किसी भी जीवनदायिनी नदी के अविरल प्रवाह को बाधित कर उसकी प्रकृति से छेड़छाड़ करना खतरनाक साबित हो सकता हैं। ऐसा करने से लाभ होने की तुलना में हानि की संभावना अधिक हैं। चूंकि हर नदी की अपनी अलग केमिस्ट्री और बायोलॉजी होती है, इसलिए नदियों को लिंक करने से उनकी नैसर्गिकता खत्म हो जायेगी जिसका असर पूरे ईको सिस्टम पर पड़ेगां।
शिल्प नगरी खजुराहो में आयोजित कार्यशाला |
जीवनदायिनी नदी के नैसर्गिक प्रवाह से खिलवाड़ करना होगा खतरनाक
यह बात केन नदी के अध्ययन प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे प्रोफेसर ब्रिज गोपाल ने खजुराहो में आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला में कहीं। नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ ईकोलॉजी के तत्वाधान में आयोजित इस कार्यशाला में देश की विभिन्न नदियों का गहन अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ, रिसर्चर व छात्र शामिल रहें। कार्यशाला में केन नदी के विभिन्न पहलुओ उसके ईको सिस्टम तथा ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व पर विस्तृत चर्चा हुईं। जिसमें यह बात उभरकर सामने आई कि दो नदियों को जोडनÞा अवैज्ञानिक और अव्यवहारिक हैं। नदी जीवनदायिनी होती है और उसके बहाव से खिलवाड़ करना जीवन से छेड़छाड़ करने जैसा हैं।
शिल्प नगरी खजुराहो में आयोजित कार्यशाला |
इस कार्यशाला में मौजूद पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक आर श्रीनिवास मूर्ति ने बताया कि केन-बेतवा लिंक परियोजना के मूर्त रूप लेने पर पन्ना टाइगर रिजर्व का सौ वर्ग किमी से भी अधिक क्षेत्र डूब में आ जाएगा। डूब में आने वाला यह क्षेत्र टाइगर रिजर्व का कोर एरिया है तथा बाघों का सबसे उत्तम रहवास हैं। नतीजा यह होगा कि परियोजना से पन्ना टाइगर रिजर्व की अपूर्णीय क्षति होगीं। केन नदी पन्ना टाइगर रिजर्व के लिए जीवनदायिनी है, यह एक जीवन्त नदी हैं। इसलिए इसमें सिर्फ पानी को देखना काफी नहीं है, इसके अलावा भी यह बहुत कुछ है जिसे उसकी पूरी समग्रता में देखे जाने की जरूरत हैं। तभी हम यह समझ पायेंगे कि नदी से हम कैसे प्रभावित होते हैं तथा नदी को हम कैसे प्रभावित करते हैंं। श्री मूर्ति ने कहा कि ज्यादातर प्राकृतिक आपदाएं मानव निर्मित होती हैं। नदियों के किनारों को बचाने के लिए एकीकृत प्रबंधन होना चाहिए।
केन नदी में मिलती है 89 प्रजाति की मछलियां
प्रोफेसर केडी जोशी ने अपने अध्ययन रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि हमने केन नदी में 89 प्रजाति की मछलियां पाई हैंं। इस नदी की इकोनामिक वैल्यू क्या है यह इस प्रोजेक्ट के पूरा होने पर निकल कर आएगा। जोशी ने कहा कि यहां सिर्फ केन नदी की बात करना ठीक नहीं है, हमें केन रिवर्स की बात करनी होगीं, क्योंकि केन की अनेको छोटी-बड़ी सहायक नदियां भी हैंं। नदी का सबसे बड़ा धर्म ग्राउण्ड वाटर रिचार्ज होता हैं। नदी तथा उसके ईको सिस्टम को हम जितना जानते हैं वह बहुत कम हैं। नवम्बर के महीने में नदी सूखनी नहीं चाहिए, यदि कोई नदी सूखती है और सीजनल बन गई है तो उसके कारणों को जानने की कोशिश होनी चाहिए। कार्यशाला में दिनेश मरोठिया व रीतेश शर्मा सहित अन्य लोगों ने भी केन नदी तथा ईको सिस्टम के संबंध में अपने विचार साझा कियें।
नदी का प्रवाह रूकने पर कैसे आयेगी बालू
नदी की इकोनामिक वैल्यू क्या है, इस पर चर्चा करते हुए प्रोफेसर ब्रिज गोपाल ने बालू का उदाहरण देते हुए बताया कि नदी मुफ्त में बालू देती हैं। यदि बालू को बनाने का प्रयास किया जाय तो यह कितना मंहगा सौदा होगा, इसकी कल्पना की जा सकती हैं। इसके बावजूद उस गुणवत्ता की बालू का निर्माण मुमकिन नहीं होगा जो बालू प्राकृतिक रूप से नदियों में मिलती हैं। आपने कहा कि प्राकृतिक व्यवस्था के तहत नदियों में बालू का स्टोर होता है, यदि नदी का प्रवाह थम गया तो बालू का निर्माण भी नहीं हो सकेगा प्रवाह के बिना कुछ भी नहीं होगा। नदी का प्रवाह रूकने से सिर्फ बालू बनना ही नहीं थमेगा बल्कि अन्य कई बदलाव भी आयेंगे, जिसका हम इस प्रोजेक्ट में अध्ययन करने का प्रयास करेंगें।