, तूफान, मझधार और दिल तेरा दीवाना जैसी फिल्मों की कहानी लिखी, लेकिन पुराना जादू नहीं चला पाए। हालांकि बेटे सलमान की कई फिल्मों वीर, किक, वांटेड, दबंग की कहानी और डायलॉग के लिए टिप्स जरूर देते रहे।
न जाने कितने सुपर स्टार बनाए हैं सलीम खान ने
नवंबर 25, 2014
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