अरुण सिंह, पन्ना.
मंदिरों के शहर पन्ना में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय शरद पूर्णिमा महोत्सव के धार्मिक आयोजनों की श्रृंखला में सोमवार शाम सदगुरु के सम्मान का प्रतीक कही जाने वाली ऐतिहासिक तेरस की महामति प्राणनाथ जी की दिव्य सवारी (शोभा यात्रा) श्री खेजरा मंदिर से भक्ति भाव से परिपूर्ण होकर उत्साह व धूम धाम के साथ निकाली गई।
भक्ति रस और उल्लास से सराबोर हो गया समूचा पन्ना धाम
सवारी में दिखा भक्ति-भाव व विविधता का अनूठा समागम
श्री जी की मनमोहक सेवा पूजा की झांकी के साथ-साथ इस सवारी का मुख्य आकर्षण रहा भक्ति रस में डूबा विविधता का अनोखा समागम, जिसमें विभिन्न प्रांतों व भिन्न-भिन्न देशों से आए श्रद्धालु एक धुन में मगन होकर नाचते झूमते देखा गया। नगर के प्रमुख मार्गों से सवारी के निकलने के दौरान ऐसा लग रहा था मानो समूचा पन्ना धाम ही भक्ति रस में सराबोर हो गया हो।
पन्ना नगर के अति प्राचीन खेजरा मंदिर से सोमवार शाम 6:00 बजे से अखंड मुक्तिदाता, निष्कलंक बुद्ध अवतार महामति प्राणनाथ जी की सवारी जब निकली तो ऐसा लगा मानो सभी सन्त मनीषी विविध रूप धारण कर इस सवारी की शोभा बढ़ा रहे हो। दिव्य रथ पर सवार श्री जी तथा देश के कई भागों से आए सुन्दर साथ के अलावा धर्मगुरू इस भव्य सवारी की धर्म निष्ठता एवं भक्तिभाव के साथ 397 वर्षों से सतत आयोजित होने वाले इस ऐतिहासिक आयोजन के साक्षी बने। श्री जी की इस विशाल सवारी में नगर के निवासियों के अलावा देश विदेश के हजारों सुन्दरसाथ मौजूद थे। सभी सुन्दरसाथ बैण्डबाजे की धुन पर अलग-अलग नाचते गाते तथा अपनी-अपनी परम्पराओं के अनुरूप पन्ना नगर की पवित्र धरती पर प्राणनाथ जी के प्रेम का अहसास कराते जब नगर के प्रमुख मार्गों से निकले तो यह शोभायात्रा देखते ही बनती थी।
सद्गुरू के सम्मान का प्रतीक है तेरस की सवारी
शरद पूर्णिमा महोत्सव के दौरान पन्ना में सैकड़ों वर्षों से लगातार श्री जी की सवारी भव्य स्वरूप के साथ निकाली जाती है। इस सवारी का आयोजन पहली बार बुन्देलखण्ड केशरी महाराजा छत्रसाल जी ने किया था। सदगुरु के सम्मान का प्रतीक कही जाने वाली इस तेरस की सवारी को लेकर मान्यता है कि जब बुन्देलखण्ड को चारों तरफ से औरंगजेब के सरदारों ने घेर लिया था तब महामति श्री प्राणनाथ जी ने महाराजा छत्रसाल को अपनी चमत्कारी दिव्य तलवार देकर विजयश्री का आर्शीवाद दिया था और कहा था कि हे राजन जब तक तुम अपने दुश्मनों को धूल चटाकर नहीं आ जाते तब तक में इसी खेजरा मंदिर में ही रूकूंगा। तेरस को जब महाराजा छत्रसाल अपने दुश्मनों पर फतह हासिल कर लौटे तो अपने सदगुरु महामति प्राणनाथ जी को पालकी में बिठाकर अपने कंधों का सहारा देकर श्री प्राणनाथ जी मंदिर में स्थित गुम्मट बंगला जिसे ब्रम्ह चबूतरा भी कहते हैं में लाए थे। इसी के प्रतीक स्वरूप तभी से यह आयोजन हर वर्ष किया जाता है, जिसमें शामिल होने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी और वृद्धि देखी गई। श्री खेजरा जी मंदिर से निकली श्री जी की सवारी को श्री प्राणनाथ जी मंदिर की कुल तीन किलोमीटर तक की यात्रा में सात से आठ घंटे का समय लग जाता है। हजारों की संख्या में देश-विदेश एवं स्थानीय सुन्दरसाथ, नगरवासी इस विशाल सवारी में श्री जी के प्रेम में इतने खो जाते हैं कि उन्हें समय का कुछ पता ही नहीं चलता। यही वजह है कि यह यात्रा रात्रि लगभग एक बजे ब्रम्ह चबूतरा श्री प्राणनाथ जी के मंदिर पहुंची।
जगह-जगह भक्तिभाव से हुई श्री जी की आरती
धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व की इस विशाल शोभायात्रा में पन्ना नगर वासियों ने भी पूरे उत्साह व भक्ति भाव के साथ बढ़ चढकर अपनी भागीदारी निभाई गई। रथ में सवार श्री जी की एक झलक निहारने के लिए लोग घंटों सडक के किनारे खड़े रहे। सवारी के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा जगह-जगह श्री जी की आरती उतारी गई एवं शोभा यात्रा में सम्मिलित सुन्दरसाथ को मिठाइयां बांटी गईं। जगह-जगह शुद्ध पेयजल आदि की भी व्यवस्था की गई थी। तेरस की इस विशेष शोभा यात्रा में श्री 108 प्राणनाथ ट्रस्ट के पदाधिकारी एवं ट्रस्ट के बाहर के पदाधिकारियों ट्रस्ट के प्रबंधक एवं समस्त न्यासियों सहित स्थानीय एवं देश के कोने-कोने से आए धर्माचार्य व धर्मोपदेशकों की बड़ी संख्या में सहभागिता रही।