रेलिक रिपोर्टर, शाहजहांपुर.
मैं हूं पुलिस का सुरक्षा कवच, मुझे अक्सर तिराहे चौराहे पर रखा जाता है।
मेरे अन्दर पुलिसकर्मी बैठकर सर्दी और बरसात से बचाव करते हैं। वहीं चोर
उचक्के व अपराधी मेरी शकल देख कर दूर से ही कन्नी काटकर निकल जाते हैं। मैं
पुलिस के रंग में रंगा हुआ हूं। मेरा नाम पुलिस सहायता केन्द्र रखा गया
है। किसी संस्था ने मुझे मजबूत और टिकाऊ बनाकर पुलिस सहायता के लिये दिया
था।
क्या मेरी व्यथा अंधा और बहरा पुलिस
प्रशासन सुन पायेगा
मगर अफसोस इस बात का है कि पहले मुझे मालगोदाम के तेल टंकी तिराहे पर
रखा गया था। कुछ ही दिनों तक मेरा इस्तेमाल करने के बाद सड़क किनारे
मलमूत्र में डाल दिया गया। कई साल तक मैं उसमें सड़ता रहा। हर आने जाने वाला
अफसर मुझे देखकर अफसोस तो जताता था मगर करता कुछ नहीं। इसी बीच कुछ
पत्रकारों को मुझ पर दया आई। उनसे मेरी दशा देखी नहीं गई तो पुलिस कप्तान
वसीम अहमद से शिकायत कर मुझे अच्छे स्थान पर रखने की बात कही गयी। पुलिस
कप्तान ने भी मुझ पर दया दिखाई और सीओं को आदेश दिया कि पुलिस सहायता
केन्द्र को कहीं रख दिया जाये। सीओ सिटी ने अपने अधीनस्थों से मुझे नहला
धुला कर रोडवेज के सामने रखवा दिया। मगर वहां भी मेरी वही दशा हुई। कुछ
दिनों तक तो सब ठीक चलता रहा फिर मुझे सड़क से बीस कदम पीछे घसीट कर खड़ा
किया गया और मेरे आगे मूंगफली, चाट के ठेले लगा कर मुझे कैद भी करा दिया
गया। मैं तो सहायता केन्द्र हूं मगर मुझे इतना छिपा दिया गया कि कोई परेशान
व्यक्ति मुझे तलाश भी नहीं कर सकता। क्या मेरी आवाज एक बार फिर पुलिस
कप्तान सुनेंगे। जबकि मेरे सामने से हर रोज कोई न कोई पुलिस का आला अधिकारी
निकलता रहता है और मैं उन्हें देखता रह जाता हूँ, लेकिन मेरी ओर कोई भी
देखने को तैयार नहीं होता।
मैं हूं पुलिस का मारा - पुलिस सहायता केन्द्र
सितंबर 10, 2014
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