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ऐसा होगा बापू से मोदी का संवाद..?

रघु ठाकुर, सागर.

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद सरकार बनने व प्रधानमंत्री बनने के बाद गांधी जी की चर्चा, श्री नरेन्द्र्र मोदी की जबान में यदाकदा सुनने को मिल जाती है। यहां तक कि उन्होने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने पहले भाषण में गांधी, लोहिया दीनदयाल उपाध्याय के आदर्शों पर चलने की बात भी कही। कुछ प्रधानमंत्री का इशारा और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ का निर्देश ही रहा होगा कि 25 सिंतबर 2014 को समूचे देश में सरकारी तंत्र व प्रचार तंत्र में स्व. दीनदयाल उपाध्याय की जंयती जोर शोर से मनाई गई। 2 अक्टूबर 2014 से तो प्रधानमंत्री जी ने बाकायदा देश में स्वच्छता अभियान ’’स्वच्छ भारत’’ शुरू करने की घोषणा की तथा चीनी राष्ट्रपति श्री जिनपिंग को अहमदाबाद में साबरमती तट पर गांधी जी की पुस्तकें भी भेंट की। जब कोई सत्ताधारी राजनेता, गांधी, लोहिया या दीनदयाल, जयप्रकाश की चर्चा करता है तो उनके अनुयायियों को सुकून मिलता है तथा वे गौरवान्वित महसूस करते हैं।

ऐसा होगा बापू से मोदी का संवाद..?

