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बेगमगंज में मोहर्रम के लिए बन रहे सरसों के अनोखे ताजिए

मोहम्मद शब्बीर अहमद, बेगमगंज.

मोहर्रम से नए इस्लामी साल हिजरी सन की शुरूआत होती है। आसमान पर मोहर्रम का चांद नजर आते ही ताजियों के निर्माण का काम शुरू हो गया। सर्व प्रथम मुस्लिम त्योहार कमेटी द्वारा काजी मोहल्ला स्थित चौकियों का गुसल कराया गया, लोभान छोड़ा गया तथा नगर का प्रसिद्ध पंचायती सरसों के ताजिया का निर्माण काजी मोहल्ले में अस्सू अली द्वारा शुरू कर दिया गया। इसी के साथ मुकरबा, बढ़ापुरा, कबीट चौराहा, गांधी बजार, वार्ड 9, टेकरी इत्यादि स्थानों पर सरसों, रूई व रंग बिरंगी पन्नी के तथा कपड़े के ताजियों के निर्माण का काम शुरू कर दिया गया। 

सरसों के प्रसिद्ध ताजिए का फाइल फोटो
सरसों के प्रसिद्ध ताजिए का फाइल फोटो
मोहर्रम का चांद नजर आते ही ताजियों का निर्माण और सवारियां उठना शुरु

नवास-ए-रसूल हजरत इमाम हुसैन की शहादत के पर्व मोहर्रम पर मस्जिदों में कुरआन ख्वानी, मजलिसे, मरसिए, जिक्रे हुसैन की महफिले मुनअक्किद होना शुरू हो गई है। त्योहार कमेटी के सदर मो. आमिर ने बताया कि नगर में करीब दो दर्जन ताजियों एवं बुरार्क तैयार करने में लोग जुट गए है। मोहर्रम के ताजिये बनाने वाले पाक साफ होकर पूरी अकीदत के साथ ताजियों का निर्माण बांस बल्ली से करने के बाद सरसों की बुआई रूई पर करते है तो अन्य स्थनों पर चमकीले कागज से तैयार करते है। मंडी मोहल्ले में बुरार्क भी तैयार की जाती है। हजरत इमाम हुसैन ने हक और इंसाफ की खातिर करबला के मैदान में अपने 72 साथियों के साथ बेमिसाल कुर्बानी पेश की लेकिन यजीद के सामने झुकना गवारा नहीं किया। शहीदाने करबला को ईसाले सवाब भेजने के लिए खिचड़ा चावल व शरबत पिलाते है तथा मोहर्रम की खास इबादतों में दो रोजे जो मोहर्रम की 9 व 10 या 10, 11 तारीख को रखने के साथ ही मोहर्रम की दस तारीख को दस्तरखान वसी करने का बेहद सवाब बताया गया है, जिसका पालन सभी करते हुए हजरत इमाम हुसैन के कुर्बानी के जज्बे का कुछ अंश उनके अंदर भी पैदा हो सके इसकी दुआएं की जाती है।

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