दो नेताओं के झगडे या फिर अस्तित्व व अस्मिता की लड़ाई में दलों में विभाजन की घटनाएं तो सुनी गई हैं, लेकिन कम से कम यूपी की सियासत में कभी ऐसा नहीं हुआ, जब घर व संपत्ति की तरह पार्टी पर उत्तराधिकार की लड़ाई दल के बंटवारे तक पहुंची हो। बाजी मां के हाथ लगेगी या बेटी के, अथवा यह दल टूट-टूटकर उन तमाम लोगों के दिल तोड़ने वाला इतिहास बनाएगा, जिन्होंने कुर्मी स्वाभिमान के नाम पर स्व. सोनेलाल पटेल को आगे करके इस तरह के राजनीतिक संगठन की कल्पना की थी?
कृष्णा पटेल और अनुप्रिया पटेल में जारी है जुबानी जंग
एक-दूसरे पर चापलूसों से घिरे होने का लगा रहे आरोप
राजनीति के गलियारे में यह सवाल लोगों की जुबान पर है कि आखिर विवाद का कारण क्या है? जो बात इतनी बढ़ गई कि एक ही परिवार के दो सदस्य और वह भी मां-बेटी आमने-सामने खड़ी हो गईं। कृष्णा पटेल ने अपनी बेटी अनुप्रिया को पार्टी के महासचिव पद से हटा दिया है।
कृष्णा कहती हैकि उनके पति सोनेलाल पटेल के सपने को जिन्दा रखने में उनका योगदान 60 फीसद है, अनुप्रिया तो चापलूसों से घिर गई है और पार्टी को तोड़ने का काम कर रही है। दूसरी ओर, सांसद अनुप्रिया का कहना हैकि, उन पर भाजपा से मिलकर दल विरोधी काम करने का आरोप है तो याद दिलाना चाहती हूं कि गठबंधन वार्ता के समय मेरे सामने भाजपा की ओर से विलय का प्रस्ताव रखा गया था। भाजपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ने का दबाव भी डाला गया था। पर, मैंने अस्वीकार कर दिया। जहां तक विधानसभा की रोहनिया सीट के उपचुनाव की बात है तो मैं भी इससे सहमत थी कि किसी कार्यकर्ता को लड़ाया जाए। पर, जब राद्यट्रीय अध्यक्ष कृष्णा पटेल ने खुद चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी तो सभी ने चुनाव लड़ाया। मुझसे ज्यादा वोट उन्हें मिले। ऐसे में मेरे ऊपर हराने का आरोप उचित नहीं है।
कृष्णा पटेल |
बहनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई बनी टूट का कारण
जिस तरह से अनुप्रिया पटेल अपना दल की पर्याय बनती जा रही थीं, उसके मद्देनजर उनकी बड़ी बहन पल्लवी के मन में भी कहीं न कहीं अपनी पहचान जताने की महत्वाकांक्षा के बीज फूटने ही थे। कृष्णा पटेल ने पल्लवी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। यह अनुप्रिया को नागवर लगा। अनुप्रिया ने कहा भी कि राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद बनाने का अधिकार कृष्णा पटेल को नही है। इसके अलावा मां और बेटी एक-दूसरे पर चापलूसों के फेर में फंसकर पार्टी को नुकसान पहुंचाने के आरोप लगा रही हैं। उसके मद्देनजर इस विवाद में सपा और भाजपा का हाथ होने की संभावनाओं को भी पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। राजनीतिक समीक्षकों का भी मानना है कि लोकसभा चुनाव में झटका खाने के बाद समाजवादी पार्टी पिछड़ा वोट में बंटवारा रोकने की रणनीति पर काम कर रही है। इसी के लिए सपा के रणनीतिकारों की कुर्मी व पटेल वोटों को पार्टी के साथ जोड़ने की कोशिश स्वाभाविक है। अनुप्रिया चूंकि भाजपा के सहयोग से सांसद हैं, इसलिए सपाई रणनीतिकारों के अनुप्रिया के बजाय कृष्णा पटेल को साथ लाने का रणनीतिक खेल खेलने से इन्कार नहीं किया जा सकता। अनुप्रिया पटेल की तरफ से खुलकर कहा जा रहा है कि अपना दल के भाजपा से गठबंधन के बाद सपा काफी बेचैन है। सपा को चिंता है कि इससे आगे आने वाले विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में उसकी मुसीबतें बढ़ेंगी। वहीं, कृष्णा पटेल कह रही हैं कि सांसद होने के बाद कुछ लोग अनुप्रिया की महत्वाकांक्षाएं बढ़ा रहे हैं, जिससे उन्हें अपना दल की ताकत का लाभ मिले। पर, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी। इस सबसे भी अपना दल के विवाद में इन दलों का हाथ होने की संभावना नजर आती है।