आनंद चौहरिया, जयपुर.
मकान बनाने में सीमेंट कांक्रीट वाली आरसीसी तकनीक के बढ़ते प्रचलन से राजस्थान का पत्थर कारोबार बर्बाद हो गया है। नतीजे में पश्चिमी राजस्थान के पचास हजार से अधिक मजदूर परिवारों के सामने भुखमरी की नौबत आ गई है। साथ ही पत्थर खदान मालिकों की जिंदगी तबाह होने के कगार पर पहुंच गई है।
गौरतलब होगा कि, जोधपुर और उसके आस-पास के इलाकों में प्रचुरता से पाया जाने वाला जोधपुर स्टोन एक जमाने में मरुस्थलीय क्षेत्र में भवन निर्माण की एकमात्र सामग्री हुआ करती थी। इस क्षेत्र की खदानों से खूबसूरत लाल और सफेद पत्थर निकलता है। इसकी आठ से दस फीट लंबी पट्टियां भवनों की छत बनाने के काम आती हैं। बेहद मजबूत पत्थर की इन पट्टियों की उम्र एक हजार साल से अधिक मानी जाती है। निर्माण की नई तकनीक आरसीसी के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसार से पहले पाली, जोधपुर, नागौर, बाड़मेर, जैसलमेर सहित आसपास के इलाकों में इन्हीं पट्टियों से मकानों की छत बनाई जाती थी।
कल तक था डेढ़ सौ करोड़ का बाजार
करीब सालाना करीब डेढ़ सौ करोड़ का पत्थर बाजार रसातल में जा पहुंचा है। आठ से दस फीट लंबी पत्थर की पट्टियों के ग्राहक बाजार में अब ढूंढे से नहीं मिलते। 38 से 40 रुपये फीट बिकने वाली पट्टियों के बाजार अब सुनसान रहते हैं। एक पत्थर व्यवसायी इमदाद अली के मुताबिक इलाके में 8 से 10 हजार पत्थर खदान हैं। एक जमाने में इनमें करीब डेढ़ लाख से अधिक मजदूर काम करते थे। इनसे आठ से दस हजार खदान मालिकों के परिवारों का पेट भी भरता था, लेकिन आरसीसी तकनीक ने धीरे-धीरे पत्थर बाजार को अप्रासंगिक बनाने की ओर धकेल दिया। अली के मुताबिक बाजार की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि अब सालाना दस से बीस करोड़ का कारोबार भी मुश्किल से हो पाता है।
हर साल रायल्टी बढ़ा देती है सरकार
दूसरी ओर राज्य सरकार रवैया भी इन खदानों को डुबाने वाला बना हुआ है। पत्थर व्यवसायियों के मुताबिक राज्य सरकार रायल्टी की दरें लगातार बढ़ा रही है। इससे पत्थर की कीमतों में इजाफा हो रहा है। लगातार मंदी से जूझ रहे पत्थर व्यवसाय की बहबूदी के लिए सरकार के पास कोई योजना भी नहीं है। जाहिर है पत्थर की छतों के साथ ही खदानें भी इतिहास के पन्नों में दर्ज होने की ओर हैं।