परन्तु विचारवान लोगों के मन में आशंका उपतजी है कि क्या सत्ताधीश वास्तव में गांधी को अमल में उतारना चाहते हैं या फिर अपनी वक्ती जरूरतों, तर्क व सुविधा के लिये उनका इस्तेमाल ढाल या कवच के रूप में करना चाहते हैं। पिछले चार माह में भारत सरकार की आर्थिक नीतियां व प्रधानमंत्री की जापान व अब अमेरिका यात्रा के अनुभव व निर्णय तो गांधी, लोहिया, दीनदयाल वाले नजर नही आते। अगर आज गांधी होते तथा श्री नरेन्द्र्र मोदी उनसे जाकर मिलते तो शायद उनका संवाद कुछ इस प्रकार होता -
श्री मोदी - बापू, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मैं, आपको बहुत मानता हूँ। यहॉं तक कि मैने चीनी राष्ट्र्रपति को जो मार्क्सवादी हैं, आपकी पुस्तकों को भेंट किया।
बापू - पुस्तकें भेंट करने से पढ़ने, समझने व अमल का अवसर तो मिलता है परन्तु क्या तुमने उन्हे स्वत: पढ़ा है या फिर ( हंसकर ) मुझे देश से चीन निर्वासित कर दिया है।
नरेन्द्र्र मोदी - बापू, मैने आपके जन्मदिन से आपके प्रिय कार्यक्रम सफाई को राष्ट्रीय अभियान के रूप में शुरू किया है।
बापू - सफाई जरूरी है, देश में, गलियों में, घरों में। मैं, तुम्हे इसके लिये साधुवाद दूंगा परन्तु राजनीति व आर्थिक नीतियों में भी सफाई अभियान जरूरी है।
मोदी - मैने, जनधन योजना शुरू की है जिससे मुश्किल से 30 दिन में 5 करोड़ खाते खुले तथा बगैर अनिवार्यता के भी 5 हजार करोड़ रूप्ये इन खातों में खातेदारों ने जमा कराये।
बापू - इस घटना से तुम्हे समझना चाहिये कि हम देश के उद्योगों, कृषि व ढांचे के विकास को देशी साधनों से पूंजी जमा कर सकते है। यह स्वदेशी पूंजी होगी जिसके साथ साहूकारी शर्तें नही होगी। जब दुनिया के संपन्न देशों से पूंजी और निवेश आमंत्रित करोगे तो फिर कितना रुपया ब्याज में उन्हे देना होगा। अभी भी देश को अपने कुल बजट का लगभग 14 प्रतिशत तो ब्याज व कर्ज की किश्तों के रूप में चुकाना ही पड़ रहा है। फिर यह विदेशी पूंजी निवेश किन क्षेत्रों में होगा - यह प्राथमिकता तो पूंजी के मालिक ही तय करेंगे। यह देश की जनता की जरूरतों के आध्धर पर तय नही होता।
नरेन्द्र्र मोदी - हमे देश के विकास को गति देना है अत: हम जापान से, चीन से बुलेट ट्रेन की तकनीक व लागत राशि को कर्ज के रूप में लेने जा रहे हैं।
बापू - विकास की गति का तात्पर्य क्या है ? देश में विकास तो ऐसा हो जो सम हो। तथा सबसे कमजोर को पहले आगे लाये। मैने, स्व. जवाहर लाल को यह मंत्र बताया था कि ’’ जो काम सबसे पीछे वाले के हक में हो वही ठीक है अन्यथा गलत है।’’ जवाहर लाल ने मेरी बात नही मानी। और आज जो हालात हैं - गरीबी है, इसीलिये है। देश में आम आदमी को रेल का टिकिट खरीदने के बाद एक सीट भी निश्चित नही है। पहले उनकी व्यवस्था करते - देश में 45000 यात्री डिब्बों की आवश्यकता है - पहले उनका निर्माण कर हर गाड़ी में 10 - 10 डिब्बे लगाते, देश के बड़े इलाके में रेल लाईन नही है, वहॉं रेल लाईन बिछाते तब बाद में, 1 - 2 प्रतिशत आबादी के लिये बुलेट ट्रेन का निर्णय करते। परन्तु तुमने तो 1 प्रतिशत आबादी के लिये 99 प्रतिशत आबादी को त्याग दिया। उन्हे पीछे ढकेल दिया, यह मेरी कल्पना की नीति तो नही है।
मोदी - मैं, जापान गया, मैने वहां बुद्ध की चर्चा की। मैने जापान से समझौता किया है कि जापान के टोकियो की तर्ज पर 100 स्मार्ट सिटी देश में बनायेंगे। इनके लिये इस वर्ष मैने 7600 करोड रुपए की राशि का बजट प्रावधान किया है।
बापू - परन्तु मैने तो कहा था पहले 7 लाख ग्रामों का विकास करो - तुम्हारा ध्यान तो केवल चंद महानगरों व नये स्मार्ट सिटी बनाने पर है। मैं तो 7 लाख ग्रामों को पहले शहरों के बराबर लाना चाहता हूं, ताकि ग्रामों से शहरों की ओर पलायन न हो। ग्रामों में बुनियादी सुविधायें - शिक्षा, चिकित्सा व स्थानीय रोजगार उपलब्ध हो। तुम तो गांव की लाश पर शहर खड़े कर रहे हो।
नरेन्द्र्र मोदी - बापू, मैने अमेरिका में जाकर वैश्विक उद्योग जगत के प्रतिनिधियों से बात की। उन्हे आकर देश में पूंजी निवेश का निमंत्रण दिया। उन्होने मेरी बहुत तारीफ की तथा अमेरिकी मीडिया में मुझे बहुत प्रचार मिला।
