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पवित्र मनोरम स्थल सारंग धाम को है विकास की दरकार

अरुण सिंह, पन्ना.

जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 18 किमी दूर धनुषाकार पहाड़ी की तलहटी में स्थित प्राकृतिक मनोरम स्थल सारंगधाम को विकास व समुचित देखरेख की दरकार है। आध्यात्मिक आबो-हवा से परिपूर्ण यह खूबसूरत स्थान सुतीक्ष्ण मुनि की तपोस्थली रही है। बताया जाता है कि वन गमन के समय मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम ने यहां पर धनुष उठाकार दैत्यों के संहार का प्रण लिया था, इसीलिए इस पवित्र तपोस्थली का नाम सारंगधर पड़ा। बावजूद धार्मिक महत्व का यह मनोरम स्थल उपेक्षित है और समुचित देखरेख के अभाव में यहां की प्राकृतिक सुषमा व आध्यात्मिक ऊर्जा तिरोहित हो रही है।

मंदिर परिसर के अक्षय वट से फूटती कोपलें
मंदिर परिसर के अक्षय वट से फूटती कोपलें
समुचित देखरेख के अभाव में उजड़ रही है ऐतिहासिक तपोस्थली 
 
वन गमन के समय राम ने यहां लिया था दैत्यों के संहार का संकल्प


उल्लेखनीय है कि सारंगधाम प्राचीन ऋषि-मुनियों की वह तपोस्थली है जहां पहुंचने पर अपूर्व शान्ति और आनन्द की अनुभूति होती है। यहां की हरी-भरी पहाड़ी व जहां आश्रम स्थित है, हर कहीं चप्पे-चप्पे पर ऋषि-मुनियों की तपश्चर्या की तरंगे आज भी महसूस की जा सकती हैं। विगत कुछ वर्षों से यहां की आध्यात्मिक आभा व प्राकृतिक सौन्दर्य धीरे-धीरे गायब होता जा रहा है। सारंगधाम में अक्षय वट के नीचे अभूतपूर्व आत्मिक शान्ति की अनुभूति और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। इस अनूठे वृक्ष की महिमा ही कुछ ऐसी है कि इसकी टहनियों व पत्तियों को स्पर्श करने मात्र से ही अलौकिक आनंद का अनुभव होता है। लेकिन दुर्भाग्य से अब इस पावन स्थली पर अक्षय वट के दर्शन नहीं होते, क्योंकि सदियों पुराना यह अनूठा वृक्ष सूख गया है। अब इस वृक्ष की निशानी के रूप में सिर्फ ठूंठ खड़ा है। 

ऐतिहासिक सारंगधर आश्रम की मनोरम छटा
ऐतिहासिक सारंगधर आश्रम की मनोरम छटा
पिछले दिनों कृषि क्रांति रथ का कवरेज करने के लिए पत्रकारों का एक दल जब अहिरगुंवा गांव पहुंचा तो पास में ही स्थित सारंगधाम जाने की भी इच्छा जागृत हुई। सभी पत्रकार इस पावन रमणीक स्थल में अपनी पुरानी यादों को लेकर पहुंचे, लेकिन यहां का नजारा देख अत्यधिक व्यथित हुए। जिस अक्षय वट की मौजूदगी से सारंगधाम आश्रम की एक अलग ही अलौकिक छटा देखने को मिलती थी, वृक्ष की गैर मौजूदगी से वही स्थल उजाड़ सा नजर आ रहा था। जिसने भी अक्षय वट के नीचे बैठने का अनुभव लिया है वह इस बात को प्रगाढ़ता के साथ महसूस कर सकता है कि बीते कुछ सालों में यहां कितना कुछ बदल गया है। यह स्थल हमारी अनूठी आध्यात्मिक धरोहर है जिसे हम उसके प्राकृतिक स्वरूप में सुरक्षित नहीं रख पाये। पन्ना के पूर्व कलेक्टर बसंत प्रताप सिंह ने सारंगधाम को भविष्य के अनूठे पर्यटन स्थल के रूप में पहचानकर यहां के विकास की योजना बनाई थी। उनके कार्यकाल में इस स्थल का बड़े ही सुनियोजित तरीके से कलात्मक विकास भी हुआ। उसके बाद सिर्फ एक-दो कलेक्टरों ने और ध्यान दिया फिर किसी ने भी इस तपोस्थली की सुध नहीं ली। 

ऐतिहासिक सारंगधर आश्रम का ध्यान कक्ष
ऐतिहासिक सारंगधर आश्रम का ध्यान कक्ष
औषधीय गुणों से परिपूर्ण है रामकुण्ड
सारंगधर आश्रम में जल कुण्डों की पूरी श्रंखला है लेकिन इनमें रामकुण्ड की महिमा अपार है। इस अनूठे प्राकृतिक कुण्ड की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह हमेशा कंचन जल से लबरेज रहता है। सूखा व अकाल पडनÞे पर भी इस कुण्ड पर कोई असर नहीं होता, कितना भी पानी निकाले कुण्ड का जल स्तर यथावत बना रहता है। पहाडियÞों से रिसकर इस कुण्ड में पहुंचने वाले जल में चमत्कारिक औषधीय गुण भी मौजूद हैं। कुण्ड के जल का नियमित सेवन करने वाले को पेट से संबंधित कोई विकार नहीं होते। यहां का पानी पीने से भूंख बढ़ती है तथा पाचन की क्रिया भी दुरूस्त रहती है। कुण्ड के औषधीय गुणों की ख्याति दूर-दूर तक है, फलस्वरूप अनेकों लोग यहां आकर कुण्ड का पानी लेकर जाते हैं। 

रामवन गमन मार्ग में सारंग का विशेष उल्लेख
राम वन गमन मार्ग में भगवान जिन-जिन स्थानों पर पहुंचे हैं, उनमें सारंगधर का विशेष उल्लेख है। इस पूरे इलाके में आज भी ऐसे चिन्ह व संकेत मिलते हैं जिससे पता चलता है कि भगवान श्रीराम वन गमन के समय यहां से होकर गुजरे हैं। सारंग के निकट स्थित बृहस्पति कुण्ड भी पावन स्थलों में से एक है, यहां पर आज भी दर्जनों ऐसी गुफाएं हैं जहां ऋषि-मुनि तपस्या करते रहे हैं। इन गुफाओं की शान्ति व शीतलता स्थल की पवित्रता का बखान करती है। सारंग की पहाडिय से लेकर बृहस्पति कुण्ड के घने जंगल व सेहों में अलौकिक वनौषधियों का भण्डार है। आर्युवेद के जानकारों का कहना है कि सारंग की पहाडियÞों में ऐसी औषधियां भी मिल जाती हैं जो सिर्फ हिमालय में मिलती हैं। हालांकि, जंगलों की हो रही अधाधुंध कटाई के कारण यह प्राकृतिक संपदा भी नष्ट हो रही है।

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