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...और भक्तों के ऊपर से गुजर गया गायों का झुंड

निशा राठौर, झाबुआ.

प्रतिवर्ष आदिवासी समुदाय दीवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के लिये पूरे वर्षभर इंतजार करता है ताा खासतौर पर इस अवसर के लिये तैयारी करता है क्योंकि इसी दिन आदिवासियों के लिये गायों के पैरों में गिरकर अपने शरीर पर से गायों क गुजरने देने की अनुठी परंपरा का निर्वाहन होता है। गाय गोहरी का पर्व परंपरानुसार इस वर्ष भी मनाया गया परंतु बीते कुछ सालों से स्थानीय नगरिकों में इस परंपरा के निर्वाह को लेकर वैसा उत्साह नहीं दिखाई पडता जो कुछ वर्षो पूर्व दिखाई देता था। हालांकि भीड जूटती है, लेकिन इसमें हुल्लडबाज युवकों की संख्या अधिक होती है, परंपरा व संस्कृति से बंधे गंभीर दर्शक अब इस आयोजन से अपना मंह फे रने लगे है। 

...और भक्तों के ऊपर से गुजर गया गायों का झुंड
दुनिया में अनूठा गाय गोहरी पर्व मनाया गया झाबुआ में
 
आधुनिकता के फेर में हर साल कम हो रहे हैं श्रृद्धालु


उल्लेखनीय है कि झाबुआ नगर में दीवाली के दूसरे दिन गाय गोहरी पर्व उत्साह व उल्लास के साथ मनाने की परंपरा कई दशकों से चली आ रही है, इसके तहत स्थानीय गोर्वधननाथ मंदिर में दो दिवसीय आयोजन रखा जाता है, जिसके तहत दीवाली के दिन मंदिर में एक गाय को लाया जाता है तथा उसके कान में ठुसठुसाकार दूसरे दिनं गोर्वधन पूजा हेतु आमंत्रित किया जाता है। पडवा के दिन गाय को पुन: मंदिर में सुबह 11 बजे लाया जाता है तथा गोबर से बने हुए गोवर्धन पर्वत को गायों के खुर से रौंद दिया जाता है। इस गोबर क सात भागों में बांटकर मंदिर के सामने रख दिया जाता है। वर्षो पहले इस परंपरा को निभाने में आस-पास के किसान पशुपालक बडी संख्या में भाग लेते थे, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व हुए तनाव के बाद प्रशासन की सख्ती बढ गई और इस पर्व का स्वरूप फका पडता जा रहा है। पडवा के दिन शाम चार बजे मंदिर परिसर में गाय गौहरी का पर्व संपन्न होता है जिसमें मंदिर समिति सहित श्र्द्घालु मंदिर परिसर की सात बार परिक्रमा करते है ओर इन्हीं के साा गायों का झुंड भी होता है। इस मौके पर मन्नतधारी व्यक्ति गायों के समक्ष पेट के बल लेटते है ओर गाय उनके पीठ के उपर से होकर निकलती है लेकिन मन्नतधारी व्यक्ति के प्रभाव व देव्यअंश के कारण गायो के नुकीले खुरों से उनको कोई चोट नहीं आती है। यह ग्रामीणों की आस्था का कमाल ही कहा जाना चाहिए कि, गौवंश लेटे हुए युवकों के शरीर पर चढकर निकले इसके लिये टोलिया आयोजन स्थल पर फटाके ओर पोटास भरे जानेवाले पारंपरिक लोहे के धमुके जमीन पर पटककर उसे छोडते है। इन धमाक की धमक एवं धुएं से चौंकी गाएं लेटे हुए मन्नतधारी युवकों के उपर चढकर निकल जाती है। इस तरह उनकी मन्नत पूरी हो जाती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षो से प्रशासन की सख्ती के चलते ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। फटाकों पर प्रतिबंध लगाने की वजह से आदिवासियों के पारंपरिक धमुके भी नहीं चला पा रहे है। परिणाम स्वरूप दर्जनभर से कम गाएं जो किसी तरह वहां लाई जाती है वे भी मन्नतधारी युवकों के शरीर पर चढे बिना निकल जाती है। इस प्रकार साल भर मनोती पूरी करने का इंतजार कर रहे लोगों को निराश लौटना पडता है, जबकि दूसरी ओर ऐसे भी कई लोग है जिन्होंने आयोजन स्थल पर फटाके छोडे जाने की मनाही करने का स्वागत योग्य कदम बताया। इस वर्ष भी करीब एक दर्जन मन्नतधारी व्यक्ति गाय गोहरी पर्व में सम्मिलित हुए थे। परिक्रमा के बाद समिति की ओर से ग्वालों सम्मान भी किया गया लेकिन उपस्थित जन समुदायों में उत्साह कुछ कम था। आयोजन में राजनीतिक दलों के नेताओं ने भी अपनी सक्रिय उपस्थिती दर्ज करवाकर क्षेत्र के लोगों को यह संदेश देने का प्रयास किया कि वे अपने परपंराओं से जडे हुए है। ग्रामीणों को कहना है कि गौ हत्या बंद करवाने के मुद्दे पर आक्रामक रूप अपनाने वाली भाजपा के शासन काल में जिले से होकर बडी संख्या में गाएं गुजरात के बूचड खाने भेजी जा रही है, इसी कारण क्षेत्र में गायों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है। क्षेत्र में सार्वजनिक चरनोई की भूमि पर बेजा अतिक्रमण के कारण गौवंश कम हुआ है। इसका नतीजा यह निकला कि जिस गाय गौहरी पर्व पर 10-12 वर्ष पूर्व सैकडों की संख्या में गाये लाई जाती थी, वहीं अब उंगलिया पर गिने जाने वाली गाये भी गाय गोहरी पर्व पर नही मिल पा रही है। शहरी दर्शको के अनुसार यदि गायों की संख्या में इसी तरह कमी होती गई तो शायद गाय गौहरी का यह प्रसिद्घ पर्व अस्तित्व खो देगा। 