बापू - वह तो मिलेगा ही - व्यापारी को धंधा मिलेगा तो वह तारीफ क्यों नही करेगा ? तुम तो अमेरिका जाने को बेचैन थ। अमेरिका ने तुम्हे तब बुलाया जब तुम न्रधानमंत्री बन गये। निर्णयकर्ता। मुझे भी अ‍ेमरिका के लोग, अपने गुजराती भाई, चालीस के दशक से लगातार अमेरिका प्रवास की दावत दे रहे थे। परन्तु मैने जाने से इंकार किया था। मैने अपने अमेरिकी बंधुओं - मित्रों को लिखा था कि ’’ आप लोग तो डालर भावज को पूजते हो मैं दरिद्र नारायण भगवान को पूजता हूँ। मैं, अमेरिका आकर क्या करूँगा ? ’’
ये सब बहुराष्ट्रीय कंपनियॉं देश में तकनीक, खाद्यान्न आदि सामान बेंचेगी।ये तकनीक व भोग का नशा पैदा करेंगी तथा भारत को मानसिक रूप से परावलंबी बनायेगी व भारत की संपदा को लूट कर ले जायेंगी। मेरा तो आदर्श स्वदेशी व स्वावलंबन है। तुमने ’’हिंद स्वराज ’’ नहीं पढ़ी।
नरेन्द्र्र मोदी - मैं तो अमेरिका से तथा संयुक्त राष्ट्र्र संघ में जाकर हिंदी में बोला।
बापू - यह तुमने अच्छा किया परन्तु भारत में हिंदी व राष्ट्रीय भाषाओं को राजकाज में प्रयोग क्यों नही करते ? तुम भूल गये, मैने 47 में भी कहा था ’’दुनिया को बता दो गांधी अंग्रेजी भूल गया’’ भारत के केन्द्रीय लोकसेवा आयोग का भाषाई चरित्र अंग्रेजी सत्ता का है, छात्र आंदोलन करते रहे परन्तु तुमने उनकी जायज बात भी नही सुनी। केन्द्रीय नौकरियों में अंग्रेजी का ही प्रभुत्व बरकरार रखा।
नरेन्द्र्र मोदी - बापू, अमरीका के मडिसन स्केवयर में 60 हजार लोगों ने मेरा भाषण सुना।
बापू - ( हंसकर ) हॉं प्रचार का, प्रदर्शन का युग आ गया है। तुम्हारे मेडिसन स्केवयर के आयोजन पर बहुत बड़ी राशि खर्च हुई। मैं तो जब द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में गया था तो केवल न्यूनतम वस्त्रों को पहनकर गया था। मुझे तो लंदन में लंकाशायर, मेनचेस्टर के मजदूरों की आलोचना का शिकार होना पड़ा था क्योंकि मैने भारत के मजदूरों के हाथ के काम के लिये खादी का प्रयोग किया था। विदेशी कपड़े के कारखाने बंद होने की कगार पर थे। परन्तु तुम्हारे निर्णयों से तो बंद विदेशी कारखाने चालू हो जायेंगे तथा देशी उद्योग व लघु उद्योग बरबाद हो जायेंगे।
नरेन्द्र्र मोदी - बापू, हम तो आपको पूजते रहेंगे। आखिर आप हमारे गुजरात के थे। हम तो आपके दक्षिण अफ्रीका से भारत आगमन की तिथि पर अप्रवासी भारतीयों को वापिस आने की दावत दे रहे हैं।
बापू - तुम भारतीयों ने मुझे पाषाण मूर्तियों में बदल दिया। मेरे विचार की आत्मा को मारकर मुझे पूजने की ’’ममी’’ बना दिया। तुम अप्रवासी भारतीयों को भारत में आने के लिये सुविधाओं का लालच दे रहे हो परनतु मैं तो अपनी स्वेच्छा से अपने देश की आजादी के लिये अपने वतन लौटा था। लालच के आधार पर आने वाले क्या देश सेवा करेंगे - मुझे इसमें शक है ?
नरेन्द्र्र मोदी - बापू, हम भारत को विश्व गुरू बनाना चाहते हैं। अमेरिकी व दुनिया के अखबारों में समाचार छपे हैं ’’ यू. एस. में दो महाशक्तियॉं मिली।
बापू - विश्व गुरू, विदेशी शिक्षण संस्थानों की पढ़ाई व ज्ञान मात्र से नही बन सकते। अपने आप में वे गुण, चरित्र व आचरण बनाना होंगे जो विश्व तुम्हे गुरू माने। विश्व गुरू बनने का दावा तो मानसिक साम्राज्यवाद जैसा है। इसमें अधिकार भावना है। यह कोई आदर्श नही है। क्या जिन्होने वेद की रचना की - क्या कृष्ण ने गीता के उपदेश में कभी यह कहा कि मैं विश्व गुरू बनूंगा? अपने आपको विश्व गुरू बनाने की घोषणा दूसरे को मानसिक दास बनाना है। जब दुनिया तुम्हे गुरू माने तभी तुम्हारी सफलता है। गुरू व शिक्षक में फर्क होता है। गुरू आत्मा से, मन से, कर्म से, वचन में स्वीकार्य होता है। उसे किसी को कहना नही होता। गुरू और गोविंद समान होते है। तुम महाशक्ति बनना चाहते हो। महाशक्ति याने दुनिया के संशाधनों को लूटने वाले, हथियारों के जखीरे वाले, दुनिया में युद्ध और हिंसा फैलाने वालों, दुनिया को भयभीत करने वाले, दुनिया के नये साम्राज्यवादी। मैं तो ऐसी व्यवस्था लाना चाहता था जिसमें व्यक्ति केवल अपनी ही सत्ता के अधीन हो। किसी बाध्य सत्ता की कोई आवश्यकता ही नही। मैं, विश्व शक्ति नही वरन् हर व्यक्ति को एक विश्व के रूप में देखना चाहता था। ये तो मेरे विचारों के विपरीत है।
नरेन्द्र्र मोदी - बापू, प्रणाम। मुझे आज्ञा दीजिये।
गांधी जी ने, नरेन्द्र्र मोदी के जाने के बाद कहा - भगवान ! इन्हे सदबुद्धि दे।

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