मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व अपने गौरवशाली अतीत की ओर तेजी के साथ लौट रहा है। यहां बाघों की वंशवृद्धि में अहम भूमिका निभाने वाली बाघिन टी-1 ने चौथी बार शावकों को जन्म दिया है। पन्ना टाइगर रिजर्व के जंगल में इन नन्हें मेहमानों के आगमन से यहां बाघों की संख्या तीस के पार जा पहुंची है। यह चमत्कारिक उपलब्धि सिर्फ पांच वर्ष के भीतर हासिल हुई है, जो अपने आप में एक मिसाल है।
बाघिन टी-1 के नन्हे शावक का पहला फोटोग्राफ |
बाघ पुनर्स्थापना की पहली बाघिन टी-1 ने चौथी बार दिया शावकों को जन्म
पांच वर्ष के भीतर ही बाघों की संख्या बढ़कर पहुंची शून्य से तीस के पार
उल्लेखनीय है कि चौथी बार शावकों को जन्म देने वाली बाघिन टी-1 पन्ना बाघ पुर्नस्थापना योजना की पहली बाघिन है, जिसे मार्च 2009 में बांधवगढ़ से पन्ना लाया गया था। बाघ विहीन पन्ना टाइगर रिजर्व में सबसे पहला कदम इसी बाघिन के पड़े थे, जो बहुत ही शुभ और फलदायी साबित हुए। क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व आर. श्रीनिवास मूर्ति ने बताया कि बाघिन टी-1 के द्वारा ठीक एक माह पूर्व चौथी बार शावकों को जन्म दिए जाने की पुष्टि अनुश्रवण के आधार पर हुई है। इस बाघिन के अनुश्रवण दल द्वारा गत 3 नवम्बर रविवार को मंडला वन परिक्षेत्र में बाघिन टी-1 के नन्हें शावकों में से एक को प्रत्यक्ष रूप से देखा भी गया है। इतना ही नहीं इस नन्हें बाघ शावक का छायाचित्र लेने में भी कामयाबी मिली है। चौथी बार इस बाघिन ने कितने शावकों को जन्म दिया है अभी इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है। आने वाले दिनों में जब शावक अपनी मां के साथ बाहर निकलने लगेंगे तभी उनकी संख्या का सही आकलन हो पायेगा।
मप्र पन्ना टाइगर रिजर्व का प्रवेश द्वार |
आर. श्रीनिवास मूर्ति |
बढ़ती संख्या से छोटा पडन लगा जंगल का दायरा
यह जानकर सुखद अनुभूति होती है कि पन्ना टाइगर रिजर्व दुनिया का पहला संरक्षित क्षेत्र है जहां बाघों के पुर्नस्थापना का कार्यक्रम इतने कम समय में इतना सफल रहा है। पन्ना का यह संरक्षित वन क्षेत्र बीते चार-पांच सालों में बाघों की नर्सरी के रूप में विकसित हुआ है। यहां जन्म लेने वाले बाघ शावक सुरक्षित और अनुकूल माहौल में पलकर न सिर्फ बड़े होते हैं बल्कि जंगल की निराली दुनिया और कानून से भी परिचित होते हैं। शिकार करने में कुशलता व दक्षता हासिल होते ही मां से अलग होकर शावक स्वच्छन्द रूप से विचरण करते हुए अपने इलाके का निर्धारण करते हैं। बाघों की तेजी से बढ़ती संख्या के कारण पन्ना टाइगर रिजर्व का सीमित दायरा अब छोटा पडन लगा है, नतीजतन यहां के बाघ समूचे बुन्देलखण्ड व बघेलखण्ड के जंगलों में भी विचरण करने लगे हैं। इसी को कहते हैं अच्छे दिनों का आना जिसने बुरे दिनों को विस्मृत कर दिया है।