घरों पर भी हुई गोरर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा के लिए नहीं मिलता गोबर
गोवर्धन पूजा के अवसर पर नगर के ग्वाल समाज के अलावा कई समाजजनों के घर आँगन में भी गोवर्धन पर्वत बनाकर उनकी पूजा-अर्चना की। गौ-वंश की कमी का असर भी देखने को मिला जिसके चलते कई लोग अपने घरों के सामने गोवर्धन पूजा इस लिये नहीं कर पाते कि उन्हें काफी प्रयास करने के बाद भी एक तगारी गोबर भी नहीं मिल पाता, जिसके कारण गोबर उपलब्ध वाले घरों पर पहुंचकर पूजा करना पडती है। 

...और भक्तों के ऊपर से गुजर गया गायों का झुंडपेटलावद में भी मनाया गया गाय गोहरी पर्व
दीपावली के दूसरे दिन पड़वा पर पंपावती नदी के किनारे गाय गोहरी पर्व देखने के लिए हजारों लोग जुटे। करीब एक दर्जन श्रद्धालु श्रद्धा और साहस के साथ मठ मंदिर प्रांगण में हाथों में छोटे-छोटे मुर्गी के चूजे लिए खडे थे। गायों को आता देख हाथों से चूजों को उड़ाया और औंधे जमीन पर लेट गए। देखते ही देखते दर्जनों गाय इन पर से गुजर गई। मुख्य रूप से आदिवासी, गुर्जर व सिर्वी समाज के लोगों ने पर्व में सहभागिता की। सुरक्षा की दृष्टि से पुख्ता बंदोबस्त किये गए। प्रशासन की ओर टीआई भूपेंद्र सिंह मोर्य की टीम, तहसीलदार अशोक कोवास, नायब तहसीलदार प्रवीण पाटीदार दल बल के साथ सुरक्षा मौजूद रहे। माता महालक्ष्मी के पूजन के साथ ही गोवर्धन की पूजा भी की जाती है घर के आंगन के बीच में दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन को स्थापित कर पूजन किया गया। आधुनिक युगकार शहरी क्षेत्र में यह प्रथा कम हो रही है, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में यह परंपरा आज भी कायम है।

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