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सत्ता के लिए शिवसेना की बगलगीर हो सकती है भाजपा

विजय यादव, मुंबई.

भले ही भाजपा लाख दावे करे कि महाराष्ट्र में उसको पूर्ण बहुमत मिल जाएगा, हालांकि ऐसा लगता नही है। अगर बहुमत नहीं मिला तो भाजपा के सामने सरकार बनाने के लिए संभावित विकल्प क्या होंगे? क्या एक बार फिर से पुराने साथी पर ही भरोसा करके शिवसेना का समर्थन लेगी या फिर कांग्रेस का सफाया हो जाने के बाद भी सत्ता में भागीदारी के लिए हरचंद कोशिश में लगी शरद पवार की एनसीपी से हाथ मिलाएगी।

सत्ता के लिए शिवसेना की बगलगीर हो सकती है भाजपा
स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने पर पुराने साथी को ही तरजीह देगी भाजपा
 
कांग्रेस का सफाया होने के बाद शरद पवार भी दे सकते हैं समर्थन


शायद इसी लिए राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल ने ट्विटर पर कहा कि राज्य में सरकार बनाने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। शरद पवार सरकार का हिस्सा बनने की पूरी कोशिश करेंगे। भाजपा ने पूरे प्रचार के दौरान लगातार जिस राकांपा को भ्रष्टाचारवादी कहा, उसके साथ मिलकर वह सरकार बनाएगी, इसके आसार कम ही हैं। भाजपा अगर राकांपा से हाथ मिलाती है तो उसकी नैतिकता के दावे व भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की घोषणाएं उसी के लिए परेशानी का सबब बन जाएंगी। वैसे भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र फडणवीस कई बार कह चुके हैं कि उनकी पार्टी बहुमत न मिलने की दशा में राकांपा के साथ हाथ नहीं मिलाएगी, चाहे उनकी सरकार बने या नहीं।
भाजपा के साथ गठबंधन करनेवाली रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया (आठवले) के रामदास आठवले पहले भी कह चुके हैं कि बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में वे खुद उद्धव ठाकरे के पास जाकर फिर से सेना-भाजपा का गठबंधन करवाएंगे। बुधवार को एक चैनल पर आठवले ने दावा किया कि राज्य हित में सेना-भाजपा को एकसाथ आना ही पड़ेगा।

क्या सच होगी सोनिया गांधी की भविष्यवाणी..?
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चुनाव प्रचार के दौरान ‘भविष्यवाणी’ कर चुकी हैं कि चुनाव के बाद भाजपा और सेना एक हो जाएंगे। कांग्रेस अपनी धुर विरोधी भाजपा को समर्थन दे नहीं सकती। ऐसी दशा में भाजपा को पुराने साथी शिवसेना के पास ही लौटना पड़ सकता है। भाजपा के स्थानीय नेताओं और उद्धव ठाकरे ने चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ आग उगलने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। मगर प्रधानमंत्री मोदी ने शिवसेना के खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला। यह उस रणनीति का हिस्सा था जो अमित शाह ने 27 सितंबर को मुंबई में प्रदेश के भाजपा नेताओं के साथ मिलकर बनाई थी। इसी के चलते भाजपा की पहली पंक्ति के नेता चुप रहे, लेकिन प्रदेश के नेता करारा जवाब देते रहे। बावजूद माना जा रहा है कि, सेना और भाजपा गठबंधन आसानी से नहीं होगा। चुनाव से पहले ठाकरे मुख्यमंत्री सहित 151 सीटें चाहते थे, जो भाजपा को मंजूर नहीं थी। ऐसे में सेना अब मंत्रियों की संख्या बढाने का दबाव डालेगी। 

सत्ता के लिए शिवसेना की बगलगीर हो सकती है भाजपा
....तो मुख्यमंत्री पंकजा मुंडे ही बनेगी
दूसरी ओर सूत्रों का दावा है कि, उद्धव मुख्यमंत्री के रूप में फडणवीस के नाम पर तैयार नहीं होंगे, क्योंकि प्रचार के दौरान फडणवीस ने शिवसेना पर जमकर हमले किए और खासा नुकसान पहुंचाया है। इसका बदला लेने के लिए उद्धव पूरी कोशिश करेंगे कि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर फडणवीस के बजाय पंकजा मुंडे बैठें, जिन्हें वे अपनी बहन मानते हैं। वैसे भी महाराष्ट्र में सबको पता हैकि 90 के दशक में बाल ठाकरे और गोपीनाथ मुंडे एक दूसरे के काफी करीबी रहे हैं और दोनों के प्रयासों से ही राज्य में भाजपा-सेना का गठबंधन और उनकी सरकार बनी थी। पुराने रिश्तों को ध्यान में रखते हुए इस चुनाव में उद्धव ने पंकजा मुंडे के खिलाफ परली में कोई उम्मीदवार नहीं उतारा, ताकि पंकजा की जीत आसान हो सके।


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